48वां IFFI का समापन समारोह जाते जाते दे गया अहम संदेश
(रंग–एक)
“सिनेमा एकमात्र ऐसा माध्यम है जहां सिर्फ तीन घंटे में 'आदर्श न्याय' मिलता है और इस
फिल्म उद्योग का हिस्सा होकर वह गौरवान्वित महसूस करते हैं। जब हम अंधेरे कक्ष में
बैठते हैं तो हम अपने साथ बैठे व्यक्ति की नस्ल, वर्ण या धर्म नहीं पूछते हैं। हम समान रूप से फिल्म
देखते हैं और समान रूप से चुटकुलों पर हंसते हैं। हम समान भावना पर रोते हैं और
समान गाने गाते हैं। आज के दौर में इस तरह की एकता और एकीकरण की मिसाल कहां पाते
हैं जो हमे सिनेमा की दुनिया में देखने को मिलती है।"
-अमिताभ बच्चन (गोवा, IFFI 2017 के समापन पर दिया गया संदेश)
अमिताभ बच्चन का यह संदेश क्या उस संदर्भ में लिया जाना चाहिये जब जातीय
और मजहबी रंग देकर सिनेमा पर गाहे-बगाहे हमले किये जाते हैं। दरअसल हाल के दिनों
में सिनेमा में किये गये कुछेक चित्रणों पर किस तरह की अहसनशील प्रतिक्रियाएं
देखने को मिली हैं, यह किसी से छिपी नहीं हैं। न्यूज मीडिया हो या सोशल मीडिया सब
जगह इसका बड़ा असर देखने को मिल रहा है। सबसे ताजा मामला तो संजय लीला भंसाली
निर्देशित फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर उठा बवंडर है जो कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। राजस्थान
से शुरू हुआ विरोध का स्वर देश भर में पहुंच गया है। सामाजिक संगठनों के
विरोध और प्रदर्शन के रुख को देखते हुये कुछ राज्य सरकारों ने अपने-अपने प्रदेश में
‘पद्मावती’ फिल्म के प्रदर्शन
पर रोक भी लगा दी है जबकि फिल्म अभी रिलीज भी नहीं हुई है।
गौरतलब है कि ‘पद्मावती’ फिल्म पर उठे विवाद के पश्चात् सोशल मीडिया और न्यूज़ मीडिया में जिन फिल्मी सितारों की खामोशी
पर सवाल उठाये गये थे,उनमें एक नाम अमिताभ बच्चन का भी था। इस फेहरिस्त में मनोज
कुमार, हेमा मालिनी, अनुपम खेर, किरण खेर, परेश रावल, अक्षय कुमार, मधुर भंडारकर,
अशोक पंडित या फिर गायक सोनू निगम, अभिजीत, शान और बाबुल सुप्रियो आदि के कोई बयान
नहीं आये। बॉलीवुड से गहराई से ताल्लुक रखने के बावजूद इन फिल्मी सितारों ने ‘पद्मावती’ या उसका विरोध कर
रहे संगठन के बारे में कोई विचार व्यक्त नहीं किया। हालांकि इस बीच शत्रुघ्न
सिन्हा ने विरोध करने वालों पर जरूर सवाल उठाये थे। लेकिन अमिताभ बच्चन को सबसे
अधिक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा था। ऐसे में 48वें IFFI के समापन के मौके पर अभिताभ बच्चन ने जो सिनेमा का सामाजिक फलसफा प्रस्तुत
किया है उसे इसी संदर्भ में देखने की जरूरत है। अभिताभ बच्चन ने साफ कर दिया कि
सिनेकारों की मंशा हमेशा समाज का हित और उनका मनोरंजन करना है। समाज में वर्ग भेद
की मानसिकता और उस मानसिकता के दुष्परिणामों को दूर करने का संदेश देना ही सिनेमा
का अंतिम लक्ष्य है। जाति, लिंग, धर्म आदि के भेदभाव बॉलीवुड में कभी नहीं रहे। और
ना ही यहां के द्वारा प्रस्तुत किसी भी फिल्म का मकसद सामाजिक ताना-बाना को
बिगाड़ना या बहकाना है।
इस संदर्भ में अमिताभ बच्चन की एक फिल्म याद आती है-देशप्रेमी। जिसका
गीत यहां फिट बैठता है —
नफरत की लाठी तोड़ो
लालच का ख़ंज़र फेंको
ज़िंद के पीछे मत दौड़ो
तुम प्रेमी के पंछी हो...
मेरे देशप्रेमियो...आपस में प्रेम करो देशप्रेमियो...
IFFI के मंच से अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर अपने कलाकार की आत्मा की आवाज़
से देशवासियों को संदेश दिया कि सिनेकार का अंतिम लक्ष्य समाज का हित और मनोरंजन
है। इसलिये उनको निशाना बनाना वाजिब नहीं।
(रंग–दो)
IFFI
के समापन का दूसरा रंग भी कम आकर्षक और प्रेरक
नहीं था। अमिताभ बच्चन को ‘इंडियन फिल्म
पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर' के अवॉर्ड से नवाजा गया। अमिताभ बच्चन को यह अवॉर्ड बॉलीवुड के ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार और
सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने दिया। अवॉर्ड के लिए जैसे ही स्टेज पर
बिग बी को बुलाया गया अक्षय कुमार ने बिग बी के पैर छू लिये, तो माहौल एक भावुक हो गया। जिसके बाद बिग बी ने उन्हें गले से
लगा लिया।
अमिताभ-अक्षय का यह वीडियो तेजी से वायरल हो गया। अमिताभ बच्चन ने एक यूजर की फोटो को री-ट्विट करते हुए लिखा, “शर्मिंदा हूं कि अक्षय ने ऐसा किया...नहीं, अक्षय को ऐसा नहीं करना चाहिए था।“
अमिताभ-अक्षय का यह वीडियो तेजी से वायरल हो गया। अमिताभ बच्चन ने एक यूजर की फोटो को री-ट्विट करते हुए लिखा, “शर्मिंदा हूं कि अक्षय ने ऐसा किया...नहीं, अक्षय को ऐसा नहीं करना चाहिए था।“
खैर, यह अभिताभ बच्चन का अपना सद्व्यवहार था। लेकिन यहां अक्षय कुमार ने
जो भावुक अंदाज में संदेश दिया तो ना केवल अक्षय की आंखें बल्कि वहां मौजूद
दर्शकों की आंखें भी गीली हो गईं।
अक्षय कुमार ने बिग बी से जुड़ा अपने बचपन का एक वाकया सुनाया-“1980 की बात है। 12-13 साल की उम्र में मैं
अपने मां-बाप के साथ कश्मीर गया था और वहां साहब (अमिताभ बच्चन) शूटिंग कर रहे थे।
मैं इनकी शूटिंग दूर से देख रहा था तो मेरे पिताजी ने कहा, ‘जा बेटा ऑटोग्राफ ले
आ।’ तो मैं भाग के गया, तब साहब अंगूर खा रहे थे तो मैंने ऑटोग्राफ मांगा। तो जब सर ऑटोग्राफ
दे रहे थे तो मेरी नजर अंगूर पर थी, मुझे वो अंगूर चाहिए था। तब एक अंगूर नीचे गिर भी गया और जब वो लिख
रहे थे तब मैंने धीरे से वो अंगूर उठा लिया।
उन्होंने देख लिया लेकिन ऐसे प्रीटेंड किया जैसे इन्होंने देखा नहीं
और इन्होंने साइन करके मेरा ऑटोग्राफ बुक दिया और साथ में एक बड़ा सा अंगूर का
गुच्छा भी दिया। सर (अमिताभ बच्चन) मैं आपसे कहना चाहूंगा कि जो अंगूर आपने दिए थे
वो थोड़े खट्टे थे लेकिन मेरे लिए, एक बच्चे के लिए ऐसा था जैसे मुझे एक चॉकलेट का पूरा बॉक्स मिला है।
मैं उसे खा गया और वो उस वक्त डाइजेस्ट भी हो गए लेकिन ये कहूंगा सर कि उसकी महक
आज भी मेरे अंदर है। जो आपने किया वो हमेशा मैंने जिंदगी में याद रखा। मुझे नहीं
मालूम था कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में आऊंगा।
एक ऐसा ही हादसा मेरे साथ हुआ जब मैं ‘कीमत’ फिल्म की शूटिंग कर रहा था और मैंने देखा एक बच्चे को कोई धक्का मार के
निकाल रहा है शूटिंग से। तो बच्चा रो रहा था,
तो मैं वहां गया और बच्चे के साथ फोटो ली उससे
बातचीत की। वो बच्चा कोई और नहीं बल्कि रणवीर सिंह निकला। तो सर आपका जो प्रभाव है, आपकी जो पर्सनालिटी
है, उसकी निष्ठा मेरे अंदर बस चुकी है। एक्टिंग का बसना अभी भी बाकी है, मैं कोशिश कर रहा
हूं।...”
इसी दौरान अक्षय कुमार ने अमिताभ बच्चन को फादर ऑफ इंडस्ट्री भी कहा,
जोकि अमिताभ बच्चन के लिए किसी सार्वजनिक मंच से कहे गये अब तक के सबसे अधिक
सम्मानजनक शब्द हैं।
जाहिर है 48वां IFFI का समापन समारोह अपनी इन्हीं तस्वीरों और अल्फाजों को लेकर याद किया
जायेगा। अमिताभ बच्चन को सबसे बड़ा सम्मान मिला तो उन्होंने भी देशवासियों को देश
में सिनेमा की सामाजिक अहमियत और जरूरत का सबसे बड़ा संदेश दिया।
-संजीव श्रीवास्तव, संपादक, ‘पिक्चर प्लस’
(Email : pictureplus2016@gmail.com)
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