करवा चौथ के अलावा अब फिल्मों में किसी भी त्योहार को विशेष तौर पर
नहीं दिखाया जाता। होली, दिवाली, राखी के भी रंग अब भूल गये हमारे फिल्मकार। अब
केवल फिल्मों के रिलीज के लिए ये त्योहार इनके लिये मायने रखते हैं। प्रस्तुत है
बीएचयू की शोध छात्रा कंवलजीत कौर का एक विशेष लेख।
ऐसा लगता है हमारे फिल्मकारों को अब केवल त्योहारों की तारीखें याद रहती
हैं, ताकि उस दिन वह अपनी फिल्म रिलीज कर सकें। लेकिन फिल्मों में त्योहार के
प्रसंग को डालना वो अब करीब-करीब भूल चुके हैं। ना अब होली के गीत सुनाई देते हैं
ना सावन के गीत और ना रक्षाबंधन तराने; यहां तक कि दीवाली की रंगीनी भी सिल्वर स्क्रीन अब खो चुकी है। जबकि ईद
और दिवाली की तारीखें तो साल भर पहले ही रिलीज के लिए बुक कर ली जाती हैं। हाल के
सालों में सलमान खान की फिल्म तो ईद का पर्याय हो गई हैं। हर साल ईद के मौके पर
सलमान की कोई न कोई फिल्म जरूर रिलीज होती है। 2009 में ‘वांटेड’, 2010 में ‘दबंग, 2011 में ‘बॉडीगार्ड’, 2012 में ‘एक था टाइगर’, 2014 में ‘किक’, 2015 में ‘बजरंगी भाईजान’, 2016 में ‘सुल्तान’ और 2017 में ‘ट्यूबलाइट’। बॉलीवुड का एक
ट्रेंड सा बन गया है कि अगर फिल्में हिट करानी हो तो ईद और दिवाली पर रिलीज कराओ।
इन दोनों खास त्योहारों पर अपनी-अपनी फिल्में रिलीज को लेकर अक्सर निर्देशकों और
अभिनेताओं में टकराव भी देखा जाता है। दिवाली पर रिलीज करने का ऐसा क्रेज कि 2014 में फराह
खान ने शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ भी दिवाली पर ही रिलीज कर दी। दरअसल शाहरुख खान अपनी फिल्में रिलीज
करने के लिए दिवाली को चुनते रहे हैं। लेकिन दिलचस्प बात तो यह है कि इस ट्रेंड का
ज्यादा फायदा इन अभिनेताओं को नहीं मिला। जो फिल्में अच्छी थीं वही हिट हुईं।
दिवाली पर रिलीज होने वाली ज्यादातर फिल्में फ्लॉप साबित हुई हैं। ‘जब तक है जान’ (2013), ‘रा.वन’ (2011), ‘एक्शन रिप्ले’ (2010), ‘मैं और मिसेज खन्ना’ (2009), ‘सांवरिया’ (2007), ‘जाने मन’ (2006), ‘क्योंकि’ (2005), ‘जीना सिर्फ मेरे लिए’ (2002), ‘अशोका’ (2001) ; ये सारी फिल्में दिवाली पर रिलीज हुईं पर कोई खास कमाल नहीं कर पाईं।
फिर भी त्योहारों पर फिल्में रिलीज करने का भूत ऐसा सवार है कि अगले साल तक के
त्योहार भी बुक हो चुके हैं। 2018 में ईद पर सलमान खान की ‘दबंग-3’ रिलीज हो सकती है तो आनंद एल. राय के निर्देशन में 2018 में क्रिसमस के
मौके पर शाहरुख खान अपनी फिल्म और रितिक रौशन ‘कृष-4’ रिलीज करने की तैयारी में हैं।
इस साल दिवाली पर पर्दे पर धमाल मचाने अजय देवगन की फिल्म ‘गोलमाल -4’ आ रही है। वैसे अजय
देवगन की भी इच्छा रही है वे अपनी फिल्में दिवाली पर जरूर रिलीज करें। संजय लीला
भंसाली भी इस त्योहारी सीजन के बीच ‘पद्मावती’ (1 दिसंबर) रिलीज करने जा रहे हैं तो वहीं सलमान खान अपनी अगली फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ क्रिसमस के मौके पर
भी रिलीज करने वाले हैं।
अब रिलीज ही त्योहार है!
