‘माधुरी’
के संस्थापक-संपादक अरविंद कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता; भाग-27
मेकिंग ऑफ फिल्म ‘संगम’- 4
“दोस्त दोस्त ना रहा / प्यार
प्यार ना रहा /
ज़िंदगी हमें तेरा / ऐतबार
ना रहा, ऐतबार ना रहा /
अमानतें मैं प्यार
की / गया था जिस को सौंप कर / वो
मेरे दोस्त तुम ही थे / तुम्हीं तो थे / जो ज़िंदगी की राह
मेँ / बने थे मेरे हमसफ़र / वो
मेरे दोस्त तुम ही थे / तुम्हीं तो थे / सारे भेद खुल गए / राज़दार
ना रहा /
ज़िंदगी हमें तेरा / ऐतबार
ना रहा, ऐतबार ना रहा / दोस्त दोस्त ना रहा
...
सफ़र के वक़्त में पलक
पे / मोतियों को तौलती / वो तुम ना थी तो कौन
था / तुम्हीं तो थी / नशे की रात ढल गयी / अब
खुमार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा /
ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा / दोस्त दोस्त ना
रहा...”
फ़िल्म के लगभग दो
तिहाई बीत जाने पर ये तीनोँ एक सैनिक के अंत की कहानी सुनते हैँ जिसकी प्रिय पत्नी
ने उसके प्यार को धोखा दिया था। तीनोँ एक साथ बैठे हैँ। द्रवित सुंदर प्यानो पर
गाना शुरू करता है ‘दोस्त दोस्त ना रहा’।
एक तरफ़ गोपाल है और दूसरी ओर राधा। सुंदर पियोना बजाता गा रहा है ‘दोस्त
दोस्त ना रहा’। हम प्रतिक्रिया गोपाल और राधा पर देख रहे हैँ।
हलके बादलोँ वाले आसमान मेँ गोपाल की बड़ी बड़ी आंखेँ, हवाई
अड्डा, आसमान मेँ गोपाल का चेहरे का क्लोज़अप, आंखेँ, मन
मेँ कचोट, उड़ता भटकता छोटा सा जहाज़, राधा
का कुछ वैसा ही चेहरा, पर ग्लानि, आसमान की पृष्ठभूमि पर राधा का चेहरा, आंखेँ, सुंदर
को विदा करते राधा और गोपाल।
बीच बीच मेँ सुंदर
पियानो पर, कभी मुड़कर गोपाल को देखता है, कभी
राधा को...यह जो शोक है इन तीनोँ के संदर्भ मेँ विराट और व्यापक और गोपाल और राधा
का निजी हो गया है।
इसके बाद लगभग अंत
के निकट सुंदर का यह शोक निजी दर्द और शिकवा हो जाता है। उसे गोपाल का प्रेमपत्र
राधा की अलमारी मेँ मिल गया है। पत्र पर लिखने वाले का नाम नहीँ है। सुंदर के सिर
पर भूत सवार हो जाता है। राधा को पत्र लिखने वाला यह कौन है। गोपाल हो सकता है, यह
उसके दिमाग़ से परे है। सुंदर और राधा की ज़िंदगी नरक बन जाती है। राधा की निष्ठा
का ज़िक्र आने पर सुंदर के चेहरे पर कड़वा व्यंग्य छा जाता है। वह फिर गा रहा है, गीत
का अंतिम अंतरा-
“सफ़र के वक़्त में पलक पे / मोतियों
को तौलती / वो तुम ना थी तो कौन था / तुम्हीं
तो थी / नशे की रात ढल गयी / अब
खुमार ना रहा
“ज़िंदगी हमें तेरा /
ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा / दोस्त दोस्त ना
रहा...”
बार बार सुंदर
पिस्तौल से खेल रहा है। राधा सह नहीँ पाती तो गोपाल के घर चली जाती है। पिस्तौल
थामे परेशान सुंदर भी गोपाल के पास आता है। वही ख़त की बात होती है। गोपाल भेद
खोलता है। सुंदर, “एक बार मुझे बता तो देते, मैँ
रास्ते से हट जाता।” पर गोपाल...
3 अगस्त 1923 को
रावलपिंडी मेँ जन्मे शैलेंद्र (मृत्यु: 14 दिसंबर 1966) कुल 43 साल जिए और इन चार दशकोँ
मेँ से जिन कुल सतरह (17) साल फ़िल्म गीत लिख कर वह हिंदी वह एक भरा पूरा गीत
साहित्य रच गए, जिसने उभरते स्वतंत्र भारत की मानसिकता का विविध
मर्मस्पर्शी वर्णन किया। राज कपूर के लिए वह कविराज और पुश्किन थे। सच कहा जाए तो
वह राज कपूर की आत्मा थे।
अन्य कवियोँ और
गीतकारोँ से बिल्कुल अलग तरह का होने के पीछे था उन का भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा)
से सक्रिय संबंध। इस संबंध वाले और भी लोग फ़िल्मोँ मेँ गीतकार बने, जैसे
कैफ़ी आज़मी। मैँ दोनोँ की तुलना अगले हफ्ते करुंगा।
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
संपर्क - arvind@arvindlexicon.com / pictureplus2016@gmail.com
(नोट : श्री अरविंद
कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है।
इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा। संपादक-पिक्चर प्लस)
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