‘माधुरी’
के संस्थापक-संपादक अरविंद कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता; भाग-29
काश्मीर के स्वर्ग
मेँ शूट की गई शर्मिला टैगोर की पहली हिंदी फ़िल्म ‘काश्मीर की कली’ पांचवीं हिंदी फ़िल्म थी। पहली थी राज कपूर की ‘बरसात’ जिससे राज-नरगिस की जोड़ी लोकप्रिय हुई, और जिसका एक दृश्य आर.के.फ़िल्म का अल्बम बना।
सत्यजित राय की खोज
शर्मिला (जन्म- 8 दिसंबर 1944) ने बंगला फ़िल्मोँ
में प्रवेश तेरह साल की उम्र में ‘अपूर संसार’ मेँ किया था। वहां
उन्होँने पांच और फ़िल्मे कीँ। शक्ति सामंत ‘काश्मीर की कली’ में उन्हेँ हिंदी में ले आए। उन्नीस वर्ष की शर्मिला तब स्वयं मेँ एक कली
ही थीँ। काश्मीर और शर्मिला के सौंदर्य पूरा उपभोग करने में शक्ति सामंत पूरी तरह
सफल रहे। उसके साथ जोड़ दीजिए शम्मी कपूर की अनोखी अदाएं –सफलता का बना बनाया नुस्ख़ा।
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शर्मिला और शम्मी की जोड़ी खूब जमी |
शक्ति से मेरी
मित्रता चंद्रशेखर अपने घर पर करवा चुके थे। जब तक मैँ बंबई मेँ रहा उनसे अपनापन
बना रहा। एक समय फ़िल्मफ़ेअर-यूनाइटिड टेलैंट कंटैस्ट के संचालन का ज़िम्मा मुझ पर
आन पड़ा था। आवेदनोँ की आरंभिक छंटाई का काम शक्ति और मुझ पर था। शाम पांच बजे के
बाद वह टाइम्स आफ़ इंडिया के दफ़्तर मेँ मेरे केबिन मेँ आ जाते। हम दोनोँ आवेदकोँ
के फ़ोटो और ब्यौरे देख कर जो पसंद आतीं वह एक तरफ़ रखते जाते।
मई 1964 का महीना था। ‘काश्मीर की कली’ की शूटिंग हो रही थी।
शक्ति ने अपने पत्रकार-फ़ोटोग्राफ़र धीरेंद्र किशन को शर्मिला के स्वीमिंग सूट
वाली बेहतरीन ट्रांसपेरेंसियां मेरे पास भिजवाई थी, ‘माधुरी’ में छपने के लिए। शाम
का समय था। मैंने सबकी सब ट्रांसपेरेंसियां मेज़ की दराज़ में रखीँ, दफ़्तर बंद कर के धीरेंद्र और मैं साथ साथ बाहर निकले। सुबह दफ़्तर पहुंचा
तो सारी ट्रांसपेरेंसियां ग़ायब थीँ। सालोँ बीत गए। वे नहीँ मिलनी थीं, तो नहीँ ही मिलीं। छपतीं तो कमाल हो जाता।
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अपने समय की ग्लैमरस अभिनेत्री |
बेचारे धीरेंद्र ने
हरज़ाना भी नहीँ मांगा। वह माला सिन्हा का फ़ोटोग्राफ़र भी था। कोई सात सौ बक़ाया
रुपए मांगने गया तो माला ने टाल दिया था, “अभी इतने रुपए मेरे
पास नहीं हैं”। इत्तफ़ाक़ से माला के घर उसी रात दिन इनकम टैक्स
वालोँ की रेड पड़ी। उसके बाथरूम मेँ छिपी मियानी में बीस लाख नक़द मिले! नेपाली राज परिवार की सहायता से मामला रफ़ा-दफ़ा हुआ था। तब बीस लाख बड़ी
रक़म मानी जाती थी। आप को याद होगा देवेंद्र गोयल की 1966 की फ़िल्म ‘दस लाख’ मेँ बूढ़े ओमप्रकाश को लॉटरी मेँ दस लाख मिले तो
दिमाग़ सातवेँ आसमान पर चढ़ गया और वह ऐश करने लगा। उसी फ़िल्म मेँ गीत था, “तू एक पैसा देगा वह दस लाख देगा”।
