माधुरी के
संस्थापक – संपादक अरविंद कुमार से
जीवनीपरक
सिनेवार्ता ; भाग 45
(यह क़िस्त ‘सुहाग रात’ वाली कम्मो गीता बाली को समर्पित है।)
‘सोलह साल की उम्र में सन् 1946 की ‘बदनामी’ फ़िल्म मेँ उसका नाम ‘गीता’ था। उसमें पिता का सरनेम जोड़कर वह
गीता बाली कहलाने लगी थी। लेकिन ‘सुहाग रात’ में उसे नई कलाकार के रूप में ही पेश किया गया था।
कलाकार के रूप में वहीँ से उस की पहचान शुरू हुई थी।
उससे मेरी पहली और अंतिम मुलाक़ात हुई 21 जनवरी 1965
में बंबई में नेपियन सी रोड के पास वाले बाणगंगा श्मशान में।
तब वह 34 साल की थी। उसका फ़िल्मी जीवन कुल दस साल का
था। इसमें उसने लगभग सत्तर फ़िल्मों में काम किया। यह कल्पना करना बेकार है कि वह
और कुछ साल रह पाती तो क्या कुछ कर गुज़रतीं। पर मेरी उम्र के फ़िल्म प्रेमियों को
ये दस साल याद रहेंगे।
मैं गवाह हूं कि वह गीता (कम्मो) पंडित केदार शर्मा के
दिल दिमाग़ पर उन दिनों तक तारी थी जब मैं उन्हें ‘सुहाग रात’ पर अपना ‘शिलालेख’ सुना
रहा था। उन दिनों वे एक किशोरी को अभिनय के लैसन दे रहे थे। कई बार उस लड़की की
मां भी वहां आती थी। लड़की कुछ भी करती, शर्माजी कुछ गीता बाली जैसा कर के दिखाते
पर वह वैसा कर नहीँ पाती थी।
वह जो चुलबुलापन और शरारती मस्ती थी गीता बाली में उसमें
कुछ तो उस की अपनी थी और कुछ आज के पाकिस्तान वाले सरगोधा ज़िले की पंजाबनों की
थी, जहां उसकी पैदाइश हुई थी। पैदाइशी नाम था हरकीर्तन कौर जिस पर गुरद्वारे में
कीर्तनकार का प्रभाव नज़र आता है। वे लोग 1947 के देश विभाजन से पहले ही अमृतसर आ
गए थे। बंबई में मां बाप के प्रोत्साहन से हरकीर्तन (गीता) और बहन हरदर्शन ने
शास्त्रीय संगीत और नृत्य के साथ साथ घुड़सवारी और गतका की ट्रेनिंग भी की थी। इन
सब का असर गीता के व्यक्तित्व और अभिनय पर पड़ना स्वाभाविक ही था।
1948 की ‘सुहाग रात’ के बाद पचासादि दशक शुरू होते होते वह स्टार
बन चुकी थी। 1950 मेँ राज कपूर के साथ वह केदार शर्मा निर्देशित सफल फ़िल्म ‘बावरे नैन’संगीतकार रोशन
निर्देशत गीत ‘तेरी दुनिया
में दिल लगता नहीँ’ लोगों को अभी
तक याद है और मुझे भी याद है कि कई दोस्तों के साथ मैंने भी वह देखी थी। गीत स्वयं
केदार शर्मा ने लिखे थे। ‘ख़यालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते’ गीत हमारी पीढ़ी में क्रेज़ था।
1951 में देव आनंद की आरंभिक सफल फ़िल्म बाजी में नर्तकी
लीना के रूप में गीता बाली –‘अपने पे भरोसा है तो
दांव लगा ले’। फ़िल्म
निर्माता थे स्वयं देव आनंद और यह निर्देशक गुरुदत्त की पहली फ़िल्म थी। इसकी अपार
सफलता ने देव आनंद को चोटी के कलाकारोँ में खड़ा कर दिया था।
1952 की ‘आनंद मठ’
में ‘वंदे मातरम’
गाती साध्वी गीता बाली में उसका एक और रूप सामने आया। इसमें उसके सह-कलाकार थे
पृथ्वीराज कपूर, भारत भूषण, प्रदीप कुमार (पहली फ़िल्म) और अजीत।
उल्लेखनीय है कि भविष्य में ‘आनंद
मठ’ के पृथ्वीराज उसके ससुर बनने वाले थे
और‘बावरे नैन’
का राज कपूर उसका जेठ।
गीता की कुछ अन्य नामी फ़िल्म हैं –
मधुबाला के साथ 1949 की ‘दुलारी’, सुरैया की बिगड़ैल छोटी बहन के रूप में ‘बड़ी बहन’, शेख़ मुख़्तार के साथ 1951 की ‘घायल’, भगवान दादा के साथ
1951 के ‘अलबेला’ और 1953 की ‘झमेला’, गुरुदत्त के साथ
1953 की ‘बाज़’, अजीत के साथ 1955 की
‘बारादरी’, सोहराब मोदी और
कामिनी कौशल के साथ 1958 की ‘जेलर’, आई.ऐस. जौहर
के साथ ‘मिस्टर इंडिया’। राजेंद्र कुमार के
साथ 1955 की ‘वचन’ के लिए श्रेष्ठ
हीरोइन के लिए नामांकित भी हुई थी।
23 अगस्त 1955 . शम्मी कपूर से शादी का वर्णन
स्वयं शम्मी ने इस तरह किया है...
