बॉलीवुड वार्ता
अजय ब्रह्मात्मज/संजीव श्रीवास्तव*
सिल्वर स्क्रीन
2017 के आईने में 2018 की तस्वीर
संजीव श्रीवास्तव : अजय जी, वैसे तो हर साल कुछ ना कुछ देकर जाता है लेकिन साल 2017 की
बात करें तो ऐसा क्या खास लगता है जो बॉलीवुड इस साल हमें दे गया। 2017 को हिन्दी सिनेमा
के नजरिये से किस रूप में यादगार साल माना जाना चाहिये। ऐसी कौन सी फिल्म रही या
कौन सा सितारा रहा जिन्हें हम इस साल की देन कहें।
अजय ब्रह्मात्मज : मैं 2017 को
राजकुमार राव की उपलब्धि का वर्ष मानता हूं साथ ही राजकुमार राव को बॉलीवुड की एक
उपबल्धि के तौर पर भी गिनता हूं। राजकुमार राव ने हिन्दी सिनेमा हो या वेब सीरिज, दोनों
में अपना कमाल दिखाया है। हमें एक भरोसेमंद अभिनेता मिल गया है। उनका बैकग्राउंड
देखिये, हरियाणा के रहने वाले हैं और FTII से निकले हैं। लंबे समय के बाद FTII से पासआउट कोई अभिनेता मिला है। इससे छोटे शहरों से आने वाले
अभिनेताओं को भी प्रेरणा मिलती है कि सरकारी संस्थान से भी वो सीख-पढ़कर अपना
मुकाम हासिल कर सकते हैं।
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राजकुमार राव : मेहनत और प्रतिभा की कामयाबी |
संजीव श्रीवास्तव : इसका मतलब यह हुआ कि आज की तारीख़ में भी प्रतिभा को अच्छी पहचान मिल
रही है। जैसाकि आमतौर पर कहा जाता है कि आज बॉलीवुड परिवार में अगर किसी की पैठ
नहीं है तो वह अभिनेता या अभिनेत्री नहीं बन सकते। इस धारणा को तोड़ने वाले
राजकुमार राव सबसे ताजा उदाहरण हैं।
अजय ब्रह्मात्मज : बिल्कुल। सही मौके मिलते जायें और सही मौके को साबित करते जायें तो पहचान
बन जाती है। कई बार युवाओं को मौका तो मिलता है लेकिन उस खरे नहीं उतर पाते हैं।
संजीव श्रीवास्तव : लेकिन कई बार प्रतिभाशाली अपनी सफलता को संभाल भी नहीं पाते हैं।
अजय ब्रह्मात्मज : वो फेज राजकुमार
राव की जिंदगी में भी आयेगा और देखना होगा कि वो खुद को कैसे संभाल पाते हैं।
लेकिन सफलता से पहले जरूरी है कि जो मौका आपको मिला है उस पर आप खरा उतरें।
क्योंकि बाहर वालों को बार-बार मौके नहीं मिलते।
संजीव श्रीवास्तव : 2017 की कुछ फिल्मों की चर्चा करें तो ऐसा लगता है इस साल ‘कड़वी हवा’, ‘पंचलैट’, ‘न्यूटॉन’, ‘हिन्दी मीडियम’ आदि ऐसी फिल्में
रहीं जिसने मुख्यधारा के सिनेमा को नया समानांतर सिनेमा की तरह आईना दिखाने का भी
काम किया।
अजय ब्रह्मात्मज : बिल्कुल सही कह रहे
हैं। लेकिन इसमें मुझे एक ही दिक्कत दिखती है। जिसके बारे में हमें गंभीरता से
सोचने और उसके अप्रोच को बदलने की जरूरत है। क्योंकि इन फिल्मों की चर्चा जब तक
अंग्रेजी मीडिया द्वारा नहीं होती तब तक वो पूरे देश में स्वीकार्य नहीं होतीं। जबकि
हिन्दी वाले भी उतना ही बेहतर लिख रहे हैं। अच्छी फिल्मों की खूब तारीफ भी कर रहे
हैं। लेकिन हिन्दी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक हिन्दी में लिखी समीक्षा को
बिल्कुल नजरअंदाज कर देते हैं। किसी भी फिल्म के रीव्यू एड देखें तो उनमें
