'पिक्चर प्लस' परिवार की भावभीनी श्रद्धांजलि
300 फिल्मों में अभिनय, 3 किताबों का लेखक, हिन्दी फिल्मों का ‘अंग्रेज एक्टर’ नहीं रखता था मोबाइल !
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अभिनेता टॉम ऑल्टर : 22 जून, 1950 - 29 सितंबर, 2017 |
जिनके पूर्वज अमेरिका से भारत आकर बस गये और विभाजन
के बाद जिसका आधा परिवार पाकिस्तान चला गया, उस टॉम ऑल्टर के सामने जिंदगी को एक
राह देने की बड़ी चुनौती थी। लेकिन वाह्य व्यक्तित्व इतना अलग था कि उसमें नाटकीय
आकर्षण की भरपूर गुंजाइश थी। लिहाजा फितरत भी उस आकर्षण की मुरीद हो गई। तभी तो राजेश
खन्ना-शर्मिला टैगोर की बहुचर्चित फिल्म ‘आराधना’ के प्रभाव ने फिल्मी
दुनिया का उनका आकर्षण बढ़ा दिया।
जिसके बाद वो 1974 में फिल्म एंड टेलीविजन
इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे से एक्टिंग में ग्रेजुएशन के दौरान वह गोल्ड मेडल हासिल करके
निकले। तब जिंदगी को अपनी रुचि की राह मिल गई। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि टॉम
ऑल्टर ने धर्मेंद्र के साथ सन् 1976 में ‘चरस’ फिल्म से डेब्यू किया
था। फिर 1977 में टॉम ने नसीरुद्दीन शाह के साथ मिलकर ‘मोल्टे प्रोडक्शन’ के नाम से एक थियेटर
ग्रुप बनाया। लेकिन जिंदगी के आखिरी पड़ाव तक वह आजीवन थियेटर-कला के प्रति समर्पित
रहे। उनकी ‘परिंदा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘क्रांति’ जैसी फिल्में सबसे
मशहूर रही हैं। हिन्दी फिल्मों में उन्होंने कई बार अंग्रेज अफसर की भूमिका निभाई
है। वह छवि उनके चाहने वालों की नज़रों में बस गई है। वह हिन्दी फिल्मों के ‘अंग्रेज एक्टर’ भी कहे जाते थे। गौरतलब
है कि 67 साल के टॉम ऑल्टर ने
टीवी शोज के अलावा तकरीबन 300 फिल्मों में अभिनय किया
है। टीवी पर ‘जुनून’ में उनका किरदार केशव
कल्सी खासा मशहूर हुआ था। 90 के दशक में यह टीवी शो
पांच साल तक चला था। दिलचस्प बात है कि 1980 से 90 के दौरान टॉम ऑल्टर ने स्पोर्ट्स
रिपोर्टिंग भी की। टीवी पर वह सचिन तेंदुलकर का सबसे पहला इंटरव्यू लेने वाले पहले
व्यक्ति थे। साल 2008 में उन्हें पदमश्री सम्मान मिला था। उन्हें शेरो-शायरी का बहुत शौक था।
हिन्दी, अंग्रेजी से साथ ही उर्दू पर भी उनकी खासी पकड़ थी।
डॉयलाग डिलीवरी में तलफ्फुज पर खास ध्यान देते थे। बोलने का उनका अंदाज निराला था।
आंखों से अभिनय का जज्बा झांकता था। रंगमंच हो या सिल्वर स्क्रीन, वो हर जगह कला
और किरदार को जीवंत बना देते थे। उन्होंने तीन किताबें भी लिखी थीं। सबसे आखिरी
बार ‘सरगोशियां’ फिल्म में नजर आए थे
जो कि इसी साल रिलीज हुई थी। लेकिन इन सबके अलावा टॉम
ऑल्टर के अभिनेता का एक रंग और भी था जिसे दो साल पहले ‘सहारा समय’ न्यूज़ चैनल ने अपने एक
स्पेशल शो में दिखाया था। वह रंग क्या था और टॉम ऑल्टर
ने कितनी संजीदगी से निभाया वह रोल, बता रहे हैं उस शो के प्रोड्यूसर रहे वरिष्ठ
टीवी पत्रकार रंजन कुमार : -
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'क्रांति' फिल्म में अंग्रेज अफसर की भूमिका में टॉम ऑल्टर |
जनवरी 2014 की बात है। देश में लोकसभा
चुनाव होने जा रहा था। मीडिया इस चुनाव को कवर करने की योजना बना रहा था। मैं उस
समय 'सहारा' में था। मेरे बॉस थे बीवी राव। राव सर के साथ मीटिंग हुई और तय हुआ कि
देशभर में घूम-घूमकर 'चुनावी चाय' प्रोग्राम किया जाए। फिर
सवाल सामने आया कि इस प्रोग्राम को प्रस्तुत कौन
करेगा? तब भाई अतुल गंगवार ने नाम सुझाया 'टॉम अल्टर' का। टॉम सर से
संपर्क किया गया, उस समय टॉम सर रणथंभौर में शूटिंग कर रहे थे। उनसे बात की गई, टॉम सर को आइडिया
