कहानी किलर्स एंड लवर्स की
फिल्म समीक्षा- बाबूमोशाय बंदूकबाज
(सितारे-नवाजुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग,
जतिन गोस्वामी, श्रद्धा दास, दिव्या दत्ता।
निर्देशक-कुशान नंदी।)
पिक्चर प्लस रेटिंग-3
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नवाजुद्दीन सिद्दीकी और बिदिता बाग |
जिन लोगों ने नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्में-‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘रमन राघव’ देखी होगी-उनको इस
फिल्म में बहुत कुछ नया देखने को नहीं मिलेगा सिवाय इसके कि यहां नवादुद्दीन
सिद्दीकी का अभिनय कौशल पहले से और भी निखरकर सामने आया है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी
ने अपनी एक स्टाइल और बॉडी लेंग्वेज ना केवल डेवलप कर ली है बल्कि उसको दर्शकों के
जेहन में स्टैबलिश भी कर लिया है। और यही वजह है कि कागज के पन्ने पर रचे गये
किरदार के मिजाज को भांपकर फिल्मकार अब नवाज का चयन करने लगे हैं।
कहानी में क्या है?
बहरहाल‘बाबूमोशाय
बंदूकबाज’एक बार फिर से उत्तरप्रदेश की ऐसी कहानी है
जिसमें किरदार मानों अपने किरदार से ही खूब खेलता है। फिल्म में दो कॉन्टेक्ट
किलर्स को दिखाया गया है। हालांकि दोनों अलग-अलग हैं और बाबू बिहारी के रूप में
नवाजुद्दीन सिद्दीकी मुख्य किरदार है। फिल्म में दोनों किलर्स की अपनी-अपनी
गर्लफ्रेंड है, और पेशेवर तौर पर दोनों में रेस भी है। दोनों का अपना–अपना
टारगेट है-लेकिन एक वक्त दोनों का टारगेट एक ही हो जाता है-यही इस फिल्म का सबसे
रोचक मोड़ है। दूसरे किलर के रूप में बांके बिहारी यानी जतिन गोस्वामी ने भी
प्रभावशाली अभिनय किया है। बांके की गर्लफ्रेंड यास्मीन (श्रद्धा) और बाबू की
गर्लफ्रेंड फुलवा (बिदिता) की उपस्थिति फिल्म में हत्या और खून खराबा के साथ इश्क
और सेक्स परोसने के लिए है लेकिन अभिनय कमजोर नहीं है। मसाला पूरा तड़का मार के डाला गया है। आगे चलकर फिल्म में
सियासत के रंग भी देखने को मिलते हैं। राजनीति में इन कांटेक्ट किलर्स का
इस्तेमाल किया जाता है लेकिन असली बात तो यह है कि दस साल की उम्र से ही बंदूकें
चलाने वाला बाबू बिहारी की जिंदगी इश्क करने के बाद बदल जाती है।
गीत, संगीत, निर्देशन
कुशान नंदी के निर्देशन ने इस डार्क स्टोरी को
पर्दे पर ठीक ठाक उकेरा है। फिल्म का प्रस्तुतिकरण दर्शकों को बांधे रखता है।
प्रथम भाग में फिल्म दौड़ती भागती है लेकिन दूसरे भाग में फिल्म की डार्क कहानी
की परतों पर रोशनी डाली जाती है। लिहाजा दर्शक बोर नहीं होते। हिंसा, गोली,
गाली, गोरी, सेक्स और देसी ठसक वाली डायलॉगबाजी व रसीला गीत संगीत सब देखसुनकर लोग इंटरटेन
होते हैं। यानी फिल्म का स्क्रीप्ट पार्ट दर्शकों की रुचिप्रियता को ध्यान में
रखकर तैयार किया गया है। इस मामले में गालिब असद भोपाली मे बेहतरीन कार्य किया
है।
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गोली और गोरी |
गौरतलब है कि यह फिल्म भी सेंसर बोर्ड की कैंची
का शिकार हुई थी। पहले तो इसमें कुल 48 कट्स लगाने का निर्देश जारी हुआ था लेकिन
बाद में हालात बदले और अपीलेंट अथॉरिटी में जाने के बाद कुछ कम कट्स के बाद
फिल्म को रिलीज कर दिया गया। इसके बावजूद फिल्म में किसिंग सीन, तथा इंटीमेट सीन
की भरमार है। हालांकि पहले ही ‘ए’ मार्का लगाकर यह बता दिया गया कि यह फिल्म केवल वयस्कों के लिए है
लिहाजा बच्चे खुद ही सावधान हो गये।
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क्या देखनी चाहिये फिल्म?
मुझे लगता है यह फिल्म उन लोगों को देखनी
चाहिये-जिन्हें सिनेमा में विधागत रुचि है या फिर नवाजुद्दीन सिद्दीकी के फैन बन
चुके हैं, क्योंकि यह फिल्म उनके कैरियर की निरंतरता को बखूबी दर्शाती है। नवाज की
फायरिंग में अग्नि दिखेगी तो फिल्म में बिदिता बाग की प्रेजेंस कहानी को नमकीन
बनाती है। बिदिता का यह नमक आने समय में दर्शकों की प्यास बढ़ा सकता है।
-संजीव श्रीवास्तव
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