अंग्रेजी अखबारों के समीक्षकों को अधिक हाइलाइट किया जाता है। हिन्दी फिल्म निर्माता-निर्देशकों
को समझना होगा कि हमारा दर्शक कहां है?‘अनारकली ऑफ आरा’ और ‘पंचलैट’ जैसी फिल्मों पर हिन्दी वालों ने खूब लिखा है।
संजीव श्रीवास्तव : जी, इस मुद्दे को फोकस करके हमलोग विस्तार से आगे बात करेंगे। लेकिन साल
2017 के आईने में साल 2018 का कैसा अक्स देखते हैं आप? अभी तक जिन-जिन
फिल्मों के बारे में हम तक सूचनाएं हैं, उनके आधार पर।
अजय ब्रह्मात्मज : आज की फिल्मों में जिस
तरह से छोटे शहरों के किरदार और कहानी का चित्रण बढ़ा है, वह आगे भी देखने को
मिलेगा। क्योंकि जिस तरह से यूपी सरकार और झारखंड सरकार ने फिल्म निर्माण में
सहयोग को बढ़ावा दिया है, उससे हिन्दी फिल्मों को नई जमीन मिली है। मैं तो चाहूंगा
दूसरे प्रदेश भी इस परंपरा को आगे बढ़ायें।
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'पैडमैन' मेंं अक्षय कुमार : नया विषय अलग पहचान |
संजीव श्रीवास्तव : साल 2018 की आने
वाली बड़ी फिल्मों की सूची पर नज़र डालते हैं तो ऐसा लगता है यह साल अक्षय कुमार
का होने जा रहा है? अक्षय कुमार की इस साल पांच फिल्में आने वाली हैं।
अजय ब्रह्मात्मज : 2017 भी एक तरह से
उन्हीं का रहा है, संभव है कि 2018 भी उनका हो जाये। बहुत ही अनुशासन के साथ कई
फिल्में एक बार में करते हैं अक्षय। परिवार के लिए समय निकाल लेते हैं, प्रमोशन
में भी चले जाते हैं। दूसरे कि इन दिनों वो कुछ ऐसी फिल्मों का चयन कर रहे हैं
जिससे भी उनको काफी चर्चा मिल रही है। इन फिल्मों में राष्ट्रीय या कहें कि
सामाजिक जरूरतों के मुद्दे को उठाया गया है। उनको ऐसी फिल्में और कहानियां मिल भी
रही हैं। लेकिन दर्शकों को जानना जरूरी है कि इसी बीच वो ‘हाउसफुल’ भी करने जा रहे
हैं। इसलिये अक्षय कुमार को पता है कि उनको क्या करना है। वो फ्रंट स्टॉल दर्शक को
भी नाराज नहीं करना चाहते हैं।
संजीव श्रीवास्तव : इधर कुछेक बार से देखा जा रहा है कि साल के अंत में कोई बड़े स्टार की
बड़े बजट वाली फिल्म आती है जिसकी चर्चा अगले साल तक भी शुमार रहती है। जैसे कि
2016 के अंत में ‘दंगल’ आई तो अगले साल भर चर्चित रही, उसी तरह 2017 के अंत में ‘टाइगर जिंदा है’ आई तो 2018 में भी
चर्चा और कलेक्शन हासिल कर रही है।
अजय ब्रह्मात्मज : ‘टाइगर जिंदा है’ की धमक रहेगी। इस फिल्म का आना
यशराज फिल्म्स के लिए भी काफी शुभ रहा। क्योंकि पिछले साल यशराज बैनर की फिल्म
नहीं चली। ‘टाइगर जिंदा है’ की सफलता से उनका आर्थिक पक्ष मजबूत होगा और अच्छी फिल्में भी लेकर
आयेंगे। अगले साल उनकी कई बड़ी योजनाएं हैं।
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2018 में भी कमाई करता रहेगा 'टाइगर...' |
संजीव श्रीवास्तव : ‘टाइगर जिंदा है’ के साथ ही सलमान खान के यूएसपी भी बात कर लेते हैं। क्या ऐसा नहीं
लगता कि हाल के सालों में सलमान के लिए फिल्म में कहानी कोई मायने नहीं रखती है।
सलमान खुद में एक कहानी हैं। जिस फिल्म में सलमान का एक्शन और रोमांस शुरू से अंत
