‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद
कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता; भाग-36
राजेश
खन्ना पर मेरी सीरीज़ की यह चौथी और अंतिम क़िस्त है। इससे पहले मैँ राजेश खन्ना का प्रादुर्भाव, राजेश खन्ना और अंजु महेंद्रु की प्रेमकथा
और राजेश खन्ना और डिंपल प्रेमकथा के बीच (राजेश-टीना उपकथा) आपसे साझा कर चुका हूं। राजेश खन्ना सीरीज़ की यह अंतिम कड़ी समर्पित
है राजेश की अभूतपूर्व उपलब्धियोँ,
असफलताओँ, कुछ कलाकारोँ से संबंधोँ को और विदाई को।
एकल हीरो के तौर पर उसकी पंद्रह फ़िल्मेँ एक के बाद एक सुपरहिट हुईं। 1967 से 2013 तक वह 106 (एक सौ छह) फ़िल्मों मेँ एकल हीरो रहा। उस ने केवल 22 (बाईस) मल्टीस्टार फ़िल्मोँ मेँ काम किया। एकल हीरो वाली 127 फ़िल्मोँ मेँ से 82 (बयासी) को पांच मेँ से चार स्टार मिले। कुल मिलाकर वह 168 फ़ीचर और 12 लघु फ़िल्मोँ मेँ देखा गया। फ़िल्मफ़ेअर से उसे तीन बार श्रेष्ठ अभिनेता का अवॉर्ड मिला। सन् 2005 मेँ सर्वाधिक एकल फ़िल्मोँ में काम करने के लिए ‘फ़िल्मफ़ेअर’ से लाइफ़टाइम अचीवमैन्ट अवॉर्ड मिला। 1970 से 1987 तक वह सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाला कलाकार रहा, जबकि अमिताभ को यह श्रेय केवल 1980 से 1987 तक मिला।
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अमिताभ ने दी टक्कर फिर राजेश रेस से हुए बाहर |
राजेश की
बात हो और अमिताभ का ज़िक्र न हो – यह संभव नहीँ है। अमिताभ की छवि राजेश के
प्रमुख प्रतिद्वंद्वी की बन गई थी। दोनोँ की एक साथ पहली सफल फ़िल्म थी ‘आनंद’। यहीँ से एक अकथित विद्वेष का आरंभ हुआ
– अमिताभ की ओर से। सुनने में आता था कि महमूद के इशारे पर सिनेमाघरोँ मेँ किराए
के दर्शक अमिताभ के संवाद पर तालियां बजाते थे और राजेश की बाक़ायदा नापसंदगी दर्शाते थे।
हां, जब मैंने ‘माधुरी’ मेँ अमिताभ को पहली बार मुखपृष्ठ पर छापा तो लेखक जैनेंद्र जैन को वहां से महमूद के पास जाने को कहा गया। वहां जैनेंद्र को एक बेहद दिलचस्प क़िस्सा
सुनाया गया, “पाकिस्तान
से उनका कोई परिचित बंबई आया था। उसने राजेश का नाम ख़ूब सुन रखा था। उसे नई
फ़िल्म ‘आनंद’ दिखाई गई। वह अमिताभ को राजेश समझता रहा
और राजेश को अमिताभ!” यह
क़िस्सा ‘माधुरी’ के उस अंक में छपा था।
महमूद
अगर अमिताभ का मददगार था, तो राजेश खन्ना का मज़ाक़ उड़ाने मेँ कभी नहीँ चूकता था।
‘बांबे टू गोआ” मेँ
अमिताभ नायक था। बस के ड्राइवर और कंडक्टर के नाम थे ‘राजेश’ और ‘खन्ना’।
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मुझे
अच्छी तरह याद है 1973 के दिसंबर मेँ एक राजेश खन्ना के जन्मदिन की पार्टी। स्थान
– दूर तक फैल अरब सागर। कार्टर रोड, राजेश का बंगला
आशीर्वाद। भीतर जश्न चल रहा था। बाहर सीढ़ियोँ के साथ बनी सीमा दीवार पर वह और मैँ
बैठे थे। उसे मेरी स्पष्टवादिता और निश्पक्षता पर भरोसा था।
हृषिकेश
मुखर्जी निर्देशित ‘नमक हराम’ सफलता के चरम पर
थी। ‘आनंद’ के बाद पहली बार
राजेश और अमिताभ एक साथ दिखे थे। फ़ैक्टरी मालिक अमिताभ का गहरा दोस्त सोमू हड़ताल
तोड़ने के इरादे से यूनियन में शामिल होता है, लेकिन धीरे धीरे हड़तालियोँ का नेता
बन जाता है। कहानी इन दो दोस्तोँ के टकराव की थी। चर्चा हर जगह अमिताभ की थी। राजेश माजरा समझ नहीँ पा रहा था।
उस शाम
