-संजीव श्रीवास्तव
चुलबुली नैनों की अदाओं से दर्शकों के दिलों को चीर देने वाली उस
बेनज़ीर की आंखें अब सदा के लिए बंद हो गईं। नैनों में सपना, सपनों में सजना…जैसे गीत गाकर
दर्शकों का सालों तक मनोरंजन करने वाली वह दिलकश अदाकारा अब ना जाने कौन सा सपना
संजोये हमेशा हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गईं। अपने जिन सुर्ख लबों पर श्रीदेवी
ने मोहब्बत के कई नगमे गुनगुनाये लेकिन अब वो लब खामोश हो गये। तराशी हुई भंवों के
बीच माथे पर लाल बिंदिया को देखिए-कभी ‘चांदनी’ नामक फिल्म आई तो बाजार में चांदनी छाप साड़ी से लेकर बिंदिया तक की
बहार आ गई लेकिन अब ये बिंदिया अपना आखिरी नूर बिखेरने को विवश दिख रही थी। जिस
श्रीदेवी ने मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां गाकर और उस गाने पर अपनी अदायें लहरा
कर हिन्दुस्तान में शुद्ध पारिवारिक मनोरंजन का एक नया जलसा प्रस्तुत किया था, उस
अदाकारा की हथेलियों की चूड़ियां जैसे अब रूठ गईं, खनकना भूल गईं।
दरअसल श्रीदेवी महज एक अदाकारा नहीं बल्कि एक फिल्म शख्सियत थीं। जब
हिंदी फिल्म उद्योग में आईं तो उनसे सीनियर अदाकारा मसलन-हेमा मालिनी, रेखा, ज़ीनत
अमान, परवीन बॉबी, रीना रॉय आदि की सिल्वर स्क्रीन पर तूती बोलती थीं, उनके सामने
अपनी पहचान बनाना-बहुत आसान नहीं था। ऊपर से हिंदी-विंदी की समस्या। इसके बावजूद साहस
नहीं खोया उन्होंने ‘हिम्मतवाला’ की, उस जीतेंद्र जैसे कलाकार के साथ जोकि बॉलीवुड में लंबे समय से
काम कर रहे थे, और श्रीदेवी से उम्र में करीब बीसेक साल बड़े थे। फिल्म ने ऐसा
करिश्मा दिखाया कि ना केवल श्रीदेवी बल्कि जीतेंद्र के फिल्मी कैरियर की दूसरी
पारी भी चल निकली। इसके बाद श्रीदेवी का फिल्मी कारवां ना रुका और ना श्रीदेवी ने
पीछे मुड़कर देखा। तोहफा, मवाली, मि. इंडिया, नगीना, इंकलाब, चांदनी, आखिरी
रास्ता, खुदा गवाह जैसी फिल्मों ने साबित कर दिया कि श्रीदेवी अपने सीनियर
अभिनेत्रियों के हाशिये पर जाने का परफेक्ट रिप्लेसमेंट दे सकती हैं। वास्तव में
सिल्वर स्क्रीन पर श्रीदेवी का पदार्पण तब होता है जब ऊपर गिनाई गईं अभिनेत्रियां
अपने ढलान पर थीं और उनका फिल्मी करियर कहीं ना कहीं किनारा ले रहा था-ऐसे में
फिल्म उद्योग को भी एक ऐसी अभेनेत्री की तलाश थी-जो इन सभी अभिनेत्रियों की
खूबियों को समेटे हो। वाकई यह तलाश चुनौतीपूर्ण थी। लेकिन जब फिल्म निर्माताओं-निर्देशकों
ने अपनी इस तलाश को पूरी करने के लिए श्रीदेवी पर दांव लगाया तो श्रीदेवी ने भी
उनकी अपेक्षाओं पर पूरी तरह से खरी उतरने का प्रयास किया और उसमें कामयाबी पाई।
हिंदी सिनेमा के उद्योग के हर दौर में कई अभिनेत्रियों ने कई
अभिनेताओं के लडखड़ाते कैरियर को संभाला है, उसे एक मुकाम दिया है। श्रीदेवी का
साथ पाकर जीतेंद्र को फिर से ट्रैक मिला, ऋषि कपूर का फिर से सोलो आ सका, राजेश
खन्ना को ‘मास्टर जी’ फिल्म मिली तो अमिताभ बच्चन को ‘खुदा गवाह’ और ‘आखिरी रास्ता’ गोयाकि इससे पहले वह ‘इंकलाब’ कर चुकी थीं। यहां तक कि जिस जया प्रदा को तब श्रीदेवी के साथ
स्क्रीन शेयर कराया गया वह श्रीदेवी के प्रभाव से ही संभव हो सका। जया प्रदा को तब
श्रीदेवी के कॉम्पीटिशन में साथ उतारा गया था। यानी इसमें भी श्रीदेवी की प्रेजेंस
और सक्सेस का अहम रोल था। तब श्रीदेवी के नाम पर टिकट खिड़की पर भीड़ टूटती थी तो
जाहिर है बॉलीवुड में पहली बार किसी हीरोइन की फीस एक करोड़ तक पहुंच जानी थी।
यानी कई पुरुष अभिनेताओं से भी ज्यादा। लिहाजा श्रीदेवी को फर्स्ट फीमेल सुपरस्टार
का तमगा यूं ही नहीं दे दिया गया।
उनकी फिल्मोग्राफी को वर्गीकृत करें तो हम देखते हैं कि उन्होंने तीन
पीढ़ी के कलाकारों के साथ काम किया। एक पीढ़ी–धर्मेंद्र, जीतेंद्र, राजेश खन्ना और
अमिताभ बच्चन की थी, जोकि उनसे उम्र में करीब बीस-पच्चीस साल बड़ी थी दूसरी पीढी
में वे कलाकार हैं जो उनकी उम्र के आस-पास थे-मसलन अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ, सन्नी
देओल और तीसरी पीढ़ी के कलाकार मसलन शाहरुख खान, सलमान खान या अक्षय कुमार तो उनसे
उम्र में छोटे ही थे। हिंदुस्तानी सिनेमा में कलाकारों की उम्र को लेकर समाज में
एक सोच काम करती है कि हीरो चाहे पचास साल का हो लेकिन हीरोइन बीस-पच्चीस से लेकर
सोलह साल तक की भी चल सकती है। ऐसे में श्रीदेवी से पहले शायद ही ऐसा नजीर देखने
को मिलता जहां हीरोइन बड़ी हो और हीरो उम्र में छोटा। बाद में रेखा और माधुरी
दीक्षित की एकाध ऐसी फिल्में जरूर हैं लेकिन वो आमतौर पर चलन में नहीं है। इस
लिहाज से श्रीदेवी ने शाहरुख,सलमान और अक्षय के साथ काम करके एक नई मिसाल बनाई और
अपने अभिनेत्रित्व का दबदबा कायम किया। फर्स्ट फीमेल सुपरस्टारडम का एक राज़ यह भी
जरूर गिना जाना चाहिए।
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज श्रीदेवी के योगदान को कुछ इन
शब्दों में याद करते हैं-“श्रीदेवी ने अपने जीवन के चौबन साल में पचास साल फिल्मों में काम किया
है। एक तरह से उनका पूरा सक्रिय जीवन सिनेमा को समर्पित रहा। सिवाय कमल हासन के किसी
भी अभिनेता या अभिनेत्री ने इस तरह अपना पूरा जीवन जीवन सिनेमा को नहीं सौंपा।
श्रीदेवी के फिल्मी करियर का कुछ इस तरह से मूल्यांकन किया जाना चाहिए। उन्होंने
कभी एक्टिंग की ट्रेनिंग नहीं ली। उन्होंने सारा जीवन सेट और लोकेशन पर ही बिता
दिया। इसके बावजूद उन्होंने सिल्वर स्क्रीन से लेकर वास्तविक जिंदगी तक में हर तरह
की भूमिका बखूबी निभाई। ”
लेकिन अब सवाल है कि उनकी बेटियों के फिल्मी करियर का क्या होगा? क्योंकि एक मां होने
के नाते वो अपनी बेटियों की देखरेख बहुत ही शिद्दत से किया करती थीं? अजय ब्रह्मात्मज जी कहते
हैं- “हां, यह घड़ी
बेटियों के जीवन के लिए कठिनाई भरी है। जाह्नवी की फिल्म आने वाली थी। और इस फिल्म
को लेकर खुद श्रीदेवी बहुत आशांवित थीं। लेकिन उससे पहले ही ये घटना हो गई। ये
बहुत ही दर्दनाक है। इस परिवार में दूसरी बार ऐसा हुआ है। जब अर्जुन कपूर की पहली
फिल्म आने वाली थी, तो उनकी मां यानी बोनी कपूर की पहली पत्नी का देहांत हो गया
था।...लेकिन देखिए आगे क्या होता है। जाह्नवी की प्रतिभा दर्शकों को पसंद आएगी तो
वह भी जरूर खुद को साबित करेगी।”
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