-डॉ.राजीव श्रीवास्तव
भारतीय सिने गीत-संगीत में पुरोधाओं की
कभी कोई कमी नहीं रही। सुगम संगीत का सहज क्षेत्र होते हुये भी यहां गायन विधा में
शास्त्रीय गायकी में किसी विशेषज्ञ की यूं तो आवश्यकता नहीं रही पर मन्ना डे के
आगमन से सिने संगीत की गरिमा, उसकी साख और गुणवत्ता को निश्चय ही एक विशिष्ट आयाम
मिला।
सिनेमा की गायन विधा में शास्त्रीयता का
विधिवत अध्यन कर के फ़िल्मों में पदार्पण करने वाले प्रथम पार्श्वगायक मन्ना डे ही
थे। अपने चाचा केसी डे (कृष्ण चन्द्र डे) के संरक्षण में बालपन से ही मन्ना ने
संगीत की जो घुट्टी पी थी वह जीवन पर्यन्त उनकी निजी धरोहर बन कर सदैव उनका मार्ग
प्रशस्त करती रही। सिनेमा में मन्ना डे की राह उतनी सरल नहीं रही जितनी सरलता से
वो मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सहजता से गा लिया करते थे। अपने चाचा के साथ
मन्ना 1942 में तब की बम्बई में आ गये थे और उन्हीं के साथ रह कर संगीत संयोजन में
उनके सहायक के रूप में कार्य करने लगे थे। इसी समयावधि में हिन्दी फिल्मों में
मन्ना को अपने जीवन का प्रथम पार्श्व गीत गाने का अवसर मिला। फ़िल्म ‘तमन्ना’
(1943) के लिये केसी डे के संगीत निर्देशन में नायिका-गायिका सुरैया के संग मन्ना
डे का गाया प्रथम गीत था – ‘जागो आयी उषा पंछी बोले जागो’। इसी वर्ष तब के
प्रसिद्ध संगीतकार गोविन्द राव व्यास के संगीत में तब की बहुचर्चित फ़िल्म ‘राम
राज्य’ (1943) के लिये मन्ना ने अपना प्रथम एकल गान ‘गयी तू गयी सीता सती’ गाया।
इसी काल खण्ड में मन्ना डे ने अनिल बिस्वास, खेमचन्द प्रकाश, सचिन देव बर्मन जैसे
कुछ संगीतकारों के साथ सहायक के रूप में कार्य करते हुये आगे चल कर स्वतन्त्र रूप
से स्वयं संगीत निर्देशन का कार्य प्रारम्भ कर दिया था।
फ़िल्मों में संगीत देते और गाते हुये
मन्ना डे को सफलता का द्वार देखने में सात वर्ष लग गये। इन सात वर्षों में संघर्ष
की आंच में तप कर मन्ना डे की शास्त्रीयता और भी प्रखर हो चुकी थी। जीवन की कठिन
सरगम को भी उन्होंने संगीत के सात सुरों की तरह ही इन सात वर्षों में साध लिया था
और फिर इस साधना का सुरीला फल उन्हें मिला फ़िल्म ‘मशाल’ (1950) के लिये गीत गा कर।
कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘ऊपर गगन विशाल, नीचे गहरा पाताल’ को सचिन देव बर्मन के
संगीत में मन्ना डे ने कुछ इस तरह से गाया कि उनकी गायकी के सुर ने तार सप्तक की
भांति ऊपर गगन को तो छुआ ही साथ ही खरज में नीचे गहरे उतर कर पाताल का भी स्पर्श
कर लिया। मन्ना डे के लिये प्रसिद्धि का यह एक ऐसा सोपान था जिस पर आगे बढ़ते हुये
उन्हें कभी भी पीछे मुड़ कर देखने की आवश्यकता फिर नहीं पड़ी। यही वो दशक था जिसमें
राज कपूर और शंकर-जयकिशन की संगत में मन्ना डे भारतीय सिने संगीत के राष्ट्रीय
क्षितिज पर छाये। तब के युवा प्रयोगवादी और सरगम की सर्वाधिक विविधता से परिपूर्ण
अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर आसीन हो चुके संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के साथ फ़िल्म
‘आवारा’ (1952) के अब तक के एकमात्र कालजयी स्वप्न दृश्य के वाहक स्वरूप उपयोग में
लिये गये मन्ना डे के स्वर का जादू सिने गायन के सर्वथा अनूठे परिदृश्य का अध्याय
लिख गया। राज कपूर के साथ मन्ना डे का यह सम्पर्क राज से कहीं अधिक स्वयं मन्ना की
झोली भरते रहने का एक ऐसा उपक्रम बना जिसने आने वाले वर्षों में उनके लिए उपलब्धियों
के कई महत्वपूर्ण पड़ाव स्थापित किये। राज कपूर के लिये आरके बैनर के अतिरिक्त भी
मन्ना ने जो गीत गाये, प्रस्तुति के सन्दर्भ में वे उत्कृष्ट सिद्ध हुये। गायन में
शास्त्रीयता के साथ ही यूडलिंग का प्रयोग तथा रॉक एंड रोल की तर्ज पर स्वर में
नृत्य के समान लोच उत्पन्न करने के अपने अनोखे कौशल से मन्ना डे ने सिने गायकी में
जिस शैली को स्थापित किया वह आज एक समृद्ध ‘घराना’ के रूप में उन्हीं के नाम से
जाना जाता है।
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रिकॉर्डिंग के दौरान मन्ना डे। फोटो-नेट से साभार। |
इन सब ढेर सारी विशेषताओं के बाद भी क्यों
मन्ना राज कपूर के स्थायी स्वर नहीं बन सके? तकनीकी रूप से गायन में सिद्ध होने के
बाद भी क्यों मन्ना डे मुकेश को विस्थापित कर के राज के मुख्य स्वर नहीं बन सके?
राज कपूर के लिये उनके द्वारा अभिनीत लगभग सभी फ़िल्मों में मुकेश के साथ ही मन्ना
ने भी समान्तर पार्श्व गायन किया है साथ ही ‘चोरी चोरी’ (1956) फ़िल्म में वे
एकमात्र ऐसे प्रमुख गायक थे जिसके सभी गीत तब अत्यन्त लोकप्रिय भी हुये थे फिर भी
अवसर के बारम्बार दोहराव के बाद भी मन्ना डे मुख्य स्वर के आसन से वंचित ही रहे, क्यों?
यह प्रश्न इसलिये भी महत्वपूर्ण था क्योंकि यह उस प्रतिभावान गायक से सम्बन्धित था
जो गायन में तकनीक की उत्कृष्ट शास्त्रीयता लिये उसकी समस्त राग-रागिनियों की
भूल-भुलैया से परिचित था। मन्ना डे के संग उन्हीं के सानिध्य में मैंने अपनी कई
बैठकों के मध्य एक दिन यह प्रश्न उनके समक्ष जब रखा तो वे गम्भीर मुद्रा में काफी
समय तक चुप रहे। लगा, जैसे अतीत में कहीं खो से गये हैं। उनके मुख की भंगिमाएं यह
आभास दे रही थीं कि कहीं उनके ह्रदय में भी यह द्वंद उन्हें मथता रहा है। एक दीर्ध
स्वांस लेते और फिर उसे छोड़ते हुये मन्ना के मुख से ‘चोरी चोरी’ के गीत की
रिकॉर्डिंग के प्रथम दिवस का कथानक फूट पड़ा – “फ़िल्म के निर्माता दक्षिण के एलबी
लक्ष्मण ने आते ही पूछा, वेयर इज मुकेश? (कहां हैं मुकेश?)। वो ये मानने को तैयार
ही नहीं थे कि राज कपूर के लिये मुकेश के अतिरिक्त भी कोई गा सकता है। पूर्व में
मैं तब तक राज के लिये कई गीत गा चुका था जो लोकप्रिय भी हुये थे पर वह भी मेरी
पात्रता को सिद्ध करने में काम नहीं आये। शंकर-जयकिशन ने उन्हें बहुत समझाने का
प्रयास किया पर वे टस से मस नहीं हुये। आखिरकार राज कपूर के कहने पर वो तैयार
हुये।” मेरा मूल प्रश्न अब भी अनुत्तरित था। मन्ना डे ने खुद ही आगे कहना प्रारम्भ
किया। “मुकेश साहब की गायकी सीधी और सरल थी पर अपने ही ढंग से गीत के भाव को जिस
तरह से वो कह लेते थे उसका कोई जवाब नहीं था। गीत तो मैं या कोई भी दूसरा गायक गा
सकता था मगर एक-एक शब्द के भाव को जिस प्रकार वो पेश कर देते थे उसे मैं या रफ़ी या
कोई और नहीं कर सकता था। उनका फ़ील करके गाना और एक एक शब्द को जिस तरीके से वो
थ्रो करते थे उसमें उनका अपना ही एक स्टेम्प होता था जिसको हम लोग रि-प्रोड्यूस
नहीं कर सकते थे। कई बार आप हायली क्वालिफाइड होते हुये भी कुछ चीजें नहीं कर पाते
जो एक सामान्य शख्स आसानी से कर जाता है। मुकेश साहब ऐसे ही सिम्पल हायली गिफ्टेड
सिंगर थे जो किसी से भी कभी भी रिप्लेस नहीं किये जा सकते थे और आगे भी उनका कोई
विकल्प नहीं आने वाला.”