तक रहता है, वह सुपरहिट होती है। ‘ट्यूबलाइट’ कम चली तो इसलिये कि उसमें सलमान का ना तो जाना पहचाना एक्शन था और
ना वो स्क्रीन पर छाये हुये थे।
अजय ब्रह्मात्मज : सलमान खान की छवि
ऐसी बन गई होगी लेकिन मैं इस विश्लेषण से
पूरी तरह सहमत नहीं हूं। ‘ट्यूबलाइट’ का विषय अलग था, इस कारण उस फिल्म को दर्शक ज्यादा नहीं मिल पाये। वैसे
भी उस फिल्म ने बुरा बिजनेस नहीं किया था। खुद सलमान को वह फिल्म बहुत पसंद है।
हां, यह सच है कि सलमान का इमेज ऐसा बन गया है कि जिसमें उनका एक्शन होता है वह
फिल्म खूब चलती है।
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'ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान' : अमिताभ और आमिर एक साथ |
संजीव श्रीवास्तव: शाहरूख खान का 2017 तो रहा नहीं, अब 2018 में उनका हाल देखना है। लेकिन आमिर खान इस साल फिर एक नये गेटअप में आ रहे हैं वो भी अमिताभ बच्चन के साथ। दिलचस्प बात कि यह फिल्म भी साल के अंत में आ रही है जिसकी चर्चा अगले साल भी रह सकती है।
अजय ब्रह्मात्मज : जी, ‘ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान’ फिल्म को लेकर आमिर खान काफी उत्साहित हैं। संभव है कि यह उनकी आखिरी फिल्म हो! इसके बाद वो अलग किस्म की फिल्में करने जा रहे हैं। शायद लोगों को मालूम हो कि आमिर जल्द ही मल्टीबजट फिल्म ‘महाभारत’ करने जा रहे हैं।
संजीव श्रीवास्तव : सुना है एक हजार करोड़ बजट है इस फिल्म का।
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अजय ब्रह्मात्मज |
अजय ब्रह्मात्मज : एक हजार करोड़
इसलिये कि यह फिल्म दस खंडों में बनेगी। भारत के लिए यह बड़ी बात होगी। हम उम्मीद
करते हैं कि मिथक 21वीं सदी के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी सिनेमा में दिखाई देगा। मेरे
पास जो जानकारी है उसके मुताबिक आमिर के बाद दूसरे कई प्रोडक्शन हाउसेस भी माइथो
को सिनेमा में लेकर आने वाले हैं।
संजीव श्रीवास्तव : अब हिन्दी में भी अभित्रियों के शादी करने और मां बनने के बाद वापस
होने का चलन बढ़ा है। इस साल रानी मुखर्जी, करीना कपूर और ऐश्वर्या राय की भी
फिल्म आ रही हैं।
अजय ब्रह्मात्मज : देखिये अब हमारी
सोच बदलने लगी हैं। इनकी फिल्में अच्छी होंगी तो जरूर कामयाब होंगी। वैसे इनको जिस
तरह की फिल्में मिली हैं उनमें उस तरह का ग्लैमरस रोल नहीं है जिसके लिये उनको
जाना जाता रहा है। ‘हिचकी’, ‘वीरे दी वेडिंग’ या ‘फन्ने खां’ जैसी फिल्मों का ढांचा जरा हटकर है। अपने यहां की सोच पर मैंने पहले
लिखा था कि एक जमाने में भारतीय दर्शक शादीशुदा अभिनेत्री को सपने में भी नहीं
लाना चाहते थे। लेकिन चलिये अच्छा है अब शादीशुदा हीरोइनों को भी फिल्में मिल रही
हैं। स्वागत है उनका।
*(अजय ब्रह्मात्मज वरिष्ठ फिल्म पत्रकार और विश्लेषक हैं। इन्होंने
सिनेमा पर कई पुस्तकें लिखी हैं। मुंबई में निवास।
संजीव श्रीवास्तव ‘पिक्चर प्लस’ के संपादक हैं।
दिल्ली में निवास।)
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