‘काश्मीर की कली’ रिलीज़ हुई थी 20 नवंबर 1964 को। यह ‘दोस्ती’ और ‘संगम’ के साल मेँ सब से अधिक कमाने वाली छठवीँ फ़िल्म साबित
हुई थी। आठों गानोँ का इसका सफलता में बड़ा योगदान रहा। 1. कहीँ ना कहीँ दिल लगाना
पड़ेगा...2. तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुझे बनाया...ये चांद सा रोशन चेहरा, ज़ुल्फ़े का रंग सुनहरा...3. इशारोँ इशारोँ मेँ दिल लेने वाले... 4. सुबहान
अल्लाह हसीँ चेहरा...5. मेरी जां बल्ले बल्ले...6. दीवाना हुआ बादल... 7. है
दुनिया उसीकी ज़माना उसीका...और 8. बलमा खुली हवा मेँ...।
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शर्मिला की इन तस्वीरों पर हुई थी चर्चा |
शुरू मेँ शम्मी चाहते
थे कि संगीत शंकर जयकिशन का हो, लेकिन जब ओ.पी. नैयर
ने उन्हेँ अपनी रचनाएं सुनाईं तो तुरंत उन्हीँ को संगीत निर्देशक चुन लिया गया।
गीतकार थे ऐस.ऐच. बिहारी।
राजीव लाल (शम्मी) की
शादी ने कई रिश्ते तलाश रखे हैँ। सबको बेवक़ूफ़ बना कर राजीव श्रीनगर भाग जाता है
ख़ानदानी कोठी मेँ। और वहां फूल वाली कली सी चंपा चमेली (शर्मिला) का दीवाना न
होता तो तअज्जुब होता। कई पेँचोँख़म के बाद फ़िल्म का अंत वही होता है जो होना था उस
ज़माने की फ़ॉर्मूली फ़िल्मोँ का होता था। राजीव और चंपा की शादी।
शक्ति की ही राजेश
खन्ना और शर्मिला टैगोर वाली फ़िल्म ‘आराधना’ (1969) सामान्य फ़ॉर्मूला फ़िल्म होते हुए भी बढ़कर थी।
दार्जीलिंग जाने वाली रेल के समांतर गाड़ी मेँ बैठे राजेश खन्ना के गीत ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ ने धूम मचा दी। राजेश
खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी वाली शक्ति की ‘अमर प्रेम’ (1972) कलात्मक स्तर
पर भी उत्कृष्ट थी।
शर्मिला की फ़िल्मों मेँ मुझे गुलज़ार की ‘मौसम’ बहुत पसंद है। ए.के. क्रोनिन के उन्यास ‘द जूदास ट्री’ से प्रेरित इस फ़िल्म मेँ शर्मिला ने मां और बेटी की कठिन भूमिकाएं निभाई थीं। सुंदरी चंदा (शर्मिला) को छोड़कर डॉक्टर अमर (संजीव) को कलकत्ते लौटना पड़ता है। पच्चीस साल बाद चंदा की तलाश मेँ वह जाता है तो मिलती है उसकी हमशकल बेटी कजली, जो वेश्या हो गई है। फ़िल्म बाप-बेटी के संबंधों की कहानी बन जाती है। इसके दो गीत ‘दिल ढूंढ़ता है फिर वही फ़ुरसत के रातदिन’ और ‘छड़ी रे छड़ी’ मुझे अकसर याद आते हैँ।
अरविंद कुमार के साथ संजीव श्रीवास्तव |
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
संपर्क - arvind@arvindlexicon.com / pictureplus2016@gmail.com
(नोट : श्री अरविंद
कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है।
इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा। संपादक-पिक्चर प्लस)
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