शंकर-जयकिशन के साथ मन्ना डे के गाये
गीतों की एक विस्तृत सूची है जिसमें कालजयी गान के रूप में अंकित ढेर सारे गीत आज
भी गाये और सुने जा रहे हैं। ‘दिल का हाल सुने दिलवाला’, ‘मुड़ मुड़ के न देख’ (श्री
420-1955), ‘तू प्यार का सागर है’ (सीमा-1955), ‘भय भंजना वन्दना सुन’, ‘सुर न सजे
क्या गाऊं मैं’ (बसन्त बहार-1956), ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’ (तीसरी कसम-1966),
‘झनक झनक तोरी बाजे पायलिया’ (मेरे हुज़ूर-1968), ‘ऐ भाई, ज़रा देख के चलो’ (मेरा
नाम जोकर-1970) जैसे गीत आज भी प्रासंगिक हैं। सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में
फिल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ (1953) के लिये शैलेन्द्र के लिखे गीत ‘धरती कहे पुकार के’
और ‘हरियाला सावन ढोल बजाता आया’ की सुरीली तान को भला कौन भुला सकता है। सलिल के
साथ ही मन्ना का फ़िल्म ‘काबुलीवाला’ (1961) का गीत ‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ तथा फिल्म
‘आनन्द’ (1971) के लिये गाया ‘ज़िन्दगी कैसी है पहेली’ एक उत्कृष्ट कालजयी रचना है।
संगीतकार रवि के साथ मन्ना डे का गाया सर्वाधिक लोकप्रिय गीत ‘ऐ मेरी जोहरा ज़बीं’
(वक़्त-1965) आज भी जीवन्त है। एक फूल दो माली’ (1969) का गीत ‘तुझे सूरज कहूं या
चन्दा’ में निहित पुत्र के प्रति पिता के भाव को जिस सहजता के संग मन्ना ने उतारा
है वह अद्भुत है। कल्याणजी-आनन्दजी के संगीत में मन्ना डे के गीतों का अपना एक अलग
ही सौन्दर्य है। ‘कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या’ (उपकार-1967),
‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी’ (ज़ंजीर-1973) जैसे गीत मन्ना डे की गायकी के
विविध आयाम हैं। हास्य गीतों में शास्त्रीयता का पुट घोल कर उसमें आधुनिकता का
छौंका लगा कर मन्ना डे ने जो गीत गाये हैं उसे गायन में जुगलबंदी का फ्युजन कहा जा
सकता है। राहुल देव बर्मन के संगीत में फ़िल्म ‘पड़ोसन’ (1968) के लिये किशोर कुमार
के साथ मन्ना का गाया ‘एक चतुर नार करके सिंगार’ ऐसा ही एक फ्युजन था। आरडी के ही
संगीत में फ़िल्म ‘भूत बंगला’ (1965) का गीत ‘आओ ट्विस्ट करें’ पश्चिम के रॉक एंड
रोल का एक ऐसा हिन्दुस्तानी संस्करण था जिसे मन्ना ही साकार कर सकते थे। संगीतकार
रोशन के संगीत में फ़िल्म ‘दिल ही तो है’ (1963) के लिये मन्ना डे का गाया गीत
‘लागा चुनरी में दाग़’ सिने संगीत के सर्वश्रेष्ठ कालजयी गीतों में अपना स्थान रखता
है। साहिर लुधियानवी का लिखा यह गीत वास्तव में भारतीय आध्यात्म के पटल पर लिखा एक
ऐसा शिलालेख है जो आत्मा-परमात्मा के सात्विक सम्बन्ध का परिचायक है। सृष्टि की मूलभूत
शास्त्रीयता के सरगम पर आरूढ़ इस अद्भुत गान का आरोह-अवरोह अपनी चपलता से जिस
