जाह्नवी को भी चाहिए कोई ‘हिम्मतवाला’ !
![]() |
जाह्नवी और ईशान |
फिल्म समीक्षा
धड़क
निर्देशन - शशांक खेतान
कलाकार - जान्ह्वी कपूर, ईशान खट्टर, आशुतोष राणा
*रवींद्र त्रिपाठी
‘धड़क’ को
लेकर दो तरह की उत्सुकताएं फिल्म प्रेमियों के दिमाग में रही होंगी। एक तो सामान्य
दर्शक के मन में कुलबुला रहा होगा कि श्रीदेवी की बड़ी बेटी जान्हवी कपूर इसमे
कैसी लगी हैं। वे अपनी मां की विरासत को आगे बढाने वाली हैं या नहीं? ऐसे दर्शकों के लिए मेरा जवाब है कि इस फिल्म में
जो जान्हवी दिखी हैं उनमें भोलापन है। बतौर अभिनेत्री उनमें वह सहज प्रतिभा है जो शुरू
से अंत तक अपने किरदार को शिद्दत से जीती है। उनके पास वही मासूमियत है जो
श्रीदेवी के आरंभिक फिल्मों में दिखती है। हालांकि श्रीदेवी जैसी चपलता उनके यहां
नहीं है। कम से कम इस फिल्म में तो नहीं दिखी है। ये कोई कमी भी नही हैं। बस
श्रीदेवी से तुलना के क्रम में ऐसा कहना पड़ रहा है।
और जहां तक दूसरी उत्सुकता का सवाल वह `सैराट’ (2016; निर्देशक-नागराज मंजुले) को लेकर है। सर्वविदित है `धड़क’ मराठी फिल्म `सैराट’ का बॉलीवुड़ीय
और हिंदी संस्करण है। `सैराट’ दलित विमर्श को फिल्मी दुनिया में
लानेवाली एक बड़ी भारतीय फिल्म रही है।
क्या `धड़क’ भी वैसी ही है? इसका
उत्तर है-नहीं। इसमें भारतीय समाज में जाति को लेकर सामाजिक पूर्वग्रह का प्रसंग
जरूर आता है। लेकिन वैसा नहीं जैसा `सैराट’ में
है। फिल्म को `ऑनर किलिंग’ यानी जाति सम्मान के लिए हत्या वाले मसले में
तब्दील कर दिया है। यानी `सैराट’ में जो बहस है उसे महीन बनाकर पेश किया
गया है। `धड़क’ मिजाज और बनावट के स्तर पर एक प्रेम कहानी
है। शायद इसके पीछे व्यावसायिक हित की बात है। यानी फिल्म ऐसी बनाओ जिसमें
सैद्धांतिक बहस भी थोड़ी सी रह जाए और बॉक्स ऑफिस भी मालामाल रहे। दोनों लक्ष्य एक
साथ भेदने का प्रयास यहां है। इसमें कितनी सफलता मिलती है, ये
देखना है। `धड़क’ के निर्देशक शशांक खेतान `हंप्टी
शर्मा की दुल्हनिया’ (2014) और बद्रीनाथ की दुल्हनिया (2017) जैसी
शादी ब्याह मार्का फिल्म पहले भी निर्देशित कर चुके
हैं। उनसे ये अपेक्षा करना कि वे सामाजिक संदेश वाली कोई जबर्दस्त फिल्म बनाएंगे,
अनुचित होगा।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी राजस्थान के उदयपुर से शुरू होती
है। झीलों का शहर उदयपुर। यहां मधु (ईशान खट्टर) अपने पिता के साथ होटल चलाता है।
सिर्फ इतना पता चलता है कि वह ऊंची जाति का नहीं है। किस जाति का है ये फिल्म में
बताया नहीं गया है। मधु के सपने में पार्थवी (जान्हवी कपूर) आती है। घूंघट में और
लाल लाल लिपिस्टिक लगाए। फिर एक भोजन प्रतियोगिता में मधु की मुलाकात पार्थवी से
होती है जो अपने सामंती पृष्ठभूमि और सोच वाले पिता (आशुतोष राणा) के वहां आती है।
मधु घेवर और मिर्ची जैसे खाद्य पदार्थ जम के खाने की प्रतियोगिता में विजयी रहता
है तो पार्थवी के हाथों पुरस्कृत होता है। और यहीं से होती है दोनों के बीच प्रेम
की शुरुआत है। बात आगे बढ़ती है और मामला `आई लव
यू’ और `आई लव यू टू’ तक पहुंच जाता है। लेकिन जब अगला चरण चुंबन यानी
किसिंग सीन पर पहुंचने को होता है तो हंगामा बरप जाता है और दोनों की जान पर बन
आती है। लड़की का सामंती परिवार मधु के खून का प्यासा हो जाता है। क्या होगा इस जोड़ी का? अंत
लगभग वैसा ही है जैसा `सैराट’ में है। हां, थोड़ा सा बदलाव जरूर है।
![]() |
'धड़क' का एक दृश्य |
अभिनय और निर्देशन
फिल्म उदयपुर की, खासकर उसके झीलों की प्राकृतिक
सुंदरता तो दिखाती ही है साथ ही कोलकाता की सैर भी कराती है और बंगालियों की
जीवनशैली को भी सामने लाती है। निर्देशक शशांक खेतान ने अपनी विनोदप्रियता दिखाने
के लिए कुछ प्रयोग भी किए हैं। जैसे प्रेम निवेदन के संदेशवाहक और संदेशवाहिका को
स्कूली बच्चों का ड्रेस पहनवाया है। ईशान खट्टर भी एक अपने काम से दर्शकों के मन
को मोहते हैं। पर साथ ही ये भी कहना पड़ेगा कि फिल्म न तो सामंतवाद और न जातिवाद
को लेकर कोई बहस जगाती है। हां, फिल्म का एक गाना अवश्य मन को मोहनेवाला है- `केसरिया
म्हारो बालमा, पधारा म्हारी कंट्री मा रे’। इसे फिल्माया
भी बेहतरीन तरीके से गया है। `धड़क’ महानगरीय
युवा वर्ग के बीच लोकप्रिय होगी। जान्हवी के प्रशंसकों का नया वर्ग भी तैयार होगा।
लेकिन `सैराट’ जैसा बौद्धिक आकर्षण इसमें नहीं है। पर
ये तो न तो निर्देशक की इच्छा थी और न निर्माताओं की।
रेटिंग - 2.5 स्टार
*लेखक प्रख्यात कला
मर्मज्ञ और फिल्म समीक्षक हैं। दिल्ली में निवास।
संपर्क-9873196343
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें