एकमात्र GST का संवाद नहीं, ‘मेर्सल’ से जुड़े हैं और भी कई बड़े विवाद
*गौतम सिद्धार्थ
आखिर एक तमिल फिल्म पर हो रहे विवाद को हम इतना
तूल क्यों दे रहे हैं? क्या वजह सिर्फ़ राजनैतिक है? ऐसा पहले हिंदी फिल्मों के साथ नहीं हुआ था क्या? हिंदी सिनेमा जगत के कुछ निर्माता इस तरह के विवाद को फैलाकर अपनी फिल्म को
लाईमलाइट में लाने के माहिर हैं। उन लोगों के नाम आप सब जानते हैं।
रजनीकांत के रिकॉर्ड की बराबरी करने के करीब विजय |
ऐसा ही कुछ दक्षिण भारत की फिल्मों के साथ भी
होता है। और वहां कुछ ज्यादा ही होता है। वजह है, इन प्रांतों में होने वाली व्यक्ति पूजा। चाहे वो फिल्म स्टार हो, या गांव का ज़मींदार। ये हम, वहां के परिवेश में बनी फिल्मों में तब देख
सकते हैं, जब कोई बड़ा आदमी कहीं बाहर जाता है तो उसके
पीछे कारों और गुंडों का कारवां होता है।
यहां फिल्मस्टारों के असली नाम के पहले एक उपाधि
भी होती है। जैसे ‘थलैवा’, ‘मेगा स्टार’, ‘पॉवर स्टार’, ‘रॉकिंग स्टार’, ‘स्टायलिश स्टार’। ग़ज़ब तो ये है कि एक की उपाधि ‘Sudden
Star भी है। अब हम आते हैं ‘थेलेपति’ विजय पर। ये विवादित फिल्म ‘मेरसल’ का हीरो है।
ये फिल्म 130 करोड़ की बिग बजट फिल्म है। जिसमें ए आर रहमान का म्यूज़िक है और तीन बड़ी हिरोइनें है, ढेर सारे ग़्राफिक्स हैं, ‘बाहुबली’ जैसे स्टंट्स हैं। इसका प्रोडक्शन हाऊस ‘श्री थेनांडल फिल्म्स’ है, जिसकी ये सौवीं फिल्म है।
अब आप अंदाज़ा लगा चुके होंगे कि इस फिल्म पर
बहुत कुछ दांव पर लगा था। इसी वजह से प्रोड्यूसर्स ने इस फिल्म को शुरू करने के
साथ ही, इसके नाम से ही विवादों का सिलसिला शुरू कर
दिया। ‘मेर्सल ‘से मिलता जुलता नाम ए राजेंद्र के पास था। इस पर कोर्ट में भी केस चला। ये
पहला विवाद था।
तमिल का नया सुपर स्टार |
दूसरा विवाद उस समय हुआ, जब प्रोड्यूसर्स ने तामिलनाडु के कुछ उन सिनेमाघरों पर केस किया, जो फिल्म के पहले हफ्ते में टिकट के दाम बढ़ा देते हैं।
और तीसरा विवाद उस समय खड़ा हुआ, जब सरकारी डॉक्टरों ने ये कहा कि फिल्म में सीधे सीधे उनका अपमान किया गया है, क्योंकि वो सरकारी डाक्टर हैं।
खैर, विवादों के पुलिंदे में एक
और फाईल घुसी, और वो थी, BJP के H
Raja की टिप्पणी।
इस बात पर मुझे एक बात व्हाट्स एप जोक याद आ रहा
है कि, एक मौलवी ने एक बच्चे को हिदायत दी कि ‘सड़क पर नहीं थूकना चाहिये’। दूसरे दिन अखबारों में छपा कि मौलवी का फतवा, ‘थूकना गुनाह है’। बिलकुल वैसे ही, यहां भी लोगों ने अपने फायदे के लिये ‘मेरसल’ के विवाद का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
पहला फायदा, अब तक फिल्म 150 करोड़ के ऊपर का बिजनेस कर चुकी है।
दूसरा फायदा, जयललिता के जाने के बाद तामिलनाडु के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में आई शून्यता
का फायदा उठा कर अपनी पार्टी के लिये जगह बनाना।
तीसरा फायदा, जो अभिनेता राजनीति में आना चाहते हैं, उनको जनता से अपनी बात कहने का मुद्दा मिला है।
चौथा फायदा, फिल्मों पर लगे 28% GST के खिलाफ़ मोर्चाबंदी। फिल्मों के मनोरंजन को जुयेखाने
के समानांतर रखा गया है।
कई और भी व्यक्तिगत फायदे हैं, जिनकी लिस्ट बहुत बड़ी है।
जबकि देखा जाये तो इसमें सेंसर बोर्ड को कोई भी
गड़बड़ी नज़र नहीं आई थी, तभी तो इस फिल्म को सेंसर सर्टिफिकेट मिला था।
गाली देकर या गाली खाकर, फेमस होने का जो नया चलन आया है, उसी परम्परा की नई कड़ी है
इस फिल्म पर उठे विवाद।
(*ये लेखक के अपने विचार
हैं। लेखक स्क्रीन राइटर और फिल्म निर्देशक हैं।
मुंबई में निवास। संपर्क : Email : gautamsiddhartha@gmail.com / pictureplus2016@gmail.com)
(नोट : इस टिप्पणी को बिना अनुमति कहीं भी
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