प्रकार मंद्र-मध्य-तार सप्तक पर गतिमान हुआ है उसे उसी तीव्रता एवं प्रखरता के संग
अपने स्वर-सौन्दर्य से निरुपित करके मन्ना डे ने सुर-सरगम को जैसे साक्षात स्वयं
में आत्मसात कर लिया है।
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राजकपूर के साथ मन्ना डे। रियाज करते हुए। फोटो-नेट से साभार। |
शंकर-जयकिशन के संगीत में ‘केतकी गुलाब
जूही चम्पक बन फूले’ (बसन्त बहार-1956) जैसा शास्त्रीय प्रकृति का गीत मूर्धन्य
शास्त्रीय गायक पं. भीम सेन जोशी के साथ जुगलबंदी करते हुये प्रस्तुत करने का
शौर्य मन्ना डे जैसा आत्म विश्वास से भरा कोई निपुण गायक ही दिखा सकता था। यह
जुगलबंदी सिने गीत-संगीत की एक अनूठी उपलब्धि इसलिये भी है क्योंकि फ़िल्म में
दृश्य और कथानक के अनुरूप शंकर-जयकिशन ने अपनी परिकल्पना के सांचे में जिस प्रकार
से राग-रागिनियों की बानगी को सहेजा था उसे उसी अनुशासन के साथ कुशलतापूर्वक
प्रस्तुत करने का कार्य दो दिग्गजों ने सफलता के साथ कर दिखाया था। निष्चय ही इस
विशिष्ट उपलब्धि का प्रथम श्रेय संगीतकार शंकर-जयकिशन को ही जाता है। शंकर-जयकिशन की
ऐसी ही विभिन्न प्रयोगवादी संगीत रचनाओं के कारण ही मैं उन्हें भारतीय सिने संगीत
का एकमात्र ‘चक्रवर्ती सम्राट’ मानता हूं। कई-कई गायक-गायिकाओं के साथ मन्ना डे की
भी विशिष्ट गायन उपलब्धियां इन्हीं के संगीत निर्देशन में हैं। स्वयं मन्ना भी
शंकर जयकिशन और कल्याणजी-आनन्दजी के साथ गाये गये अपने गीतों को विशेष उपलब्धि के
रूप में स्मरण करते थे। गीतकारों में शैलेन्द्र और नीरज के लिखे गीतों के प्रति
उनका विशेष रुझान था। एक संगीत निर्देशक के रूप में भी मन्ना की प्रतिभा समय-समय
पर उनके गायक के रूप में स्थापित होने के बाद भी उपयोग में आती रही है। फिल्म
‘चमकी’ (1952) के संगीतकार मन्ना डे ही थे। इस फिल्म में कवि प्रदीप के लिखे गीतों
में गीता दत्त का गाया ‘मैं तो जंगल की चंचल हिरनियां’ और मुकेश के स्वर में ‘कैसे
जालिम से पड़ गया पाला रे’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हास्य गीतों में मन्ना के
गाये कई गीत ऐसे भी हैं जो अपनी शास्त्रीयता के लिये आज भी जाने जाते हैं। ‘किसने
चिलमन से मारा दुबारा मुझे’ (बात एक रात की-1962), ‘फूल गेंदवा न मारो, लगत करेजवा
में चोट’ (दूज का चांद-1965), ‘मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा’ (पगला कहीं का-1970)
जैसे गीत इसी श्रेणी के हैं।
एकल गीतों के अतिरिक्त मन्ना डे के गाये
हुये युगल गीतों का भी अपना एक पृथक आकर्षण रहा है.। शमशाद बेग़म और मन्ना डे का
युगल गीत ‘टेढ़ी टेढ़ी फिरे हमसे सारी दुनियां’ (मुसाफ़िर-1957), लता मंगेशकर के साथ ‘प्यार
हुआ इकरार हुआ’ (श्री 420-1955), ‘आजा सनम मधुर चांदनी में’ (चोरी चोरी-1956),