पसंद आ गया। उन्हें प्रोमो की लाइन भेजी गई,
लेकिन टॉम सर ने अपने अंदाज में रणथंभौर के जंगल
से प्रोमो शूट किया।
हमारी पहली शूटिंग दिल्ली में थी। हमने चांदनी चौक में जगह चुनी। गुरुद्वारा के सामने
की चाय दुकान। जगह भीड़भाड़ वाली थी। वहां कुर्सी लगानी
भी मुश्किल थी। बस टॉम सर के लिए हमने एक कुर्सी लगाई। लेकिन टॉम सर जब वहां
पहुंचे तो कुर्सी पर खुद नहीं बैठे, उन्होंने बेंच पर बैठकर प्रोग्राम का संचालन किया।
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स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट के तौर पर सचिन तेंदुलकर से साक्षात्कार लेते टॉम ऑल्टर |
उसी शाम जेएनयू में हमारा दूसरा शूट था। जब हम जेएनयू कैंपस पहुंचे तो
हमारे 'चुनावी चाय' का बैनर देखकर वहां के वामपंथी छात्र चर्चा में भाग नहीं लेना चाह रहे
थे। उन्हें लगा हम मोदी के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। तब टॉम सर आगे आये, छात्रों से बात करने
लगे और फिर हमने कब रिकॉर्डिंग शुरू कर दी और प्रोग्राम शूट हो गया, पता ही नहीं चला।
इसी प्रोग्राम में टॉम सर की शायरी और उनकी उर्दू पर पकड़ को समझने का मौका मिला।
रांची का एक वाकया है, जब टॉम सर खासे नाराज हो गये। होटल पहुंचने पर रिसेप्शन पर उनके लुक
को देखकर उनकी नागरिकता पूछ ली गई। बस, फिर क्या था, टॉम सर बिफर पड़े। ऐसा ही वाकया हैदराबाद के ताज
विवांता में दोहराया गया। यहां तो टॉम ने होटल छोड़ने की धमकी दे दी। टॉम सर तीन
पीढ़ी से भारत में रह रहे हैं, उन्हें बुरा लगता था, जब कोई उनकी नागरिकता पूछता था।
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टॉम ऑल्टर के साथ लेखक रंजन कुमार और सहारा समय के शो 'चुनावी चाय' की टीम |
हमलोग अहमदाबाद में थे, नरेंद्र
मोदी के राज्य में। कार्यक्रम में शामिल गेस्ट और जनता सभी मोदी की तारीफ में
कसीदे पढ़ रहे थे। टॉम सर ने पूछा - आप सब अपने मन से बोल रहे हैं या किसी ने सीखाकर
भेजा है। टॉम सर की विचारधारा अहमदाबाद में टकरा रही थी। वो बहुत सहज नहीं लग रहे
थे। हमने अहमदाबाद में ही दूसरा शो प्लान किया। इस बार कुछ कलाकारों और मुस्लिम
समुदाय के लोगों को भी बुलाया। पर यहां भी सब मोदी गुणगान ही करते रहे। शाम को साबरमती आश्रम में लिंक शूट के दौरान
टॉम सर ने कहा - “पूरे
देश का नहीं पता, पर गुजरात में सभी सीट मोदी की पार्टी ही
जीतेगी।”
मुंबई में हम जुहू बीच पर शूट कर रहे थे। टॉम
सर एक दिन पहले ही मुंबई आ गये थे। करीब एक महीने से हम शूट कर रहे थे। जुहू बीच
पर टॉम सर काफी खुश नजर आ रहे थे। उन्होंने कहा - “ये
हमारी मुंबई है। यहां से बड़ा लगाव है। टॉम सर ने शूट खत्म होने के बाद अपने घर
चलने को कहा। पर हमें उसी शाम बैंगलुरु निकलना था, इसलिए उनके आग्रह को मान नहीं पाए।
टॉम सर की एक खास बात थी, जो
केवल उनके साथ काम करने वाले ही जानते थे। टॉम सर मोबाइल नहीं रखते थे। हम रात को
उन्हें मेल पर आगे के कार्यक्रम के बारे में बताते थे। टॉम सर मेल देखने के बाद
अगले प्लान पर निकलते थे। टॉम सर बोलते थे,
ये मोबाइल आपको बहुत तंग करता है।
इसी वर्ष जून महीने में भाई अतुल गंगवार ने
दिल्ली के मावलंकर हॉल में ‘एक शायर एक शाम’ प्रोग्राम किया था। टॉम सर से यहीं अंतिम
मुलाकात हुई थी।
(लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं। इन दिनों ‘ज़ी हिन्दुस्तान’ चैनल से संबद्ध। ग़ाज़ियाबाद में निवास। संपर्क : 9811250392); Email:pictureplus2016@gmail.com
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