कैसे बनी शशि कपूर और अमिताभ बच्चन की जोड़ी
सबसे हिट?
*संजीव श्रीवास्तव
अमिताभ जब संघर्ष कर रहे थे और जब भी शशि कपूर से मिलते तो शशि कपूर
अमिताभ के कंधे पर हाथ रख कर कहते-“एक दिन तुम्हारा वक्त आयेगा यंग मैन।“
जाहिर है तब अमिताभ को कोई नहीं जानता था जबकि शशि कपूर एक स्टार के
तौर पर स्थापित थे। लेकिन उसी अमिताभ के उदय के बाद जब राजेश खन्ना का सूरज डूबने
लगा, धर्मेंद्र की चट्टानी ताकत का असर मद्धिम पड़ गया तो वक्त ने शशि कपूर को उसी
अमिताभ की फिल्मों का विख्यात को-स्टार बना दिया। अमिताभ और शशि कपूर की जोड़ी वाली
फिल्में देखिये तो हमेशा अमिताभ बच्चन का किरदार शशि कपूर के किरदार से बड़ा और
बतौर मुख्य नायक रखा गया है। सत्तर और अस्सी के दशक के जिन युवा हो रहे दर्शकों ने
शशि कपूर की एकल भूमिका वाली फिल्में नहीं देखी थी बल्कि कहें कि केवल उनको
रोमांटिक गानों के लिए याद रखा था उन्होंने शशि कपूर को एंग्री यंग मैन अमिताभ के
को-स्टार के तौर पर अधिक याद रखा। ये वक्त-वक्त की बात थी। यह वह दौर था जब अमिताभ
का गुस्सा, अमिताभ के ठहाके, अमिताभ के चुटकुले, अमिताभ की चहलकदमी, नाचने-गाने और
पान चबाने या शराब पीने के अंदाज के साथ अपनी ही तरह की बॉक्सिंग शैली बाजार और
चर्चा की ट्रेंडिंग में थी तो शशि कपूर को अमिताभ बच्चन का फिल्मी ‘भाई’ और ‘दोस्त’ के तौर पर महज सह-कलाकार
बन कर रह जाना पड़ा था। जबकि रोटी कपड़ा और मकान में शशि कपूर के सहयोग से ही मनोज
कुमार ने अमिताभ बच्चन को छोटी सी भूमिका दी। लेकिन बाद के दिनों में शशि कपूर ‘दीवार’, ‘त्रिशूल’, ‘सुहाग’ आदि कई फिल्मों में
अमिताभ बच्चन के को-स्टार की तरह नजर आये।
दीवार में अमिताभ को मुख्य रोल देना
निर्देशक का फैसला था, और इस फिल्म में दोनों की जोड़ी ऐसी जमी कि इसके बाद
अमिताभ-शशि की दस के ऊपर हिट फिल्में आ गईं। बाजार की मांग के मुताबिक उस वक्त के
प्रोड्यूसर और डायरेक्टर ने उनको अमिताभ का सह-कलाकार का किरदार दिया था और
उन्होंने इसे कभी मना नहीं किया।
अमिताभ बच्चन के चर्चित को-स्टार के तौर पर विनोद खन्ना और शत्रुघ्न
सिन्हा का नाम भी बखूबी आता है। ‘आनंद’ और ‘नमक हराम’ के हीरो राजेश खन्ना तो पहले ही गुजर गये। ‘आनंद’ में अमिताभ राजेश
खन्ना के को-स्टार थे लेकिन ‘नमक हराम’ में राजेश खन्ना को अमिताभ बच्चन के को-स्टार की तरह पेश किया गया।
वक्त बाजारवाद के राइजिंग मोड में था। शशि कपूर को भी बॉक्स ऑफिस के इसी बाजारवाद
ने अमिताभ का को-स्टार बनाया। विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा या ऋषि कपूर तो अमिताभ
बच्चन के को-स्टार थे ही।
हालांकि हर को-स्टार का फ्लेवर अलग–अलग था। विनोद खन्ना की कद काठी
अमिताभ बच्चन की कद काठी से खासी मेल खाती थी, इसलिये पर्दे पर दोनों को एक साथ
देखकर दर्शकों के दिलों में अलग रोमांच पैदा होता था। जबकि शत्रुघ्न सिन्हा अपनी
बॉडी लेंग्वेज से अमिताभ बच्चन को ओवरलैप करने की चेष्टा करते थे तो दर्शकों को
इसमें भी एक अलग रोमांच आता था। लेकिन शशि कपूर के साथ अमिताभ बच्चन की कैमेस्ट्री
का रंग जरा हट कर था। शशि ना तो विनोद खन्ना की तरह अमिताभ के बरक्स कद्दावर थे और
ना ही शत्रुघ्न सिन्हा की तरह ओवर होने का प्रयास करते थे। वह अमिताभ के सामने
गहराई और सहजता से अभिनय करते थे। अमिताभ और शशि कपूर की सभी फिल्मों को गौर से
देखिये अमिताभ शशि के सामने अत्यधिक फास्ट नजर आते हैं; तेज भागते हुये,
बहुत ज्यादा बोलते हुये, शराब पीते हुये, ज्यादा से ज्यादा स्टंट करते हुये, अधिक
से अधिक रोल निभाते हुये लेकिन बीच-बीच में शशि की जब भी उपस्थिति होती वहां
अमिताभ की गति ठहर जाती थी। ‘दीवार’ के संवाद को याद कीजिये...’मेरे पास मां है’। इससे पहले अमिताभ लंबा संवाद बोल चुके होते हैं...लेकिन शशि कपूर का
एक वाक्य ही उनके चेहरे पर स्याह फैला देता है। यह स्याह किरदार का हिस्सा था
लेकिन शशि कपूर ने पॉज लेकर जिस अंदाज में कहा ‘मेरे पास मां है’, वह युगों युगों के लिए यादगार संवाद बन गया। यह शशि की गहरी
अदायगी का कमाल था।
दरअसल अमिताभ और शशि एक फिल्म साथ-साथ एक-दूसरे के पूरक नजर आते थे।
अमिताभ की फास्ट एक्टिंग और शशि का गहरा अभिनय तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर कर
देता था। इन फिल्मों से शशि के किरदार और अभिनय को अगर निकाल दें तो अमिताभ के
किरदार और अभिनय का महत्व उस गरिमा को प्राप्त नहीं करता जिसकी आज की तारीख़ में
व्याख्या की जाती है। यों अमिताभ ने एकल भूमिका वाली भी कई सुपरहिट फिल्में दी हैं
लेकिन शशि कपूर के साथ वाली फिल्मों के मायने कुछ अलग ही हैं। कहना गैर-मुनासिब
नहीं होगा कि वक्त ने भले ही शशि कपूर को अमिताभ बच्चन का को-स्टार बनाया और शशि
कपूर ने इसे सहजता से कुबूल किया लेकिन शशि जैसे अपने को-स्टार्स की महान् कला की
संगत से ही अमिताभ सुपरस्टार भी कहलाये।
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इस वजह की पड़ताल करने पर पता चलता है कि शशि कपूर के दिल में नये
प्रतिभाशाली कलाकारों के लिए बड़ी इज्जत थी। उन्होंने जब अमिताभ की प्रतिभा को
नजदीक से देखा तो उन्होंने उसे आगे बढ़ाने की ठानी। यह एक महान् कलाकार का कला के
प्रति समर्पण भाव था। और यही वजह है कि उन्होंने व्यावसायिक सिनेमा की कमाई को ‘उत्सव’ जैसी कला फिल्मों
में लगाया और ‘गुड सिनेमा’ को बढ़ावा दिया। उधर अमिताभ के दिल में भी शशि के व्यक्तित्व की
इन्हीं खूबियों के चलते खासा सम्मान रहा।। लिहाजा रील और रियल लाइफ़ में दोनों की
दोस्ती आगे भी बनी रही। शशि कपूर को कभी इस बात का मलाल नहीं हुआ कि उनसे जूनियर अमिताभ
को उनसे बड़ा रोल दिया गया। वस्तुत: शशि ने खुद को-स्टार रह कर अमिताभ को सुपरस्टार बनाने में बड़ा
योगदान दिया।
*लेखक ‘पिक्चर प्लस’ के संपादक हैं।
संपर्क-Email : pictureplus2016@gmail.com
(नोट-बिना पूर्व सूचना के इस टिप्पणी को कहीं प्रकाशित न करें।)
**सभी फोटो नेट से साभार।
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