‘दिल की गिरह खोल दो’ (रात और दिन-1967), आशा भोंसले के संग ‘कली अनार की न इतना
सताओ, प्यार करने की कोई रीत बताओ’ (छोटी बहन-1959), ‘सांझ ढली दिल की लगी’ (काला
पानी-1960), ‘रे मन सुर में गा’ (लाल पत्थर-1971), सुमन कल्याणपुर के साथ ‘तुम जो
आओ तो प्यार आ जाये’ (सखी रोबिन-1962) गीतों के अतिरिक्त मन्ना डे ने पुरुष गायकों
के साथ भी कई लोकप्रिय गीत गायें हैं।
फ़िल्म ‘बरसात की रात’ (1960) के लिये रोशन के
संगीत में साहिर लुधियानवी के लिखे गीत को गायन की ‘कव्वाली’ विधा में मन्ना डे ने
एसडी बातिश, मो.रफ़ी, आशा भोंसले, सुधा मल्होत्रा के साथ अपनी शास्त्रीयता के परिचित
रंग में डूब कर ऐसा गाया कि इसे इन्होंने सिने गीतों की श्रेष्ठ कव्वालियों में
सम्मिलित करा दिया। लोकप्रिय कालजयी गीतों की श्रेणी में फ़िल्म ‘शोले’ (1975) का
किशोर कुमार के संग गाया युगल गान ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे’ आज भी मित्रता के
महत्त्व को दर्शाता हुआ लोगों का प्रिय गीत है। इसी प्रकार प्रेम के बाद विवाह
बन्धन में बंधने वाली दहेज जैसी सामाजिक अड़चन के विरुद्ध ‘न मांगू सोना चांदी न
मांगू हीरे मोती’ (बॉबी-1973) गायक शैलेन्द्र सिंह के साथ मन्ना का गाया एक
संदेशपरक गीत है। फ़िल्म ‘दस नम्बरी’ (1976) के लिये मुकेश और आशा भोंसले के साथ
मन्ना डे का गाया ‘दिलरुबा दिल्ली वाली’ के साथ ही इसी फ़िल्म में मुकेश के संग
गाया मन्ना का एक और मनोरंजक गीत ‘न तुम हो यार आलू, न हम हैं यार गोभी’ तब
अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था।
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गायक मन्ना डे (बीच में), उनकी पत्नी सुलोचना डे तथा लेखक डॉ. राजीवश्रीवास्तव (दायें) |
अपने निधन से कुछ वर्ष पूर्व मन्ना डे ने
मुझे अपने जीवन और गायन पर विस्तृत सूचना देते हुए ढेरों स्मृतियां साझा की थी।
वास्तव में मैं तब उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक पुस्तक लिखना चाह रहा था
जिसकी लिखित स्वीकृति मन्ना डे ने मुझे दे दी थी। संस्मरणों की अपनी लड़ियों को
उजागर करते हुये मन्ना ने अपने ह्रदय की चाह और उसमें शांत पड़े दर्द की कथा का भी
वर्णन मुझसे समय-समय पर किया था। ऐसा ही उनका एक दर्द तब अकस्मात् ही फूट पड़ा था
जब हम संगीतकार सचिन देव बर्मन पर वार्ता कर रहे थे। सचिन देव से मन्ना तब से
परिचित थे जब वे उनके चाचा केसी डे से संगीत की शिक्षा ग्रहण किया करते थे। फ़िल्म
‘मेरी सूरत तेरी आंखें’ (1963) में सचिन देव के संगीत में मन्ना डे का गाया अमर
गान ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई’ तो था ही पर उसी फिल्म में मो. रफ़ी का गाया गीत
‘तेरे बिन सूने नैन हमारे’ भी था। मना डे की प्रबल इच्छा थी कि वे स्वयं इस गीत को
गायें। अपनी इस अभिलाषा को जब उन्होंने सचिन देव के समक्ष प्रगट किया तो उन्होंने
