फिल्म समीक्षा
फन्ने खान
निर्देशक - अतुल मांजरेकर
सितारे - अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय बच्च्न, राज कुमार राव, दिव्या
दत्ता, पीहु सैंड
*रवींद्र त्रिपाठी
वैसे इस फिल्म को अपने `अच्छे दिन आएंगे’ वाले गाने के लिए
हुई चर्चा के कारण कुछ शोहरत मिल गई है। इस गाने के बोल सच में बदले गए हैं या
नहीं इसे लेकर चटखारे लिए जा रहे हैं। इसका लाभ तो फिल्म के प्रमोशन में हुआ है।
पर इतने भर से फिल्म दर्शकों के दिलों में अपने झंडे गाड़ पाएगी? संदेह है क्योंकि इसकी कहानी में बहुत कच्चापन है।
फिल्म की कहानी
`फन्ने खान’ आधी सस्पेंस ड्रामा
और आधी म्यूजिकल है। इसमें प्रशांत शर्मा उर्फ फन्ने खां नाम का एक छोटा मोटा गायक
है जिसकी चाहत तो मोहम्मद रफी जैसा गायक बनने की थी लेकिन वैसा नहीं हो सका। होता
तो यही रहा है कि आदमी अपने ख्वाब पूरे नहीं कर पाता है वो चाहता है कि उसके बच्चे
उसे पूरा करें। तो अब फन्ने अपनी बेटी लता लता को बड़ी गायिका बनाना चाहता है। लता
बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय बच्चन) नाम की मशहूर गायिका की फैन है और गाती भी अच्छी
है। लेकिन चूंकि वो मोटी है इसलिए गीत की प्रतियोगिताओं में उस पर फब्तियां भी कसी
जाती है। वह अपने पिता से भी नाराज रहती है। लेकिन फन्ने तो आमदा है अपनी बेटी को
बड़ी गायिका बनाने के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े। इसीलिए वो बेबी सिंह को धोखे से
और अपने एक सहयोगी की मदद से अगवा कर लेता है? क्या इससे उसे अपनी
बेटी को सपना पूरा करने में मदद मिलेगी? क्या बेबी सिंह उसकी सहायता करेगी? क्या लता और उसके पिता को इससे फायदा होगा?
निर्देशन और अभिनय
`फन्ने खां’ `एवरीबडी इज फेमस’ नाम की एक बेल्जियम
फिल्म का रूपांतर है और ये अलग से कहने की जरूरत नही है कि रूपांतर बहुत कमजोर हुआ
है। फिल्म में दो ही दमदार चीजें हैं- अनिल कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन की मौजूदगी
और कुछ अच्छे गाने। लेकिन बेटी लता की भूमिका में पीहू सैंड
का चरित्र ऐसा लिखा गया है दर्शक को उससे बहुत देर तक सहानुभूति नहीं होती। बल्कि
उस पर कोफ्त होती है कि वह अपने पिता को हमेशा खरी खोटी क्यों सुनाती रहती है। अगर
बेटी का चरित्र थोड़ा मासूमियत भरा होता तो फिल्म और बेहतर हो जाती है। फिर भी
फिल्म का अंत खूबसूरत तरीके से किया गय़ा है।
*लेखक प्रख्यात कला मर्मज्ञ और फिल्म समीक्षक
हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क-9873196343
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