रजनीकांत की फिल्म नहीं उसकी बॉडी लेंग्वेज बिकती है
फिल्म समीक्षा
‘काला’
निर्देशक - पा रंजीत
सितारे - रजनीकांत, नाना पाटेकर, हुमा कुरैशी, ईश्वरी राव, अंजलि
पाटिल आदि।
*रवींद्र त्रिपाठी
`काला’ देखने के बाद दो बातें
दिमाग में ठहर जाती हैं। एक तो ये सवाल कि रजनीकांत किस
कंपनी का च्यवनप्राश खाते हैं ? मतलब ये कि उनमें जबरदस्त ऊर्जा है और इस उम्र में भी अपनी उस चुंबकीय ताकत तो
बचाए हुए हैं जो युवाओं को भी लुभाता
है और बाकी के दर्शकों को भी। ये भी कह सकते हैं
कि वे अभी भी साबित करने में लगे रहते हैं कि ‘अभी बुड्ढा होगा तेरा बाप’ जैसी फिल्म करने का वक्त उनके पास नहीं आया है।
काहे करें, यदि `अभी तो मै जवान हूं’ जैसे नाम की फिल्म कर सकते हैं।
फिल्म की कहानी
दिमाग में ठहर जाने वाली दूसरी बात ये है कि
आठवें दशक की फिल्मों के विषय का जादू अभी भी
दर्शकों को बांधने में सफल है बशर्ते उसे परोसने का नया तरीका औऱ सलीका हो। वो
विषय था शहर के झुग्गी झोड़ी हटाने को लेकर नायक और खलनायक की जंग। यानी उस बस्ती पर
किसी अमीर बिल्डर या भू-माफिया की नज़र है जहां गरीब लोग रहते हैं। वो भू-माफिया
वहां बुलडोजर चलवाकर उसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। और ऐसे में
उस बस्ती से एक शख्स सामने आता है जो गरीबों का रहनुमा है और बस्ती पर नापाक नजर
रखनेवाले की ऐसी की तैसी कर देता है। उसी तरह की कहानी फिर से `काला’ में आ गई है।
रजनीकांत ने इसमें कारीकाला ऊर्फ काला नाम के उस शख्स का किरदार निभाया है जो
तमिलनाडु से मुबई के धारावी इलाके में आकर अपनी बैठ बना लेता है। वो वहां के
रहनेवालो का माई-बाप की तरह है। फिर हरि दादा (नाना पाटेकर) जैसे भूमाफिया की लालची नजर
धारावी के एक हिस्से पर पड़ती है। हरि दादा उस इलाके में एक बड़ी साफ सुथरी रियाइशी
मकान बनवाना चाहता है ताकि मुबंई को गंदगी (यानी झुग्गी झोपड़ी) से मुक्त किया जा
सके। ऐसे में हरि दादा और काला के बीच टक्कर तो होगी ही। वो होती है और जम के होती
है। टैक्सीवाले से लेकर नगर निगम के कर्मचारी तक काला के साथ आ जाते हैं। कौन
जीतेगा ये अनुमान आप लगा सकते हैं। लेकिन टक्कर जम के होती है और काला के कारनामों
पर लोग फिदा हो जाते हैं। हालाकि नाना पाटेकर ने भी अपना किरदार धांसू तरीके से
निभाया है फिल्म तो रजनीकांत का इमेज बेचने के लिए बनी है न, इसलिए काला नाम के ये
बंदा हरि दादा पर भारी पड़ता है।
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नाना पाटेकर फिल्म 'काला' में |
अभिनय और निर्देशन
रजनीकांत के फैन दक्षिण भारत मे तो हैं ही उत्तर भारत में भी उनके मुरीद
कम नहीं हैं। ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो सिर्फ रजनीकांत ही को देखने जाते हैं।
उनको ये फिल्म अच्छी लगेगी क्योंकि रजनी सर की लगभग सभी चिर-परिचित अदाएं यहां
हैं। दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में तो उनके फैन इन अदाओं पर मर मिटने को तैयार
रहते हैं। पर उत्तर भारत में भी तालियां और सीटियां भरपर मिल ही जाती है। पर हां,
जो फिल्म में कोई नई चीज़, नया अनुभव चाहते हैं उनके लिए यहां कुछ नहीं है। `काला’ पूरी तरह से
रजनकीकांत मार्का मनोरंजन है। निर्देशक ने फिल्म
में रोमांस का भी हल्का मसाला डाला है। हुमा कुरेशी (जिसका फिल्म में नाम जरीना
है) के साथ। लेकिन वो हिस्सा ज्यादा बड़ा नहीं है। सिर्फ ये जताने के लिए है कि
रजनी नाम का ये बंदा इस उम्र में इश्किया सकता है। लेकिन इश्क उसका असली मकसद नहीं
है। वो तो दरअसल गरीबों की रक्षा के लिए पैदा हुआ है और ज्यादा समय तक प्रेम-श्रेम
के झमेले में थोड़े पड़ सकता है! निर्देशक पा रंजीत ने रंगों से भी खेला है। यानी काला और सफेद रंगों से। हरि दादा नेता है इसलिए सफेद पहनता है। और
काला तो काला है। क्या निर्देशक ने ये कहना चाहा है कि जरूरी नहीं कि काला हर हालत
में काला यानी नकारारात्मक ही हो जैसी कि आम समझ रही है। काला भी शुभ का पर्याय हो
सकता है और सफेद अशुभ भी हो सकता है।
रजनीकांत ने निर्देशक पा रंजीत के साथ `काबली’ नाम की फिल्म बनाई थी जो बहुत सफल नहीं रही। देखते हैं `काला’ की सफलता कैसी रहती है?
*लेखक प्रख्यात कला मर्मज्ञ और फिल्म समीक्षक
हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क-9873196343
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