राजेश का कहना था कि अमिताभ को जो समर्थन मिल रहा है, वह ‘अंडर डॉग’ को मिलने वाली सहानुभूति है। मैँ राजेश से सहमत नहीँ था। अमिताभ
‘अंडर डॉग’ नहीँ है। कंपनी का मालिक है। दोनोँ की टक्कर में वह कुछ आगे ही है।
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राजेश खन्ना की अंतिम यात्रा में अमिताभ और अभिषेक चले नंगे पांव |
यह भी
कहा सकता है कि राजेश अपनी सफलताएं और
असफलताएं न तो संभाल पाया न
झेल पाया।
धीरे
धीरे नए चेहरे उभरते आ रहे थे। ‘जंजीर’ का ऐंग्री यंग मैन अमिताभ उसे पीछे छोड़ता
चला गया। राजेश का अकेलापन, झुंझलाहट,
निराशा समझी जा सकती है। एक के बाद एक सात फ़िल्मेँ पिटीँ तो हीन भावना ने उसे
ग्रस लिया। अपने ग़म शराब मेँ डुबाने लगा। लेकिन वह भी काम न आया।
फिर एक
रात ऐसी काली आई कि वह चूल तक हिल गया। कुछ साल बाद उस ने उस रात के बारे मेँ इन
शब्दोँ मेँ बताया, “मुझे याद
है। सुबह के तीनेक बजे थे, बहुत पी चुका था। छत पर मैँ अकेला था। अपने पर
क़ाबू नहीँ था। मैँ ज़ोर से चिल्लाया, ‘परवरदिगार, हम
ग़रीबोँ का इतना सख़्त इम्तिहान ना ले कि हम तेरे वजूद को नकार देँ’“।
चीख़ सुन
कर डिंपल और नौकर चाकर दोड़े आए। वह लगातार रो रहा था। उस रात के ड्रामे और दर्द
की बस कल्पना ही की जा सकती है। अलकोहल, बेचारगी, नाकामी की ज़िल्लत– सब मिल कर
घातक कॉकटेल बन गए थे। सच
का कड़वा घूंट पीना आसान नहीँ
होता। वह हकीक़त को मंज़ूर करने के लिए तैयार नहीँ था। उस दौर में एक बार उसे
आत्महत्या तक ख़्याल आया था, पर अगले ही पल उस ने कहा, “नहीँ, मैँ नाकामयाब मरना नहीँ चाहता। मैँ
नहीँ चाहता कि लोग कहेँ, ‘राजेश खन्ना कायर था’”।
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राजेश, डिंपल और दामाद अक्षय कुमार |
बरस पर
बरस बीत गए। सहारा बना दामाद अक्षय कुमार। कुछ साल पहले अक्षय के पिता की मौत
कैंसर से हुई थी। अब वही कैंसर ससुर राजेश को खा रहा था। अक्षय ने कहीँ कहा है,“राजेश ने बीमारी से अख़िरी दम तक लड़ने
को कमर कस ली थी”।
अक्षय ने
पूरे परिवार को जोड़ने की कोशिश की। एक साल राजेश का जन्मदिन पूरे परिवार के साथ
मनवाया।
बंबई मेँ
आशीर्वाद बंगले मेँ पुराना वफ़ादार नौकर बालाजी (बालकृष्ण) और अंजु महेंद्रु
लगातार सेवा में थे। ज़िद कर के अंजु ने डिंपल को भी राजेश के साथ रखा। दोनों
तीमारदारी मेँ लगी थीँ। राजेश की अंतिम इच्छा थी,“अंतिम संस्कार शानदार हो”।
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अरविंद कुमार |
और ऐसा
ही हुआ। देश भर के जो दीवाने उसे भूल गए थे, उस दिन उनकी आंखेँ भी भर आईं। पूरा बॉलीवुड आख़री सफ़र मेँ उस के पीछे चल रहा था। उनमेँ अमिताभ भी था।
टीवी पर
पूरा देश राजेश नाम के ‘आनंद’ को जाता देख रहा था।
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
संपर्क - arvind@arvindlexicon.com /
pictureplus2016@gmail.com
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता
विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके किसी भी भाग को
अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा। संपादक-पिक्चर प्लस)
शराब सच में उनकी खा गई वक्त से पहले ही...!!
जवाब देंहटाएंराजेश खन्ना के अंतिम पल में बहुत बुरी स्थिति में मैंने देखा !
जब रिंकी के साथ पृथ्वी थियेटर में प्ले करते थे, में कई बार जुहू वाले बंगले पे रिंकी को छोड़ने जाता था तो नीचे वाले हाल में राजेश खन्ना को बेसुध पड़ा देखता था !!