‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद कुमार से
जीवनीपरक
सिनेवार्ता;
भाग–तेरह
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विनोद मेहरा पर गिरी थी सिफ़ारिश कराने की गाज |
इस तरह पीले, लाल, नीले और काले रंग के चार सिलेंडर होते थे। वांछित रंग की बेहद पतली स्याही पूरे सिलेंडर को लपेट लेती। फिर एक रबड़ जैसा वाइपर उसे साफ़ करता। परिणाम यह होता कि कुओं में भरी स्याही के अतिरिक्त सारा सिलेंडर साफ़ हो जाता। अब छपने वाले काग़ज़ पर स्याही उलट जाती। तत्काल एक और उपकरण काग़ज़ को तपा कर स्याही सुखा देता। अब वही काग़ज़ दूसरे सिलेंडर के संपर्क में आता। मशीन इतनी तेज़ी से चलती थी कि देखते देखते सैकड़ों प्रतियां छप और जिल्द बंध कर निकल आतीं। जिसे ‘मेकरेडी’ कहते हैं तकनीकी भाषा मेँ, यानी फ़ाइनल छपाई शुरू करने से पहले की तैयारी, उस में ही कई सौ कापियां खप जातीं। ‘माधुरी’ का पहला अंक छपने का तमाशा मैंने स्वयं खड़े होकर देखा था और चमत्कृत रह गया था।
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अरविंद कुमार |
राम हिंगोरानी का एक मित्र था विनोद मेहरा। बाद
मेँ वह लोकप्रिय अभिनेता बना, मेरा मित्र पहले ही बन चुका था। यूं तो वह 1958
से बाल कलाकार के रूप में काम करने लगा था पर उसके बाद कुछ साल विलीन सा रहा। 1965
में फ़िल्मफ़ेअर-यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स के टेलेंट कंटैस्ट मेँ राजेश खन्ना चुना
गया था। विनोद नंबर दो था। उसकी पहली फ़िल्म आई 1971 में तनुजा के साथ ‘एक
थी रीता’। उसके बारे में तब से ‘माधुरी’
कुछ न कुछ छपता ही रहता था। आपको शायद मालूम हो उसकी मतवाली रेखा ने उसके लिए ‘टिक
20’ खा लिया था! बाद में बिंदिया गोस्वामी से उसका घनिष्ठ संबंध
रहा।
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रेखा से भी थे विनोद मेहरा के नज़दीकी रिश्ते |
टाइम्स का जिम्मा जैन परिवार के बड़े बेटे अशोक
जैन पर था। छोटे बेटे आलोक जैन फ़िल्मों के ही नहीं जीवन के भी शौक़ीन थे। न जाने
कैसे वह मेरे निकट आते गए। अपने दु:ख-दर्द बांटते, अपनी आकांक्षाओँ की
बातें करते। कुछ फ़िल्मवालों से अपने संबंध स्पष्ट करते। एक बार उन्होंने विनोद की
सिफ़ारिश की। मुझे यह क़त्तई मंज़ूर नहीं था कि मालिकों में से कोई संपादित
सामग्री में हस्तक्षेप करे। मैं चुप रहा। विनोद मिला तो मैंने कहा, “तुमने
आलोक जी से कहलवाया है, तो दो साल तक तुम्हारा फ़ोटो नहीं छपेगा ‘माधुरी’ में।” वह
बेचारा कहता रहा कि उसने आलोक जी से कुछ नहीं कहलवाया था। जो भी हो, दो साल तक वह ‘माधुरी’ में
नहीं छपा।
विनोद की कुछ प्रसिद्ध फ़िल्में ‘अमर प्रेम’, ‘अनुराग’, ‘अमरदीप’, ‘लाल पत्थर’, ‘बेमिसाल’, ‘अनुरोध’ स्मरणीय हैं।
विनोद की कुछ प्रसिद्ध फ़िल्में ‘अमर प्रेम’, ‘अनुराग’, ‘अमरदीप’, ‘लाल पत्थर’, ‘बेमिसाल’, ‘अनुरोध’ स्मरणीय हैं।
मई 1978 में जब एक दो दिन बाद मैं बंबई छोड़ रहा
था तो सन ऐन सैंड होटल में मीना ब्रोका से विनोद के विवाह पर पार्टी में हमारा
पूरा परिवार शामिल हुआ था। तबके कई फ़ोटो मेरे पास हुआ करते थे। पता नहीँ वे कहां
हैं। सन् 1990 में पैंतालीस साल की उम्र में विनोद संसार से विदा हुआ। मुझे खेद है
कि बंबई छोड़ने के बाद विनोद से संपर्क नहीं रह पाया।
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सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
संपर्क - arvind@arvindlexicon.com / pictureplus2016@gmail.com
(नोट : श्री अरविंद कुमार
जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है।
इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा। संपादक-पिक्चर प्लस)
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