ऐसा माना जाता है कि 13 वीं और 14 वीं सदी की एक अपूर्व सुंदरी थी
रानी पद्मिनी, जिसे पद्मावती भी कहा जाता था। हालांकि कई इतिहासकार इसके वास्तविक
अस्तित्व को खारिज करते हैं। ऐसा समझा जाता है कि वह सिंहल द्वीप यानी श्रीलंका के
राजा गंघर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी थी पद्मिनी, जिसका रूप और यौवन इतिहासकार
और साहित्यप्रेमियों के बीच लिए हमेशा से चर्चा का विषय रहा है।
माना
जाता है पद्मिनी का ब्याह चितौड़ के राजा रतन सिंह अथवा भीम सिंह से हुआ था। रतन
सिंह प्रतापी वीर राजा थे। उसे अपनी रानी से बहुत प्यार था। रानी पद्मावती का
सौन्दर्य चहुं ओर चर्चा का विषय था। रतन सिंह को इस बात का बड़ा गर्व था कि उसकी
रानी अपूर्व सुंदरी है।
कहते
हैं कि एक दिन दिल्ली
के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की नजर रानी पद्मावती के रूप लावण्य पर पड़ गई, जिसके
बाद खिलजी ने रानी पद्मावती को हर हाल में प्राप्त करने के लिए चितौड़ पर हमला कर
दिया। यह ईस्वी सन् 1303 की बात है। हालांकि यह तथ्य नहीं मालूम कि खिलजी ने कैसे
और कहां पद्मावती की झलक देखी? अगर देखी, और वह अभिभूत हुआ तो
उसी वक्त रानी को प्राप्त करने का उपक्रम क्यों नहीं किया?
कहा जाता है खिलजी ने दर्पण में
रानी का सौन्दर्य का प्रतिबिंब देखा था जिसके बाद वह उसके सौन्दर्य पर आसक्त हो
गया और फिर दिल्ली आकर रानी पद्मिनी को हासिल करने के लिए लालायित रहने लगा। जिसके
बाद जब उसे बर्दाश्त न हुआ तो उसने चितौड़ को लूटने के इरादे से हमला कर दिया।
चितौड़ लुटता रहा। खिलजी और
उसके सिपाही पूरा राजपाट लूटता रहा लेकिन रानी पद्मावती फिर भी उसके हाथ नहीं आ
सकी। अपनी लज्जा और आन बान बचाने के लिए उसने जौहर कर लिया यानी दहकते अंगारे से
भरे अग्निकुंड में वह कूद गई।
पद्मिनी के रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक
चारणों, भाटों, कवियों
और
लोकगायकों द्वारा विविध रूपों में व्यक्त हुई है। जिसके बाद पद्मिनी की सुंदरता
लोकश्रुति में व्याप्त हो गई। वह सौन्दर्य की प्रतिमान बन गई।
फरिश्ता
ने
चित्तौड़ की चढ़ाई (ईस्वी सन् 1303) के करीब 300 साल बाद और मलिक मुहम्मद जायसी कृत
पदमावत (रचनाकाल
1540 ई.) की रचना के 70 साल बाद सन् 1610 में 'पद्मावत्' के आधार पर इस वृत्तांत का
उल्लेख किया है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को जीत लिया था, वहां का राजा रतन सिंह मारा गया
जिसके बाद उसकी रानी पद्मिनी ने राजपूत रमणियों के साथ जौहर की अग्नि में कूदकर
जान दे दी।
जायसी की ‘पदमावत’ पूर्णत: काल्पनिक मानी जाती है। काव्य रस के विभिन्न समृद्ध
उद्धरणों के लिए इस महाकाव्य का स्थान सर्वोपरि है। इसमें कवि ने रानी पद्मिनी के
अनिंध सौन्दर्य का नखशिख वर्णन किया है, जो विश्वसाहित्य में अद्वितीय स्थान रखता
है।
‘देवदास’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसे मनोरंजक और कलरफुल कास्ट्यूम ड्रामा को सफलतापूर्वक सिल्वर स्क्रीन
पर उतारने वाले निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली की ‘पदमावती’ फिल्म 1 दिसंबर को रिलीज हो रही
है। इसमें भंसाली ने दीपिका पादुकोण को हर तरह से सौन्दर्य की देवी पद्मिनी के
करीब बनाने का प्रयास किया है। मीडिया में इस फिल्म के अब तक जिसने भी पोस्टर
रिलीज किये गये हैं, उनमें तीनों ही किरदारों का लुक ऐतिहासिक प्रतीत होता दिखता
है। तस्वीरों में पृष्ठभूमि में ऐतिहासिकता भी परिलक्षित होती है।
किन्तु फिल्म में इस ऐतिहासिकता
के गतिशील प्रभाव का सबको बेसब्री से इंतजार है।
-संजीव श्रीवास्तव (Email : pictureplus2016@gmail.com)
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