‘माधुरी’
के संस्थापक-संपादक अरविंद कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता; भाग-32
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लेख टंडन और शाहरुख खान |
बंबई से आने के बाद जिस फ़िल्म वाले से मेरा सब से सक्रिय संबंध रहा, वह
थे लेख टंडन। उन के रिश्तेदारोँ के घर लाजपतनगर मैँ बस एक बार ही गया। अकसर वह मेरे
पास आना पसंद करते थे। दिल्ली मेँ माडल टाउन वाला घर हो, या ग़ाज़ियाबाद मेँ चंद्रनगर,
आना नहीँ चूकते थे।सन 1980 मेँ ‘सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट’ का संपादन स्वीकार कर एक
बार उस के मुख्यालय बंबई गया तो लेख जी ने लंच पर बुलाया। डाइजेस्ट कार्यालय मेँ मेरी
धाक जम गई। इंग्लिश संपादन विभाग की पारसी पी.ए. बार बार पूछती–“निर्देशक ने क्या क्या खिलाया।”
1983 की सफल फ़िल्म ‘अगर तुम न होते’ के बाद उनकी कुल दो फ़िल्मेँ आईं
–1985 की ‘उत्तरायण’ और फिर 1997 की ‘दो राहेँ’। अब वह अपना समय सफल टीवी सीरियलोँ
को देने लगे। ऐसे ही एक सीरियल से उभरे थे शाहरुख़ खान।
इस के बाद जब भी लेख जी आते तो हम उन के नए सपनोँ की, नए प्रोजैक्टोँ के
मनसूबोँ की बात करते। एक बेचैनी, एक तड़प, अतृप्त आकांक्षा थी – जो उन के कलाकार मन
मेँ झकझोर रही होती।
एक अविकसित कहानी जो उन्होँने मुझे सुनाई वह एक वृद्ध महिला की थी – किस
तरह शादी के बाद उस ने अपने पति ही नहीँ पूरे ससुराल को संभाला, बूढ़े सास-ससुर की
सेवा की, उन का अनियंत्रित मलमूत्र झेला... वह सुनाते तो आँखोँ मेँ चमक और विश्वास
होता। कई और कथानक थे...
वक़्त बीतता गया। कई साल बाद...
एक बड़े प्रस्तावित प्रोजेक्ट की कई तरह की शुरूआतेँ उन्होँने मेरे पास
भेजीँ भी -‘तब ऐसा तो न था।’ आते तो सुनाते भी थे। पाकिस्तान मेँ बचपन की किसी मुसलमान
लड़की नूरी की याद जो उनकी कमज़ोर इंग्लिश सुधारती रहती थी। (नोट- लेख स्वयं टूटी फूटी
इंग्लिश लिखते थे। मुझे लगता था कि वह अपनी ही कहानी फ़िल्माना चाहते हैँ।) कभी वह
कहानी आयरलैंड मेँ खुलती। कभी बंबई मेँ। कभी स्यालकोट के किसी गाँव मेँ।
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राजेश खन्ना 'अगर तुम ना होते' में |
अंतिम रूप का घटनाचक्र कुछ इस तरह था: नामचीन बूढ़े निर्देशक ने मलाला
पर बहुप्रशंसित और पुरस्कृत फ़िल्म बनाई है। मलाला का चरित्र उस ने नूरी पर ही गढ़ा
है। पाकिस्तान से एक स्वतंत्रचेता ग्रुप ने उसे सम्मान के लिए न्योता है। उसे मोह है
नूरी को खोजने का। वह नहीँ जानता कि वह अब कहाँ होगी, जब कि अब वह पाकिस्तान के एक
प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार मेँ दादी है। वह यह भी नहीँ जानता कि उसे न्योतने वाले
ग्रुप को निमंत्रण देने का सुझाव नूरी से ही मिला है। पाकिस्तान मेँ एक अजीब सा उठापटक
का माहौल है। आतंकवादी समूह भी कहीँ उस परिवार के एक धड़े से जुड़ा है। वह जाता है,
पर उसकी यात्रा के पीछे अमरीकी सरकार से ले कर भारतीय रा और पाकिस्तान की आईएसआई के
जासूस तरह तरह की मिस्कोट में लगे हैँ।
यह ‘मिशन इंपौसिबल’ जैसा फ़िल्मी प्रोजैक्ट था। मैँ उन से कहता,“उम्र आप के ख़िलाफ़ है। कोई बड़ा प्रौड्यूसर
आप पर इतना बड़ा दाँव क्योँ लगाएगा?” एक बार वह बोले और कुछ नहीँ तो कहानी
बेच देँगे। कभी कभार और कुछ नहीँ तो वह फ़िल्मोँ में छोटे बड़े रोल करते रहे। जैसे
‘स्वदेश’ फिर ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’मेँ बूढ़े दादा जी जो अपना सौवेँ जन्मदिन परशचिन तेदूलकर
के सैंचुरी न बनाने पर दम तोड़ देते हैँ।
कुछ दिन पहले (लगभग 17 अप्रैल 2018) अनायास दोपहर कोई फ़िल्म चैनल खोल
बैठा। लेख टंडन की ‘अगर तुम न होते’ चल रही थी। जैसे ही कहानी ने ज़ोर पकड़ा मैँ सब
कुछ भूल गया। टीवी देखते देखते ही लंच किया...
इसलिए लेख की ‘प्रौफ़ेसर’, ‘आम्रमाली, झुक गया आसमान’ या ‘आंदोलन’ जैसी
फ़िल्मोँ की बातेँ की जाती हैँ। मैँ बात करूँगा ‘अगर तुम न होते’ की।
राजेश खन्ना (अशोक मेहरा)। प्रिय पत्नी रेखा (पूर्णिमा)। बच्ची को जन्म
दे कर पूर्णिमा का मर जाना। बच्ची बेबी शबाना (मिन्नी) की बार बार माँ से मिलने की
ज़िद। अशोक द्वारा पूर्णिमा की तस्वीर हटवा देनेपर आधारित है भविष्य का घटनाचक्र।
अपनी कास्मैटिक्स की कंपनी की ओर से कई वर्षों तक अशोक उदासीन रहता है।
विदेशीकास्मैटिक्स की कंपनियोँ के आकर्षक विज्ञापनोँ से मुक़ाबले में कंपनी के पिछड़ने
पर अशोक जागता है, टक्कर की विज्ञापन कैंपेन के लिए कुशल लेकिन महँगेफ़ोटोग्राफ़रराज
बब्बर (राज बेदी) को मुँहमाँगी रक़म का चैक दे कर तुरंत रख लेता है। राज अच्छी मौडल
की तलाश शुरू की। मिली रेखा (राधा) जो धीरे धीरे उसकी प्रेमिका और पत्नी बन गई। कैंपेन
तैयार थी, लेकिन अब राज बेदी राधाके फ़ोटो से इनकार कर देता है।अशोक राज को तबाह कर
देता। बड़ी मुश्किल से राज को नया कांट्रैक्ट मिला, जिस का काम करतेदुर्घटनाग्रस्त
हो कर वहअपाहिज हो गया। घर चलाने के लिए राधा की नज़र एकगवरनैस की तलाश वाले विज्ञापन
पर पड़ती है। शर्त है कि गवरनैस अविवाहित हो ताकि बेटी मिनी को पूरा ध्यान दे सके।
राधा अशोक की बेटी मिनी की गवरनैस बन जाती है। फ़िल्म में कशमकश के बिंदु हैँ:
राधा नहीँ जानती कि अशोक की पत्नी पूर्णिमा उसकी हमशकल थी,
अशोक नहीँ जानता कि राधा विवाहित है और उसी फ़ोटोग्राफ़र की पत्नी है जिसे
उस ने तबाह कर दिया था,
अपने प्रति अशोक के आकर्षण को राधा समझ नहीँ पाती
फ़ोटोग्राफ़र राज बेदी नहीँ जानता कि राधा अशोक की बेटी की गवरनैस है।
बिस्तर में पड़ा अपाहिज राज कई घटनाओँ से राधा पर शक करने लगता है। यहाँ तक कि उसे
त्यागने पर उतारू हो जाता है।
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अरविंद कुमार |
इस सामान्य से घटनाक्रम को उच्चतम स्तर तक ले जाता है निर्देशक लेख टंडन
द्वारा कोमल भावनाओं का सूक्ष्मफ़िल्मांकन;राजेश खन्ना, रेखा और राज बब्बर जैसे कुशल
अभिनयकर्मियोँ द्वारा पात्रोँ के परस्पर संपर्क-विसंपर्क, राग-द्वेष, लगाव-विलगाव,
प्रेम-घृणा, भ्रम-संदेह के प्रदर्शन से दर्शकोँ को पूरी तरह बाँधे-जकड़े रख पाना। अंत
का समाधान पूरी तरह संतोषप्रद तो नहीँ बन पाता, पर स्वीकार्य और सुखद अवश्य है।
यही प्रतिध्वनित करते हुए एक समीक्षक ने लिखा: “राजेश खन्ना नायक है इस में कुछ अनोखापन
नहीँ है। लेकिन निर्देशक को श्रेय जाता है कि वह राजेश को अपनी ट्रेडमार्क भंगिमाओँ
से दूर रख पाया, और ऐसा काम करवा पाया जो अशोक मेहरा को पूरी तरह विश्वसनीय बनाए रखता
है।”
‘अगर तुम न होते’ की रेखा ‘संगम’ की राधा से एक इंच भी कम नहीँ है, तो
सारा श्रेय लेख टंडन की पैनी नज़र को जाता है।
अंत मेँ--
गीत गुलशन बावरा ने लिखे हैँ, और एक पात्र की गैस्ट भूमिका भी निभाई है।
गुलशन से मेरा निकट संपर्क मनोज कुमार की ‘उपकार’ के समय हुआ। अपनी तरह का पागल सा
मनमौजी बंदा, जिसने ‘चाँदी की दीवार न तोड़ी’, ‘मेरे देश की धरती’, ‘पीने वालों पीने
का बहाना चाहिए’ जैसे गीत लिखे। देहरादून में उसे शैलेंद्र सम्मान मिला तो मैँ वहाँ
था। बहुत देर तक हम पिछले ज़माने की यादोँ मेँ खो गए। मैंने हम दोनोँ के कुछ कामन फ़्रैंडोँ
के हालचाल पूछे, उन में से कई बबंई छोड़ कर अमरीका जा बसे हैँ।
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
संपर्क - arvind@arvindlexicon.com / pictureplus2016@gmail.com
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष
तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है।
इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा। संपादक-पिक्चर प्लस)
कभी जॉय श्री अरोड़ा मैम के बारे में भी कुछ लिखिए जिन्होंने शाहरुख़ ख़ान को पहला ब्रेक दिल दरिया टेलीफिल्मस में दिया था और शाहरुख़ खान और मेरी गुरु माता भी रही थीं सुप्रसिद्ध फ़िल्म इंस्टीट्यूट AAFT, NOIDA में.....!!
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