'कॉमर्शियल' और 'कमिटेड' - दोनों सब्जेक्ट में
वो नये दौर के 'गुरुदत्त' की तरह थे
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कुंदन शाह : 19 अक्टूबर, 1947-7 अक्टूबर 2017 |
कुंदन शाह, एक ऐसा व्यक्तित्व, जो मर कर भी अमर है। कुंदन शाह FTTI पुणे से
निकले हुए एक ऐसे निर्देशक थे, जो अपने साथियों की तरह ना तो वामपंथी थे, और ना ही पाश्चात्य फिल्मों से प्रभावित थे। व्यक्तिगत
रूप से उनकी कोई भी विचारधारा रही हो, पर वो उनकी फिल्मों में उभर कर नहीं आती थी। ये बात मैं इसलिये कह रहा हूं कि ‘अवॉर्ड वापसी गैंग’ में वो भी शामिल
थे।
कुंदन शाह, ‘कॉमेडी’ और ‘व्यंग्य’ के एक ऐसे ‘मास्टर’ थे, जिन्होंने, बहुत सालों बाद रंगमंच की ‘स्लैप्स्टिक कॉमेडी’ को सिनेमा के पर्दे पर साकार कर दिखाया था; और वो फिल्म थी ‘जाने भी दो यारों’। लोगों का मानना है कि अगर वो फिल्म आज बनती, तो सेंसर बोर्ड से पास नहीं हो पाती। लेकिन मुझे
लगता है कि शायद वो आज ऐसी फिल्म बनाते ही नहीं! क्योंकि वो बदलते ज़माने के साथ साथ अपने ‘सब्जेक्ट्स’ में भी बदलाव करते रहे जबकि उनके साथी अपनी-अपनी परिपाटी पर ही चलते रहे।
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फिल्म 'क्या कहना' : प्रीति जिंटा, सैफ अली खान और चंद्रचूड़ सिंह |
एक बार हम उनके काम पर नज़र डालें तो देखेंगे कि
चाहे उन्होंने टेलीविज़न भी क्यों ना किया हो, वहां भी विविधता थी। जैसे ‘ये जो है ज़िंदगी’, इस सीरियल में एक फैमिली है, जो अपने पास पड़ोस
के रहने वालों से परेशान है। यह एक ‘परिस्थितिजन्य’ कॉमेडी थी। जबकि ‘वागले की दुनिया’ एक ऐसा व्यंग्य था, जो सामाजिक और राजनैतिक स्थिति पर अपनी टिप्पणी
करता था। उन्होंने बीच-बीच में कुछ ऐपिसोड ‘नुक्कड़’ के भी किये, जो निम्न वर्ग की समस्याओं को उजागर करता था। उन्होंने विधु विनोद चोपड़ा के
साथ भी एक फिल्म ‘खामोश’ लिखी थी जोकि एक मर्डर मिस्ट्री थी।
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फिल्म 'कभी हां कभी ना' : शाहरुख खान, सुचित्रा कृष्णमूर्ति, नसीरुद्दीन शाह, सतीश शाह व अन्य |
फिर उन्होंने एक और फिल्म बनाई, ‘कभी हां कभी ना’। इसमें शाहरुख खान मुख्य किरदार में थे। ये एक
नाकाम लड़के की कहानी थी। फिर उनकी एक फिल्म आई ‘क्या कहना’ , जो एक कुंवारी गर्भवती लड़की की कहानी थी। इसमें
प्रीति ज़िंटा के साथ सैफ़ अली खाल और चंद्रचूड़ सिंह थे। ये एक अलग ही विषय
था। उसके बाद उन्होंने एक मर्डर मिस्ट्री बनाई, ‘हम तो मोहब्बत करेगा’। इस फिल्म में बॉबी देओल और करिश्मा कपूर ने
भूमिका निभाई थी। उसके बाद उन्होंने ‘दिल है तुम्हारा’ बनाई। इस फिल्म में प्रीति ज़िंटा के साथ रेखा और महिमा चौधरी थीं। ये दो बहनों
और एक मां के बीच की कहानी थी। जिसमें नाजायज़ संबंधों से पैदा हुई एक लड़की की
दास्तान थी। ये भी एक ‘कांट्रोवर्सियल’ विषय था। इस कहानी
की पटकथा राजकुमार संतोषी ने लिखी थी।
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फिल्म 'हम तो मोहब्बत करेगा': बॉबी देओल और करिश्मा कपूर |
फिर आई ‘एक से बढ़कर एक’, जो एक कॉमेडी थ्रिलर थी। इसमें सुनील शेट्टी और
रवीना टंडन जैसे कलाकार थे। इसकी पटकथा ‘दामिनी’ और ‘दबंग’ फेम दिलीप शुक्ला ने लिखी थी।
इतना सब देखने के बाद भी लोगों ने कुंदन शाह को ‘जाने भी दो यारों’ के दायरे में बांध दिया, जो इस फिल्मकार के साथ नाइंसाफी है। उन्होंने ऐसे-ऐसे
विषय उठाये जो सामाजिक संबंधों पर कटाक्ष तो थे ही, साथ ही वे व्यावसायिक फॉर्मूले की कसौटी पर भी
खरे थे। फिल्म का चलना या ना चलना, दर्शकों के हाथ में
होता है, लेकिन फिल्म अपनी तरह से बनाना तो निर्देशक के
हाथ में होता है। कुंदन शाह की सोच और उनकी ‘सेंस ऑफ कॉमेडी’ को छूना किसी के वश की बात नहीं थी। लेकिन अहम
सवाल तो यह है कि ‘जाने भी दो यारों’ जैसी एक ‘कल्ट’ फिल्म बनाने के बाद भी उन्हें वो जगह नहीं मिल पाई, जो उन्हें मिलनी चाहिये थी। इसकी वजह ये है कि वो एक ऐसे गुट के साथ जुड़ गये थे, जो ये नहीं जानता है कि उसे गुस्सा क्यों आता है?
कुंदन शाह, मेरी निगाह में अपने समय के गुरूदत्त थे। जिन्होंने एक सच्चे फिल्ममेकर
की तरह, हर तरह के विषय को छुआ, चाहे वो किसी भी विचारधारा का हो। यही बात
राजकपूर में भी थी। इसीलिये मैंने पहले ही कहा है, कि ऐसे फिल्मकार मर कर भी अमर ही रहते हैं।
कुंदन शाह जी को मेरी तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि।
-गौतम सिद्धार्थ
(लेखक ‘पिक्चर प्लस’ के सलाहकार संपादक तथा मुंबई में फिल्म निर्देशक और
स्क्रीन राइटर हैं। ) Email-pictureplus2016@gmail.com
वाह गौतम जी !!!...बहुत अच्छी प्रस्तुति है..!!😊
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंBahut badhiya likha sir..Badhaee.. shat shat naman kundan ji ko!!
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