फिल्म समीक्षा
वीरे दी वेडिंग
निर्देशक - शशांक घोष
कलाकार -
करीना कपूर खान, सोनम कपूर आहूजा, स्वरा भास्कर,
शिखा तलसानिया, मनोज पाहवा
*रवींद्र त्रिपाठी
पहले फिल्म के बारे में बात की जाए इसके पहले दो बातें। एक तो स्वरा
भास्कर के बारे में। `अनारकली ऑफ आरा’ में बिंदास भूमिका निभाने के बावजूद स्वरा की छवि बहनजी मार्का
अभिनेत्री की रही है। पर `वीरे दी वेडिंग’ के बाद ये मान लिया जाएगा कि
वे अल्ट्रॉ–मॉडर्न लड़की का किरदार भी धमाके के साथ कर सकती हैं। बॉलीवुड में इसका
असली मतलब होता है सेक्स-अपील वाली अभिनेत्री। बेशक निर्देशक ने इसके लिए स्वरा के
कॉस्टयूम से लेकर हेयर स्टाईल पर काफी काम किया है। ज्यादातर दृश्यों में वे
हाफ-पैंट में ही दिखी है। दूसरी बात ये कि अच्छा हुआ कि सोनम कपूर ने शादी कर ली।
लीड रोल में उनको वैसे भी भूमिकाओं के लाले पड़ रहे थे। `वीरे दी वेडिंग’ का असल संदेश तो
यही है कि लड़की चाहे बेहद आधुनिक जीवन जी ले या लिव-इन रिलेशन (यानी सहजीवन) में
किसी के साथ कुछ साल गुजार ले, उसका असली लक्ष्य तो शादी करना ही होना चाहिए।
मुंबइया लहजे में कहें तो शादी को सबको बनाना मांगता।
फिल्म में चार सहेलियां हैं- कालिंदी (करीना कपूर), अवनी (सोनम कपूर),
शिखा (स्वरा भास्कर) और मीरा (शिखा तलसानिया)। चारों दिल्ली की हैं और अमीर घरों
की हैं। स्कूल में साथ-साथ पढ़ती रही हैं। वक्त गुजरता है और चारों आजाद खयाल शख्सियतों के रूप में उभरती है। पर सबकी
जिंदगी अलग अलग राहों से गुजरती है। शिखा अपनी मर्जी से शादी करती है लेकिन पति से
बनती नहीं। मीरा अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध एक गोरे मर्द से शादी करती है और
एक बेटे की मां भी बन जाती है। अवनी वकील बन जाती है। उसकी शादी नहीं होती लेकिन
वो तलाक करवाने में माहिर है। अब बची
कालिंदी जो ऋषभ नाम के नौजवान के साथ आस्ट्रलेया में लिव-इन रिलेशन में रहती है।
चारों तब मिलती हैं जब कालिंदी और ऋषभ शादी करने का फैसला करते हैं। लेकिन शादी की
तैयारियों के बीच में ही कालिंदी को ये भी लगता है कि कहां, फंस रही है क्योंकि
होनेवाले सास-ससुर जिस मिजाज के हैं उससे तो लगता है कि शादी के बाद उनसे
निभनेवाली नहीं है।. कालिंदी का पारिवारिक अतीत भी उससे परेशान करता रहता है। उधर
अवनी की मां उसकी शादी किसी लड़के से कराना चाहती है अवनी जब उस लड़के को एक शादी
में किस करती तो वह भाग खड़ा होता है।
खैर शादी की तैयारियों के बीच ही जम के अफरा तफरी मचती है। कालिंदी ये
तय करती ऋषभ के साथ शादी नहीं करेगी। है चारो सहेलियां जम के सिगरटे पीती हैं और
यौन-उऩ्मुक्त भाषा में एक दूसरे के साथ बातें करती रहती है। छुट्टियां मनाने विदेश
जाती हैं। जिसे अंग्रेजी में `फोर लेटर्स वर्ड’ (या हिंदी में द्विअक्षरी शब्द भी कह सकते हैं) उसका प्रयोग धड़ल्ले
से करती हैं। ये इक्कीसवीं सदी के उच्च समाज की औरते हैं जो यौन व्यवहारों के बारे
में मुक्त होकर चर्चा करती है। पर आखिर में लब्बोलुबाब वही निकलता है जो सदियों से
होता रहा है-शादी करो और घर बसाओ क्योंकि बच्चे भी तो चाहिए। वरना जिंदगी के
खालीपन को कैसे भरा जाएगा?
`वीरे दी वेंडिंग’ `सेक्स एंड द सिटी’ का भारतीय संस्करण
है। यानी जीने की शैली विदेशी और पश्चिमी पर निचोड़ ठेठ भारतीय मतलब गृहस्थी तो
बसानी है। बैंड बाजा और बारात के साथ। आखिर कालिंदी की शादी की शहनाई बज के रहती
है। और इसी शादी के चक्कर में मध्यांतर तक चुस्त फिल्म आखिर तक पहुंचते पहुंचते
सुस्त पड़ जाती है।
*लेखक प्रख्यात कला मर्मज्ञ व फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क-9873196343
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें