मिट्टी-पानी में घुलता ज़हर : ‘कड़वी हवा’
*वीणा भाटिया
एक समय था जब बॉलीवुड में प्रयोगधर्मी
फिल्में बना करती थीं। पर अब लीक से हट कर फिल्में कभी-कभार ही
बनती हैं। ऐसी फिल्में जब आती हैं तो उनकी विशेष चर्चा होना स्वाभाविक है। पिछले
दिनों कुछ ऐसी फिल्में बनीं और बॉक्स ऑफिस पर भी सफल रहीं। जाहिर है, दर्शकों का
नज़रिया अब बदल रहा है और यह मानने का कोई आधार नहीं है कि केवल मसाला फिल्में ही
पसंद की जाती हैं।
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'कड़वी हवा' का एक दृश्य |
जलवायु परिवर्तन और उससे पैदा होने वाली
सूखे व समुद्र के बढ़ते जलस्तर की समस्या को केंद्र में रख कर नील माधब पांडा ने ‘कड़वी हवा’ फिल्म बनाई है जो अपने आप में अनूठी है। नील माधब पांडा पहले डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाते रहे हैं। 2005 में उन्होंने
पहली डॉक्युमेंट्री ग्लोबल वॉर्मिंग पर आधारित बनाई थी। 2011 में उनकी पहली फीचर
फिल्म ‘आय एम कलाम’ आई। एक दशक के दौरान ही नील माधब की पहचान एक गंभीर व बेहतरीन फिल्मकार
के रूप में बनी।
मौसम बेघर होने लगे हैं...
क्लाइमेंट चेंज या जलवायु परिवर्तन की
समस्या दुनिया की सबसे प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन गई है। मौसम का चक्र बिगड़ता
जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप अल्प वृष्टि जैसी समस्या पैदा होती है और अकाल की
परिस्थितियां बन जाती हैं। दूसरी तरफ समुद्रों का जल-स्तर भी बढ़ने लगता है। तटीय शहरों
के डूबने की आशंका पैदा हो जाती है। यह एक विश्वव्यापी समस्या है और उस उद्योगिकीकरण
का परिणाम है जिसका लक्ष्य सिर्फ मुनाफा है। बाज़ार से जुड़ी व्यवस्था हर समस्या
का समाधान बाज़ार में ही ढूंढ़ लेती है। जब प्रदूषण के कारण हवा इतनी ज़हरीली और
दमघोंटू हो जाती है कि सांस लेने में भी परेशानी हो तो मास्क की बिक्री शुरू हो
जाती है और अंधाधुंध दोहन के कारण जब पानी पाताल में समा जाता है, तो उसका व्यवसाय
करने वाले भी सामने आ जाते हैं, जो मिनरल वॉटर बोतलों में पैक कर बेचते हैं। इस
तरह, प्रकृति ने जो चीज़ें सबके लिए सुलभ की है, उस पर भी चंद मुनाफ़ाखोर कब्ज़ा
जमा लेते हैं। ऐसे गंभीर विषय का फीचर फिल्म के लिए चुनाव कर नील माधब ने सराहनीय
काम किया है। पर्यावरण पर लगातार बढ़ते संकट को लेकर उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली
फिल्म बनाई है और उन ख़तरों की तरफ ध्यान खींचा है, जिनका सामना लोगों को करना पड़
रहा है। यही वजह है कि 64वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर (स्पेशल मेंशन) जिक्र किया गया। इसे एक उपलब्धि ही माना जाएगा, क्योंकि यह एक ऐसा दौर
है, जिसमें मानव-सभ्यता के भविष्य को प्रभावित करने वाले विषयों पर फिल्मकारों का
ध्यान नहीं के बराबर है। बॉलीवुड से सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दे गायब होते जा रहे
हैं और विशुद्ध मनोरंजन हावी है।
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संजय मिश्रा और रणवीर शौरी |
‘कड़वी हवा’ की कहानी
इस फिल्म की कहानी दो ज्वलन्त मुद्दों के
इर्द-गिर्द घूमती है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता जलस्तर और सूखे की समस्या
यानी बारिश का नहीं होना। फिल्म में सूखाग्रस्त बुन्देलखंड को दिखाया गया है। वहीं,
जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के बढ़ते जलस्तर की समस्या को दिखाने के लिए ओडिशा
के तटीय क्षेत्र को लिया गया है। बुन्देलखंड एक ऐसा इलाका है जो सूखे के लिए खासतौर
पर जाना जाता है। सूखे की समस्या के कारण यहां के किसान कर्ज के जाल में डूबे हैं
और उनकी आत्महत्याओं की ख़बरें भी आती रहती हैं। यहां तक कि साधनहीन ग्रामीण पेड़ों
के पत्ते उबाल कर खाने को मजबूर हो जाते हैं। इस इलाके से किसान बड़ी संख्या में
रोजी-रोजगार के लिए बड़े शहरों का रुख करते हैं, दूसरी तरफ इसी कारण यह राष्ट्रीय
राजनीति में भी चर्चा का विषय बना रहता है।
‘कड़वी हवा’ में मुख्य भूमिका संजय मिश्रा और रणवीर