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इस दिवाली 'गोलमाल 4' |
गौर करने वाली बात तो यह है कि बॉलीवुड
के ये कुछ नामचीन सितारे अपनी फिल्मों के रिलीज के लिए त्योहार का सीजन तो चुनते
हैं लेकिन इनकी फिल्मों के कथानक में भारतीय त्योहारों के लिए कोई जगह नहीं होती
है। लिहाजा त्योहारों की तारीखों तक ही फिल्में सीमित होकर रह गई हैं। फिल्मों से
त्योहार नदारद होते जा रहे हैं जोकि पहले की फिल्मों की जान हुआ करते थे। किसी दौर
में फिल्मों में त्योहारों के जरिये सामाजिक-सांस्कृतिक परंपरा तथा भाईचारे की झलकियां
मिला करती थीं। त्योहारों को केंद्र में रखकर बनी फिल्में और उनके गाने आज भी हम
नहीं भूलें। बल्कि ये कहें कि वे गाने हमारे जीवन में इस कदर रच बस गए हैं कि उनके
बिना आज कोई भी त्योहार अधूरा-सा लगता है।
अस्सी के दशक तक भारतीय सिनेमा में भारतीय त्योहारों की झलक भरपूर
मिलती हैं। लेकिन नब्बे के दशक के बाद मल्टीप्लेक्स का दौर आया तो फिल्मों से
त्योहारों को गायब कर दिया गया। मल्टीप्लेक्स के शहरी युवा दर्शकों की पसंद को
आधार बनाकर फिल्मों की कहानियां लिखी जाने लगीं और गाने रखे जाने लगे। फिल्मों का
सारा परिवेश मेट्रो कल्चर से लबरेज हो गया। और फिल्मकारों ने त्योहारों के चित्रण
को पिछड़ापन समझना शुरू किया।
फिल्मों में अब ना होली के रंग, ना दीवाली की जगमग
पहले के मुकाबले आज कई गुना फिल्में बनती हैं पर फिल्में और उनके गाने
कब दम तोड़ देते हैं पता ही नहीं चलता। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि वे गाने भारतीय
परिवेश का अहसास नहीं कराते। 1957 में आई ‘मदर इंडिया’ का वह गीत – ‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुनादे जरा बांसुरी’ – होली आने पर ना बजे तो होली का त्योहार कैसा? 1970 में आई फिल्म ‘कटी पंतग’ का वह गाना- ‘आज ना छोड़ेंगे बस
हम चोली’ - भला कौन भूल सकता है? ‘होली के दिन दिल मिल
जाते हैं’ – फिल्म शोले (1975), ‘खइके पान बनारस वाला’ – फिल्म डॉन (1978), ‘रंग बरसे फीगे चुनरवाली’ – फिल्म सिलसिला (1981), ‘भागी रे भागी ब्रिजबाला’ – फिल्म राजपूत (1982), ‘अंग से अंग लगाना’ – फिल्म डर (1993) – कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनकी वजह से हमें हर साल होली का
अहसास हो पाता है।
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फिल्मों में नहीं दिखती अब दिवाली की रोशनी |
दिवाली जैसे त्योहार को केंद्र में रखकर फिल्में बनाने का चलन बहुत
पुराना रहा है। 1940 में जयंत देसाई ने ‘दिवाली’ फिल्म का निर्देशन किया था। 1955 में गजानन जागीरदार
ने ‘घर घर में दिवाली’ बनाई। 1956 में दीपक आशा ने ‘दिवाली की रात’ फिल्म का निर्देशन
किया। 2001 अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल ने ‘हैप्पी दवाली’
बनाई जिसमें आमिर खान और रानी मुखर्जी मुख्य
भूमिका में थे। 2001 में करन जौहर ने ‘कभी खुशी कभी गम’ फिल्म में दिवाली के दृश्यों का उपयोग किया। आदित्य चोपड़ा ने 2000 में ‘मोहब्बतें’ में दिवाली के दृश्यों का उपयोग किया गया। कमल
हासन की 1998 में आई फिल्म ‘चाची 420’ में दिवाली के दृश्य थे। दिवाली पर बने गाने में कम हिट नहीं हुए। 1943 में आई फिल्म ‘किस्मत’ में – ‘घर घर में दिवाली
है...’, 1949 में आई फिल्म ‘शीश महल’ में शमशाद बेगम ने – ‘आई रे आई रे दिवाली...’, गीत गाया। मुकेश ने 1960 में आई फिल्म ‘नजराना’ में ‘एक वो भी दिवाली ...’ गीत गाया। अभी कुछ साल पहले आई फिल्म ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या में’ – ‘आई है दिवाली, सुनो जी घरवाली…’ गीत खूब चला। लेकिन
ये नज़ीर महज गानों तक सीमित हैं, दीवाली के दिल भी दिल खिल जाते हैं, भला आज
कितनी फिल्मों में इस भाव को दिखाने का प्रयास किया जाता है।
भाई-बहन का प्यार भी भूले
भाई बहन के पवित्र त्योहार रक्षाबंधन या भाई दूज को केंद्र में रखकर
भी कई फिल्में बनी हैं। रक्षाबंधन पर कई ऐसे गीत हैं जिनके बिना आज रक्षा बंधन का
त्योहार पूर्ण नहीं होता।
आजादी से पहले के दौर में रक्षाबंधन का त्योहार 1941 में आई फिल्म ‘सिकंदर’ में देखने को मिला
था। जिसमें राजकपूर ने सिंकदर की भूमिका निभाई थी। 1945 में महबूब खान ने ‘हुमायूं’ फिल्म में रक्षाबंधन
को दिखाया। जिसमें अशोक कुमार ने हुमायूं और वीना ने कर्णावती की भूमिका निभाई थी।
1959 आई फिल्म ‘छोटी बहन’ जिसका गाना – ‘भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना’ – आज भी हर किसी की जुबां पर है। 1971 में आई फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ का यह गाना – ‘फूलों का तारों का सबका कहना है’ - भला कौन भूल सकता है। 1970 में आई मनमोहन देसाई की फिल्म ‘सच्चा झूठा’ का यह गाना – ‘मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया’ – आज भी रक्षाबंधन का त्योहार हो या शादी का भाई अपनी बहन की लिए जरूर
गुनगुनाता है। 1974 में आई फिल्म ‘रेशम की डोरी’ में भाई-बहन का प्यार आज भी दर्शकों को याद है। ‘बहना ने भाई की कलाई
से प्यार बांधा है’ – गाना आज भी रक्षाबंधन के त्योहार पर गाया-बजाया जाता है। यहां तक कि साल
2000 में आई फिल्म ‘क्या कहना’ में प्रीती जिंटा पर फिल्माया एक गाना – ‘प्यारा भइया मेरा’ – अपने प्रिय भाई को समर्पित गाना था।
फिल्म ‘भाई ब्रदर निखिल’ में जूही चावला-संजय सूरी, फिल्म ‘जोश’ में शाहरुख खान-ऐश्वर्या राय,
फिल्म ‘फिजां’ में ऋतिक रौशन-करिश्मा कपूर, फिल्म ‘हम साथ-साथ हैं’ में नीलम और उनके तीन भाई सलमान,
सैफ, मोहनीश बहल और आशुतोष गोवारिकर की ‘जोधा अकबर’ में ऐश्वर्या राय और सोनू सूद की जोड़ियां भाई बहन के तौर पर ही
पर्दे पर उतारी गईं। लेकिन ये गिनतियां भी थोड़ी हैं।
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क्रिसमस पर 'टाइगर जिंदा है' |
कहने का आशय यह कि ईद के मौके पर रिलीज होने वाली फिल्म में ना तो ईद
का कोई पैगाम होता है और ना दीवाली के मौके पर रिलीज होने वाली फिल्म में रोशनी की
कोई गुंजाइश होती है। वास्तव में त्योहार का मौका इन फिल्मकारों के लिए एक बाजार
का अवसर ही होता है। इन्हें मूल्यों से वास्ता नहीं होता सिवाय कीमतों के। लेकिन
इन सबके बीच पति की लंबी उम्र के लिए वरदान मांगने वाला करवा चौथ ऐसा त्योहार है
जिसे फिल्मों में खूब दिखाया गया है। ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे’, ‘हम दिल दे चुके सनम’ ‘कभी खुशी कभी गम’ ‘बागवां’ जैसी फिल्मों करवा
चौथ को बड़े ही सलीके से दिखाया गया तो बॉक्स ऑफिस पर इसका नतीजा बेहतर देखने को
मिला। लेकिन जो फिल्मकार त्योहार के मौके को केवल अपनी फिल्म के रिलीज के लिए
जरूरी समझा, दर्शकों ने उसे भी लंबा याद रखना मुनासिब नहीं समझा।
(लेखिका बीएचयू में हिंदी विभाग की शोध छात्रा हैं।लिखने , पढ़ने एवं सामाजिक कार्यों में इनकी विशेष रुचि है। इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित होती रहती हैं।)
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(लेखिका बीएचयू में हिंदी विभाग की शोध छात्रा हैं।लिखने , पढ़ने एवं सामाजिक कार्यों में इनकी विशेष रुचि है। इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित होती रहती हैं।)
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