- संजीव श्रीवास्तव
बाहुबली दोनों भाग
देखने के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह सामने आ रहा है कि इस फिल्म का मुख्य किरदार
निभाने वाले अभिनेता प्रभास वर्मा क्या रजनीकांत और कमल हासन की तरह ही साउथ के
चमत्कारी अभिनेता बनने जा रहे हैं? मीडिया हलकों और
फिल्म प्रेमियों के बीच इस सवाल पर चर्चा जोर शोर से हो रही है। हर किसी को प्रभास
में अगला रजनीकांत या कमल हासन नजर आ रहा है। दरअसल कमल हासन और रजनीकांत की बढ़ती
उम्र और अपेक्षाकृत कम सक्रियता को देखते हुये यह प्रश्न सबकी जुबान पर है। लोग इस
कमी की पूर्ति प्रभास की दमखम वाली उपस्थिति के जरिये करना चाहते हैं। हालांकि
प्रभास ने बाहुबली सीरीज के जरिये देश भर में जो लोकप्रियता बटोरी है वह अद्वितीय
है। प्रभास, कमल हासन और रजनीकांत से इस मायने में जरा एक कदम आगे के स्टार साबित
होते हैं कि उन्हें शुरुआत में ही देश भर में चर्चा हासिल हुई है। जबकि कमल हासन
और रजनीकांत की हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में तब एंट्री हुई थी जब वो दक्षिण की
फिल्मों में सुपरस्टार के तौर पर स्थापित हो चुके थे। ‘एक दूजे के लिए’ (1981) फिल्म से
कमल हासन हिन्दी में आये और रजनीकांत ‘अंधा कानून’ (1983) से हिन्दी में आये थे। जिसके बाद
हिन्दी पट्टी के दर्शकों ने भी इन दोनों अभिनेताओं की दक्षता और अभिनय कौशल को देखा
था। लेकिन प्रभास के साथ ऐसी परिस्थिति नहीं है। वह बाहुबली के जरिये एक साथ पूरे
देश के जनमानस पर छाते हैं। और यह इमेज उनको दक्षिण के सिनेमा तक सीमित नहीं रखती।
वह पूरे हिन्दुस्तान का सुपरस्टार कहलाते हैं। बाहुबली में प्रभास की प्रेजेंस
वाकई उस प्रभावशाली है। ऊंचा कद, रुआबदार चेहरा, चौड़ा कंधा, चट्टान सी छाती,
दहकती आंखें और फड़कती भुजाओं के अलावा प्रभाव जमाने वाला अभिनय भी प्रभास में है।
कुल मिलाकर प्रभास की स्क्रीन प्रजेंस मनोहारी है, वह बाहुबली के किरदार के लिए
सबसे उपयुक्त साबित होते हैं। जाहिर है जो कलाकार इतना सबकुछ प्रदर्शित कर सकता है
और लोकप्रियता बटोरता है तो निश्चय ही यह सवाल पूछा जाना गलत नहीं होगा कि क्या वह
कमल हासन और रजनीकांत जैसे चमत्कार उत्पन्न करने वाले अभिनेता साबित होंगे, जिनकी मास
में गहरी पकड़ रही। जिनकी आगामी फिल्म को देखने के लिए पूरा दक्षिण भारत जैसे टिकट
खिड़की की तरफ दौड़ने लगता है।
मुझे लगता है ऐसा
कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी। हां, यह ठीक है कि प्रभास में फिलहाल वही उम्मीद देखी
जा रही है जैसी कि ‘कहो न प्यार है’ के बाद ऋतिक रोशन से देखी गई थी लेकिन आगे चलकर
फिल्म चुनाव में असावधानी के चलते ऋतिक रोशन उम्मीदों के मुताबिक स्थान पर सस्टेंन
नहीं कर पाये। ऐसे में यह सवाल फिलहाल गर्भ
में है कि प्रभास आगे चलकर अपने किरदार के चुनाव को लेकर कितना सचेत रहते हैं।
लेकिन बात जहां तक कमल हासन और रजनीकांत का स्थान लेने की है तो मुझे लगता है
प्रभास का अभी और इम्तिहान बाकी है। इसे विस्तार से समझने के लिए हमें जरा इनकी
परिस्थिति और पृष्ठभूमि को देखना होगा। कमल हासन, रजनीकांत और प्रभास वर्मा-तीनों
की परिस्थिति और पृष्ठभूमि में काफी अंतर है। कमल हासन क्लास परिवेश के अभिनेता
हैं, तो रजनीकांत मास परिवेश के स्टार हैं जबकि प्रभास टेक्नोलोजी युग के कलाकार
हैं। कमल हासन हों या रजनीकांत-दोनों ने सभी कास्ट्यूम्स में अपना प्रभाव दिखा
दिया है। चमत्कृत करने वाले अंदाज दोनों में रहे हैं। कमल हासन की लयात्मक अभिनय
प्रस्तुति और रजनीकांत के नेचुरल इफेक्ट से लैस अंदाज बेहद लोकप्रिय रहे हैं।
रजनीकांत का एटिट्यूट खुद में स्पेशल इफेक्ट से लैस रहा है। सिगरेट पीने का अंदाज
हो या कि रिवॉल्वर घुमाने का अंदाज या फिर फाइट सीन का स्टंट-इसमें कोई संदेह नहीं
कि वह इफेक्ट से लैस था लेकिन रजनीकांत के ओरिजीनल एडिट्यूट पर वह परफेक्ट बैठता
था। उनके इस अंदाज को लोगों ने ‘अंधा कानून’, ‘मेरी अदालत’ ‘हम’ आदि फिल्मों में
खूब देखा था। बाद के दौर में जब टेक्नोलॉजी प्रधान फिल्में आईं तो वहां भी चाहे वह
‘रोबोट’ हो या कि ‘कबाली’- 60-65 साल के रजनीकांत का वही पुराना
एटिट्यूट फिर से हावा था। यानी रजनीकांत की जो ओरिजीनल पहचान थी उसे टेक्नोलॉजी के
इफेक्ट ने विलोपित नहीं किया। यही खासियत कमल हासन की भी थी। ‘एक दूजे के लिये’ से लेकर ‘दशावतारम’ तक कमल हासन की भावप्रवण अभिव्यक्ति के लोग आज
भी कायल हैं। ‘सदमा’, ‘पुष्पक’, ‘इंडियन’, ‘हे राम’ जैसी फिल्मों में कमल हासन के किरदार को
भला कौन भूल सकता है। और सबसे बड़ी बात यह कि इन किरदारों में कोई ग्राफिक्स का
कमाल नहीं था। ना ही कोई स्पेशल इफेक्ट का चमत्कार था। वहां कैमरे के आगे केवल कथा
और अदायें थीं। ऐसे में मुझे लगता है कि प्रभास को अभी और इम्तिहानों के दौर से
गुजरना होगा। अभी उन्होंने भव्य सेट, चमक दमक वाली पोशाक, हाईटक ग्राफिक्स और सुपर
इफेक्ट का भी काफी सहारा मिला है। हां, यह सच है कि उनकी पर्सनास्टी और एपीयरेंस
पर ये सारी चीज़ें काफी मुफीद साबित हुई हैं और तभी संपूर्णता में बाहुबली का
प्रभाव सिल्वर स्क्रीन पर नजर आया है।
लिहाजा यह कहा जाना
गलत नहीं होगा कि आगे चल कर प्रभास जब आम पोषाक में आम सी लगने वाली कहानी के आम
किरदार में नजर आयेंगे और तब उनका क्या प्रभाव दिखता है-उस पर निर्भर करेगा कि वो
कमल हासन और रजनीकांत की चमत्कृत कर देने वाली परंपरा को कितना आगे बढ़ाते हैं। दूसरी
बात कि हर अभिनेता की अपनी आवाज उसकी पहचान होती है। प्रभास को अभी अपनी आवाज को भी
स्टैबलिश करना है। क्योंकि डबिंग में ओरिजीनल का टेस्ट कहां मिल पाता है?
(इस टिप्पणी को कहीं भी प्रकाशित करने से पूर्व
लेखक से अनुमति आवश्यक है। मोबाइल न उठा पाने पर मेल, टिप्पणी अथवा एसएमएस से
संदेश दें।)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें