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हेलेन जैसी दूसरी कोई डांसर नहीं हुई |
*संजीव श्रीवास्तव
बायोपिक किस पर बनायें और किस पर नहीं यह विशेषाधिकार फिल्मकार को
प्राप्त है लेकिन दर्शक किस बायोपिक को पसंद करे या नापसंद; यह विशेषाधिकार भी
उसके हिस्से आता है। संजय दत्त पर बायोपिक को लेकर भी देश में इन दिनों यही बहस
छिड़ी है-कि क्या संजय दत्त की लाइफ बायोपिक के लायक थी? संजय की पर्सनाल्टी
और उसकी प्रोबलम की आखिर मंजिल क्या थी? संजय दत्त का प्रारंभिक जीवन विवाद और नकारात्मकता से भरा हुआ है, तो
क्या वह केवल इसलिए सहानुभूति का पात्र बन जाता है कि आज की तारीख में वह कुशल और
सफल अभिनेता है? क्या संजय दत्त इसलिए बायोपिक के लायक है कि उस पर निर्माताओं के
करोड़ों रुपये अटके रहते हैं? क्या संजय दत्त इसलिए बायोपिक के लायक है कि उसने जेल यात्रा की थी? और नामी शख्सियत सुनील
दत्त के बेटे हैं - जिन्होंने सत्ता, सिनेमा और समाज के तीनों पाये पर खुद को समान
रूप से संभाले रखा था? लेकिन संजय दत्त? संजू बाबा तो उस शिखर व्यक्तित्व की रही सही गरिमा को ही खत्म किये
जा रहे थे। दाद दीजिये उस पिता को जिन्होंने संजू को संजय दत्त बनाया। लिहाजा जिसे
आज हिरानी ने अपनी फिल्म में नायक बनाकर पेश किया है-उसकी पृष्ठभूमि का असली हीरो तो
सुनील दत्त है। लेकिन बेचारे हिरानी भी क्या करते - रणबीर, संजय और मल्टीप्लेक्स
के त्रिकोणात्मक बाजारू आयाम ने उनको ‘संजू’ बनाने पर मजबूर कर दिया। क्योंकि जो वर्तमान में है, ‘मान्यता’ उसी की है।
बहरहाल बात जरा हल्की जरूर लग सकती है लेकिन मार्के की प्रतीत होती है
कि इसी आधार पर राहुल महाजन पर बायोपिक क्यों नहीं बननी चाहिये – ड्रग्स, लव्स और
स्ट्रगलर्स लाइफ के पैमाने पर राहुल महाजन का जीवन भी क्या मल्टीप्लेक्स की मार्केटिंग
पॉलिसी पर खरा नहीं उतरता?
लेकिन राहुल पर बायोपिक बनाने का जोखिम कोई नहीं उठा सकता, क्योंकि आज
की तारीख में उस पर निर्माताओं के करोड़ों रुपये अटके नहीं हैं और वह सीन से बाहर
भी है। जबकि वह भी नामी-गिरामी बाप का बेटा है।
‘संजू’ से बदलेगा बायोपिक बनाने का ट्रेंड
हिन्दी फिल्मों के इतिहास में ‘संजू’ बायोपिक फिल्म की कटेगरी में एक नये नजीर की तरह हमेशा याद की
जायेगी। बायोपिक बनाने का चलन काफी पुराना है। रुस्तम से लेकर गांधी और मंगल पांडे
से लेकर सुभाष, भगत सिंह, मिल्खा सिंह, धोनी, माझी आदि कई ऐसी बायोपिक फिल्में
बनकर हमारे सामने आ चुकी हैं, जिनके पैमाने और संजू के पैमाने पर अगर गौर करें तो
उनमें जमीन-आसमान का अंतर महसूस होता है। ये यात्रा सकारात्मकता से नकारात्मकता की
ओर जाती है। बायोपिक श्रेणी में ‘संजू’ ‘जंजीर’ और ‘दीवार’ की तरह उल्लेख की जायेगी। यहां से
सिल्वर स्क्रीन पर बायोपिक के नायक का मिजाज बदल रहा है। फिल्मकार का फोकस एक्टर
की पैकेजिंग पर है। ‘संजू’ के माध्यम से हिरानी ने
निसंदेह
संजय दत्त और रणबीर कपूर दोनों की पैकेजिंग की है। और पैकेजिंग की इसी नई परंपरा
की सफलता को देखते हुए आने वाले समय में फिल्मी पर्सनाल्टी पर बायोपिक बनाने का
नया चलन शुरू होगा, जिसका पैमाना केवल और केवल यह होगा कि किसकी लाइफ़ स्टाइल
कितनी कंट्रोवर्सियल और निगेटिव रही है। कुछ नाम गिनाये भी जा सकते हैं - जिन पर
भविष्य में फिल्में बन सकती हैः मसलन- सलमान खान, (क्योंकि यहां भी जेल यात्रा है,
कोर्ट ट्रायल है और मीडिया कवरेज भी) , राखी सावंत (उत्तेजना और विवादों से भरपूर
- जो खुद को हमेशा मीडिया की बेटी बताती रही हैं), सनी लियोनी (शुरुआती शोषण और
संघर्ष भरे जीवन जीते हुए कैसे बॉलीवुड में आकर एक इज्जतदार किरदार के रूप में
स्थापित किया)...ऐसे कई और किरदार हो सकते हैं।
बायोपिक के असली किरदार
जाहिर है इस होड़ में बड़ी समस्या यह होगी कि बायोपिक के वास्तविक किरदार
को भुला दिया जायेगा। और वैसे किरदारों को अमर किया जायेगा जिसका मिजाज 'डर्टी पिक्चर', ‘रईस’, ‘हसीना पारकर’ या ‘सिमरन’ के मिजाज के करीब
होगा। लेकिन इन सबसे परे फिलहाल मेरे जेहन में बायोपिक के लिए जो सबसे अहम किरदार
की छवि नाच रही है, वो है हेलेन। मेरी गुजारिश है कि किसी फिल्मकार को हेलेन के जीवन
पर बायोपिक जरूर बनाना चाहिये। एक ऐसी अदाकारा जिसने जीवन की तमाम दुश्वारियों को सहते हुए भी दूसरों का वैसा भरपूर मनोरंजन कराया जैसा आज तक दूसरी अभिनेत्री/डांसर नहीं कर सकी। लेकिन हेलेन पर बायोपिक बनाना चुनौतीपूर्ण भी कम
नहीं होगा क्योंकि उस किरदार को पर्दे पर जीना और बिजली की तरह नाचना उस तरह तो
बिल्कुल आसान नहीं होगा जिस तरह से धोनी और संजय दत्त के किरदार को निभा लेना।
(लेखक ‘पिक्चर प्लस’ के संपादक हैं। दिल्ली में निवास।
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