शौरी ने निभाई है। संजय मिश्रा ने इस फिल्म में ग़ज़ब का अभिनय किया है। वे
बुन्देलखंड में रहने वाले एक ऐसे अंधे बूढ़े की भूमिका में हैं, जिसके बेटे ने
खेती के लिए बैंक से कर्ज लिया, पर सूखे के कारण फसल मारी गई और अब वह इस चिंता
में है कि कर्ज कैसे चुकाएगा। इधर, उसके बाप अंधे बूढ़े को यह भय सता रहा है कि
उसका बेटा कहीं कर्ज की चिंता में आत्महत्या न कर ले, क्योंकि उस इलाके के कई किसान कर्ज के जाल में फंस कर ऐसा चुके हैं। सिर्फ
वह अंधा बूढ़ा ही नहीं, इलाके के दूसरे किसानों को भी कर्ज चुकाने की चिंता है,
क्योंकि लगभग सभी ने कर्ज ले रखा है।
दूसरी तरफ, रणवीर शौरी एक रिकवरी एजेंट की भूमिका में हैं, जो ओडिशा के समुद्र तटीय इलाके का रहने वाला है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण वहां समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और उसे यह डर सताता रहता है कि कहीं उसका घर परिवार कहीं समुद्र में न समा जाए! वह जल्दी से जल्दी कर्ज वसूलना चाहता है, ताकि दूसरी जगह पर चला जाए और अपने परिवार के साथ सुरक्षित रह सके। इधर, अंधा बूढ़ा उससे कर्ज माफ कर दिए जाने की गुजारिश करता है। उसके मन में यह डर बैठ गया है कि उसका बेटा कहीं
आत्महत्या न कर ले। इसलिए वह किसी तरह कर्ज से छुटाकारा पाना चाहता है। दिखाया गया है कि शुरू में रिकवरी एजेंट उसकी बात नहीं मानता है, पर धीरे-धीरे उसे समझ में आ जाता है कि उनकी समस्याओं की वजह एक ही है। वे जलवायु-परिवर्तन से होने वाले नुकसान को समझने लगते हैं और इसे लेकर लोगों को जागरूक करना चाहते हैं।
अंधा बूढ़ा जिस गांव में रहता है, वहां
के बच्चे सिर्फ दो मौसम के बारे में जानते हैं, गर्मी और सर्दी। बरसात के मौसम के
बारे में उन्होंने सिर्फ किताबों में ही पढ़ा है, कभी देखा नहीं है। बच्चों को
बरसात के मौसम का कोई अनुभव नहीं। बूढ़ा अंधा किसान उन्हें बताता है कि पहले बरसात
वैसी ही होती थी, जैसी उनकी किताबों में लिखी है। किसान कहता है कि अब हवा ही कड़वी
हो गई है, जिसने बरसात को रोक दिया है। इसी हवा की वजह से बरसात खत्म हो गई
है। इसी का खामियाजा उसके घर और गांव वालों को भुगतना पड़ रहा है। बरसात नहीं होने
का मतलब है अनाज न होना, भूख, कर्ज, बीमारी और आत्महत्या। ऐसे विषय को नील माधब ने
बहुत ही प्रभावोत्पादक ढंग से चित्रित किया है। संजय मिश्रा और रणवीर शौरी का
अभिनय बहुत ही प्रभावशाली है।
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संजय मिश्रा का प्रभावशाली अभिनय |
यथार्थ दिखाती है फिल्म-पांडा
नील माधब पांडा इससे पहले भी पानी की
किल्लत को लेकर ‘कौन कितने पानी में’ फिल्म बना चुके हैं। वे उस इलाके से आते हैं जहां पानी की किल्लत की
समस्या है। स्वाभाविक है कि पानी और पर्यावरण के मुद्दे उन्हें खींचते हैं। पांडा का
कहना है कि यह फिल्म कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि यथार्थ है और जलवायु परिवर्तन की
मार झेल रहे लोगों की हालत को दिखाता है। यह एक चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों
से निबटने के लिए अभी ही तैयार हो जाएं, नहीं तो स्थितियां बद से बदतर होती चली
जाएंगी। फिल्म में संजय मिश्रा और रणवीर शौरी के साथ तिलोत्तमा शोमे की भी
प्रभावशाली भूमिका है। फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब है। उम्मीद की जा
सकती है कि स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड हासिल करने वाली यह फिल्म लोगों को पर्यावरण के
सवालों के प्रति जागरूक करेगी।
*(यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की फेलो रहीं वीणा भाटिया अनुवादक, फिल्म
समीक्षक, बाल गीतकार तथा पत्रकार हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट से इनकी एक पुस्तक भी
प्रकाशित है। दिल्ली में निवास। Email
– vinabhatia4@gmail.com, Mobile – 9013510023)
24 नवंबर को रिलीज होने वाली 'कड़वी हवा' पर यह लेख प्रेस शो में फिल्म देखने के बाद लिखा गया है।
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