गीता से बड़ी रस्मी सीमेरी
पहली मुलाक़ात 1955 में ‘मिस कोका कोला’ की शूटिंग के दौरान
हुई थी। उसे अच्छी तरह जाना केदार शर्मा की फ़िल्म ‘रंगीन रातें’ की शूटिंग में
रानीखेत में। हीरोइन थी माला सिन्हा। गीता पहले तो उसमें थी ही नहीँ, पर पुरुष के
रूप में एक छोटा सा सीन करने आ टपकी थी। दो दिलों को मिलाने के लिए रानीखेत से
बढ़िया कोई और जगह हो ही नहीँ सकती। तब गीता चौबीस की थी, मुझसे एक साल बड़ी। शाम
वक़्त काटने हम बातें करने लगते। उसने अपने पारिवारिक कष्टों की बात की। पापा की
आय कम थी, नज़र कम हो रही थी। भाई, बहन और मां को सुनाई कम देता था। किसी की भी
हिम्मत साथ छोड़ सकती थी, पर गीता जूझ रही थी।
यह कहना कठिन है, मैं किस
घड़ी उसे चाहने लगा। मेरा प्यारा पालतू शेर कहीँ भटक गया था। वह मुझे ढारस बंधाने
लगी। एक रात सब शूटिंग से लौट रहे थे। मोड़ पर मुड़ते ही दिखाई दी जीप पर चढ़ी
गीता जो नाच सी रही थी। मैं दौड़ा। “शम्मी, वह शेर। कहीं वह
तुम्हारा शेर तो नहीं। उधर गया है लाओ, अपनी बंदूक़ लाओ।” जीप के बोनट पर वह
ख़ुशी से नाचती चीख़ रही थी। मैं अवाक् था। उसे डर नहीँ था। वह कोई जंगली शेर
निकला। तभी मुझे गीता से प्रेम हो गया। वह 1955 की दूसरी अप्रैल मुझे अभी तक याद
है।
सब कुछ नियति का लिखा
था। वरना जिस गीता का ‘रंगीन रातें’ में कोई रोल नहीँ था,
कैसे वह उस में घुस आई और मेरी उससे मुलाक़ात हो पाई।
हम दोनों
प्यार में दीवाने थे। पर कई सवाल थे। वह मुझ से बड़ी थी। ‘आनंद मठ’ में पापाजी
पृथ्वीराज जी के साथ काम कर चुकी थी। ‘बावरे नैन’ में बड़े भाई
राज की हीरोइन थी। उन्हें यह रिश्ता कैसा लगेगा। पर मैं पक्का था। “करूंगा तो उसी
से। वही मेरी जीवन संगिनी हो सकती है।” उधर उस की भी निजी समस्या थी। उसका परिवार उस पर आश्रित था। वह गंभीर और
समझदार थी। “मैं शादी कर
लूं तो उनका क्या होगा।”
पर हम अलग भी
नहीँ हुए। मेरी दीवानगी बढ़ती जा रही थी। मैं भी अड़ा था। मुस्करा कर वह टाल जाती।
और फिर 23
अगस्त 1955 को जो होना था हो कर रहा। घरवाले पृथ्वी थिएटर के साथ भोपाल में थे। उस
शाम हम दोनों जुहु होटल में थे। मैंने फिर गीता से शादी की बात की। डर था कि वह ‘ना’ कर देगी, पर ‘हां’ कर दी! ‘करनी है तो आज
ही सह।’ मैं भौंचक्का
था। वह बोली, “हां, आज। आज नहीँ
तो फिर कभी नहीं।”मैंने भी कहा,
“ओके, अभी सही।”
फटाफट हम
अनुभवी दोस्त जानी वाकर के घर गए। हफ़्ते भर पहले उसने नूर से शादी की थी इसी तरह।
उसने कहा, “हम तो मुसलमान
हैं। हमें बस कोई काज़ी दरकार था। तुम हिंदू हो, मंदिर जाना होगा।” हम मेरे
दोस्त हरि वालिया के घर बांद्रा गए। उसकी फ़िल्म ‘काफ़ी हाउस’ में काम कर
रहे थे। वह हमें नेपियन सी रोड के पास वाले बाणगंगा मंदिर ले गया। हमारी शादी का
एकमात्र गवाह हरि वालिया था। गीता की शलवार कमीज़ मुड़ीतुसी थी, मैं कुरता पाजामा
पहने था। पंडितजी ने हवन कुंड के चारों ओर फेरे कराए। हम पति-पत्नी बन गए। गीता ने
पर्स में से लिपस्टिक निकाली। मैंने उसकी मांग भर दी।
अब हम लोग
मेरे बाबा के पास गए माटुंगा में आशीर्वाद लेने। उन्होंने तहे दिल से हमारा स्वागत
किया। वहीँ से मैंने मां-बाप को भोपाल फ़ोन करके ख़बर दी कि मैंने शादी कर ली है।
अब हम गीता के
घर गए। ख़ुशख़बरी देने। उन लोगों को हमारे संबंध का ग़ुमान तक नहीँ था। जब से घर
से निकली थी, गीता ने उन से संपर्क नहीँ किया था। वे फ़िक्र में थे कि देर रात
बेटी कहाँ है। हमे आया देख उनकी साँस में साँस आया। वे लोग भी दिल से ख़ुश हुए।
(भाग 46 - ‘सुहाग रात’ वाली
बेगम पारा - एक चीफ़ जज की शोख़ बेटी जो अपने ज़माने की सब से बोल्ड अभिनेत्री थी
- वेशभूषा और बरताव में – इसी लिए दिलीप कुमार परिवार में अप्रिय रही।)
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
संपर्क - arvind@arvindlexicon.com
/ pictureplus2016@gmail.com
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना
कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा।संपादक-पिक्चर प्लस)
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