मना कर दिया। बारंबार अनुनय-विनय करने के पश्चात् भी जब सचिन देव इसके लिए तैयार
नहीं हुये तो उन्होंने अपने चाचा के सम्बन्धों का स्मरण भी करा दिया फिर भी उनके
मन की आशा अपूर्ण ही रही। उस दिन जब दशकों पूर्व का दर्द उनके अधरों पर अकस्मात् आया
तो मैंने देखा कि उनके नयन भी तब अश्रुओं से भीग गये थे। जिस बात को उन्होंने जीवनपर्यन्त
किसी को नहीं बतायी थी वह अनायास ही जब उनके मुख पर आयी तो ह्रदय की पीड़ा ने भी
सहज भाव से नयन मार्ग से अपनी राह बना ली।
मन्ना डे अपने आप में संगीत का एक ऐसा
घराना थे जो आज भी जीवन्त है। स्मृतियों में उनकी छवि अपने मुक्त-उन्मुक्त रूप में
आज भी हिलौरें मारती है और आज भी उनके गाये गीत उनके कृतित्व को नित नये आयाम से
गढ़ते से लगते हैं। अपनी कर्मस्थली मुम्बई से दूर मन्ना वर्षों पहले बंगलुरु में आ
कर बस गये थे और यहीं उनका निधन 24 अक्टूबर 2013 को हुआ। उनका जीवन निश्चय ही थम गया
पर इस जीवन से उपजे उनके कृतित्व की अनन्त यात्रा का मार्ग आज भी प्रशस्त एवं
गतिमान है।
(लेखक जाने माने फिल्म इतिहासकार व संगीत वेत्ता हैं। इस लेख को कहीं भी प्रकाशित करने के लिए पूर्वानुमति आवश्यक है।)
बहुत सारी जानकारियां मिली जो ग़ज़ब कि रही पहली बार इतनी स्पष्टता से उनके जीवन के बारे में आज पढ़ने को मिला सर
जवाब देंहटाएंबहुधा ऐसे निष्काम काम को, मेहनत और कारीगरी को बधाई तक सीमित रखना कम होगा। यह निश्चय ही सिने-पाठक के लिए संग्रहणीय*-सोपान है।मुकेश की गायिकी के बाद मन्ना डे के नये बीज-पाठ की सांगितिक जरूरतों को , गर्वीली पहचान को कलमबंद कीजिए।। आमीन।। प्रताप सिंह
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही ये आलेख एक एतिहासिक दस्तावेज़ है अपने आप में।
जवाब देंहटाएंमन्ना दा मुझे बचपन से ही प्रिय रहे हैं।
बहुत सुंदर संशोधन और लेख।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंरणवीर सिंह का नया वीडियो खून भरी मांग उनके साथ हीरोइन हैं फराह खान
जवाब देंहटाएंगोविंदा के इल्जामों पर वरुण धवन ने साधी चुप्पी कहा मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है
मामी ने दिखाया स्वर्ग का दरवाजा (Mammi Ne Dikhaya Swarga Ka Darwaja)
देश के सबसे अमीर अंबानी परिवार के बारे में ये सब नहीं जानते होंगे आप
इस महाराजा ने बनाया था क्रिकेट और पटियाला पैग का अनोखा कॉकटेल
आखिर क्यों ये लड़की रोज लगाती है शमशान घाट के चक्कर
शादी से एक सप्ताह पहले मां बेटे के कमरे में गई तो पैरों तले खिसक गई जमीन
Antarvasna युवकों की आम यौन समस्यायें
इस तरह के कपड़े पहनना दरिद्रता को न्योता देता है
सलमान की खास दोस्त यूलिया ने किया एक और गाना रिकॉर्ड
वैलेंटाइन डे पर बेडरूम में बस रखें ये खास चीज और फिर देखें कमाल