फिल्म समीक्षा
टाइटल - परमाणु
(द स्टोरी ऑफ पोखरण)
निर्देशक - अभिषेक शर्मा
कलाकार - जॉन अब्राहम, बोमन ईरानी, अनुजा साठे.
डियाना पेंटी
परमाणु विस्फोट कथा में पांडव का क्या काम है?
*रवींद्र त्रिपाठी
आजकल हमारे यहां विज्ञान में पौराणिक कथाओं को मिला
देने का चलन चल पड़ा है।खासकर मीडिया और राजनीति में। इसी से प्रभावित है अभिषेक
शर्मा की फिल्म `परमाणु (द
स्टोरी ऑफ पोखरण)’।
भारत ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया था।
वह एक वैज्ञानिक प्रयोग था। निर्देशक अभिषेक शर्मा ने उसमें `महाभारत’की
कहानी की मिलावट कर दी है। अब आप पूछेंगे कि जब महाभारत की कथा है इसमें कृष्ण की
भूमिका भी होगी। तो जवाब है कि ऐसा ही है। जॉन अब्राहम ने अश्वत रैना नाम के जिस
अधिकारी की भूमिका निभाई है उसका सुरक्षा के खयाल से कोडनाम कृष्ण है। और हां, इसमें युद्धिष्ठिर,
भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव भीं। अब जहां कृष्ण हैं और पाचों पांडव है वहां विजय
तो होगी ही। इसलिए परमाणु विस्फोट सफलता क साथ हो गया।
फिल्म की कहानी
`परमाणु (द
स्टोरी ऑफ पोखरण)’ 1998 मे
हुए परमाणु परीक्षण की कल्पित कथा है। लेकिन इसमें इतिहास का तडका लगाने के लिए
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कुछ पुराने फुटेज दिखा दिए गए हैं
ताकि दर्शक को लगे कि वे किसी वास्तविक
घटना को देख रहे हैं। पर ये फिल्म कल्पना का खेल अधिक है इसका पता इसी से लग जाता
है कि इसमें ये दिखाया गया है अश्वत रैना (ये नाम भी गलत वर्तनी में लिखा हुआ है)
नाम के आईएएस अधिकारी की बात मान ली गई होती तो 1995 में ही भारत परमाणु परीक्षण
कर लेता। लेकिन रैना की बात राजनीति के गलियारों में मानी नहीं गई। यही नहीं रैना
को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा और उसने जीवन यापन के लिए सिविल सेवा परीक्षा के लिए
कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। वो तो 1998 में प्रधानमंत्री कार्यालय में हिमांशु
शुक्ला (बोमन ईरानी) नाम का अधिकारी प्रधान सचिव बना कि परमाणु परीक्षण करने का मामला फिर से आगे बढ़ा। शुक्ला ने
अश्वत रैना को टीम तैयार करने को कहा। पांच लोगों की टीम बनी। यानी युद्धिष्ठिर,
भीम, अर्जुन, नकुल औऱ सहदेव की। और लीजिए, कुछ बाधाओं को पार करते करते करते नए
जमाने के इस कृष्ण और पांडवों की जोड़ी ने करवा दिया परमाणु परीक्षण।अमेरिका और
पाकिस्तान को ठीक से पता भी नहीं चला कि क्या हुआ। माना कि फिल्म में रचनात्मक
लिबर्टी ली जाती है पर इतना नहीं कि स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी ही धड़ाम से नीचे गिर
पड़े।
फिल्म में जज्बाती पहलू डालने के लिए रैना के
परिवार में तनाव भी दिखाया गया है। चूंकि वो अपनी पत्नी (अनुजा साठे) के इस मिशन
के बारे में कुछ नहीं बताता इसलिए पति-पत्नी में झगड़े भी होते हैं। पर वो कहते
हैं न कि अंत भला तो सब भला, इसलिए आखिर में पत्नी को समझ में आ जाता है कि उसका
पति तो एक गुप्त मिशन पर था। अश्वत रैना के साथ काम करने के लिए जो टीम बनाई गई थी
उसमें डियाना पेंटी को छोड़कर कोई परिचित और नामी चेहरा नहीं है। डियना ने
अंबालिका नाम की सुरक्षा अधिकारी की भूमिका निभाई है। मगर उनको शायद इसलिए इस
भूमिका में रखा गया कि अश्वत और उसकी पत्नी के बीच गलतफहमी फैलने की वजह को पुख्ता
बनाया जा सके। जब पत्नी देखेगी कि उसका पति पोखरण के एक गेस्ट हाऊस के एक कमरे में
एक औरत के साथ बातों में मशगूल है तो वो नाराज तो होगी न?
निर्देशन और अभिनय
फिल्म में देशभक्ति का जज्बा भी भरपूर भरा गया है
ताकि दर्शक को भावनात्मक रूप से जोड़ा सके। पर बड़ा सवाल ये है कि क्या ये फिल्म जॉन
अब्राहम के थमे हुए फिल्मी कैरियर को उठा पाएगी? और क्या
फिल्म में नकुल बनीं डियाना पेंटी भी आनेवाले समय़ में कुछ बेहतर भूमिकाएं पा सकेंगीं?
*लेखक प्रख्यात कला मर्मज्ञ एवं फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क-9873196343
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