सिनेमा की बात
*अजय ब्रह्मात्मज / संजीव श्रीवास्तव
![]() |
"साथ फिल्में की अब राजनीति भी करेंगे" |
संजीव श्रीवास्तव : अजय जी, दक्षिण के एक और सुपरस्टार ने सियासत के गलियारे में कदम रख
दिया। जाहिर है हम बात कमल हासन की कर रहे हैं। इसे किस तौर पर देखते हैं आप?
अजय ब्रह्मात्मज : देखिए कमल हासन बहुत सोच समझ कर राजनीति में आए हैं। किसी तरह की
प्रतिक्रिया में उन्होंने यह कदम नहीं उठाया है। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में भी
कहा कि वो पिछले पैंतीस सालों से समाजिक तौर पर सक्रिय थे लेकिन उसे कभी भी
राजनीतिक रंग नहीं दिया। लेकिन शायद अब उन्हें ऐसा लगा है कि जिस तरह से तमिलनाडु
की राजनीति में एक प्रकार का खालीपन आ गया है तो उन्हें भी राजनीति में आ जाना
चाहिए। इससे पहले रजनीकांत ने भी राजनीति की पारी का एलान किया है। मैं तो समझता
हूं कि इन दोनों ही सितारों का राजनीति में आने का सकारात्मक स्वागत किया जाना
चाहिए। इससे राजनीति को नई दिशा मिलेगी।
संजीव श्रीवास्तव : ये दोनों ही सितारे दक्षिण के सुपर स्टार ही नहीं हैं, बल्कि देश भर
में भी इनका प्रभाव है। आगे अगर दोनों आमने सामने होते हैं तो फिर उसी परंपरा का
विस्तार होगा जो जयललिता और करुणानिधि की प्रतिद्वंद्विता में दिखती रही है। लेकिन
रजनीकांत बहुत लोकप्रिय हैं तो कमल हासन की उपस्थिति एक संजीदा अभिनेता की रही है।
दोनों की टक्कर में भारी कौन पड़ने वाला है?
अजय ब्रह्मात्मज : मैंने इस संबंध में
तमिलनाडु में कई लोगों से बात की है। मेरे पास जो फीडबैक है उसके मुताबिक रजनीकांत
का राजनीतिक प्रभाव उतना नहीं है जितना कि कमल हासन का है। रजनीकांत की लोकप्रियता
केवल सिनेमाई है, सामाजिक नहीं। लेकिन कमल हासन ने सिनेमा के साथ-साथ अपनी
सामाजिक-राजनीतिक सक्रियताओं और वक्तव्यों से एक हस्तक्षेप भी किया है। उनका विज़न
क्लियर है। वो क्या करना चाहते हैं उन्होंने साफ कर दिया है। जब स्टालिन ने कहा कि
वो तो कागज के फूल हैं, तो कमल ने जवाब दिया–मैं तो बीज हूं मुझे बो दो मुझे उगने
का मौका दो।यह बहुत ही रचनात्मक जवाब था। उन्होंने यह भी कहा है कि मैं फिल्म
कलाकार के तौर पर नहीं मरना चाहता। यह एक बड़ा वक्तव्य है। यह वक्तव्य उनकी
सामाजिक राजनीतिक उद्देश्यों को जाहिर करता है।
![]() |
"जब हम युवा थे" |
संजीव श्रीवास्तव : रोमांटिक और नाच गाने के दौर के बाद कमल हासन ने कुछ ऐसी फिल्मों को दिखाया है जिनमें सामाजिक, राजनीतिक संदेश और सवाल प्रखर तौर पर सामने आए हैं। ‘हे राम’ और ‘दशावतारम’ जैसी फिल्में उनकी सोच को रौशनी देती रही हैं। तो क्या अब सियासत में आने के बाद उनके विज़न में भी कहीं ना कहीं इन फिल्मों के कथ्य का असर देखा जा सकता है?
अजय ब्रह्मात्मज :जरूर देखा जा सकता है। उन्होंने अपने बयानों में, फिल्मों में जो
संदेश दिए हैं वो उनकी विचारधारा को दर्शाते हैं। कहीं ना कहीं उनकी राजनीतिक दिशा
में भी इसका असर जरूर होगा। संभव है तमिलनाडु या कहें कि पूरे दक्षिण में जिस तरह
की राजनीति की परंपरा रही है उसमें कमल हासन थोड़ा अलग किस्म का काम कर सकेंगे।
क्योंकि कमल हासन और रजनीकांत का एक्सप्रोजर तमिलनाडु की सीमा से बाहर भी है। ये
स्टार दक्षिण की पूरी सियासी तस्वीर को बदल सकते हैं।
संजीव श्रीवास्तव : सितारों की सियासत पर हमलोग बात कर रहे हैं तो यहां एक सवाल यह भी
बनता है कि आखिर क्यों दक्षिण की तरह उत्तर भारत की राजनीति में कोई सितारा ‘लीडर’ नहीं कहलाता, केवल
शोभा की वस्तु बन कर रह जाता है? इस संबंध में मुझे सुनील दत्त के अलावा दूसरे कोई अभिनेता नज़र नहीं
आते जिनकी राजनीति ग्रासरूट्स से होकर गुजरती हो? ऐसा क्यों?
![]() |
अजय ब्रह्मात्मज |
अजय ब्रह्मात्मज : देखिए दक्षिण भारत के जो बड़े अभिनेता हुए हैं उनका अपना
ग्रास्टरूट्स पहले से रहा है। उनके फैन ग्रास्टरूट्स से जुड़े हैं। सामाजिक तौर
सक्रिय रहते हैं। लेकिन हिंदी फिल्मों के सितारे जोकि सियासत में गए हैं उनमें ऐसा
नहीं है। बस, ज्यादातर फिल्मों से ही नाता रहा है। हालांकि हेमा मालिनी जी के बारे
में सुना है कि वो अपने क्षेत्र में जाती हैं और लोगों से जुड़ती हैं। लेकिन ऐसे
नजीर बहुत कम हैं। दरअसल इसका बड़ा कारण यह भी है कि इनका कोई संसदीय क्षेत्र नहीं
होता। ये लोकप्रिय सितारे हैं और ये कहीं से भी चुनाव में खड़े हो सकते हैं। हेमा
जी मथुरा ही क्यों, दूसरे संसदीय क्षेत्र से भी जीत सकती थीं। यानी हिंदी में
सितारों का अपने संसदीय क्षेत्र से रिलेशन ही नहीं बन पाता। तो जाहिर है कि जब रूट
ही नहीं होगा तो ग्रासरूट्स कहां से बनेगा?
![]() |
संजीव श्रीवास्तव |
संजीव श्रीवास्तव : राजनीतिक लड़ाई में भावुकता और विज़न का स्थान भविष्य में जाकर
सुरक्षित नहीं रह पाता। अमिताभ बच्चन भी आए थे और भावुक होकर लौट गए। अब कमल हासन
भी आ गए हैं। जब असली राजनीतिक रस्साकशी शुरू होगी, तब क्या होगा? क्योंकि कमल हासन
जितने अच्छे अभिनेता हैं, जितने सामाजिक उनके विज़न हैं और उतने ही वो भावुक भी
हैं।
अजय ब्रह्मात्मज : नहीं, मैं ऐसी उम्मीद नहीं करता कि वे भावुक होकर लौटेंगे। उन्होंने
जो पार्टी बनाई है उसका नाम ही अपने आप में काफी कुछ कहता है। मक्कल नीधि मय्यम का
हिंदी में उसका अर्थ है-जन न्याय केंद्र। जाहिर है उन्होंने कुछ सोचकर यह नाम रखा
है। मुझे नहीं लगता कि कम हासन भावुकता के शिकार होंगे।
*(अजय ब्रह्मात्मज
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक हैं। इन्होंने सिनेमा पर कई पुसत्कें लिखी हैं।
विश्वविद्यालयों में सिनेमा पर व्याख्यान देते हैं। मुंबई में निवास।
संपर्क-9820240504
संजीव श्रीवास्तव ‘पिक्चर प्लस’ के संपादक हैं। दिल्ली में निवास।
संपर्क-pictureplus2016@gmail.com)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें