फिल्म समीक्षा
स्त्री
निर्देशक - अमर कौशिक
कलाकार - राज कुमार राव, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अपार शक्ति खुराना
*रवींद्र त्रिपाठी
हिंदी में हॉरर फिल्में कम ही अच्छी बनी हैं और हॉरर कॉमेडी तो और भी
कम।`भूतनाथ’ या गोलमाल `अगेन’ जैसी फिल्में अपवाद
हैं और अपवादों की इसी कड़ी में हैं। वैसे अपने यहां हॉरर फिल्म का व्यावहारिक
मतलब भुतहा फिल्म रहा है। भूत यहां भी है।
शायद ज्यादा सही ये कहना होगा कि यहां भूतनी है। पर भूतनी का ये किस्सा भयानक कम
है और मजेदार ज्यादा। कुछ कुछ रोमांटिक भी। हिंदी फिल्मों को ऐसी रोमाटिंक भूतनी
की जरूरत है।
फिल्म की कहानी
मध्य प्रदेश का शहर चंदेरी साड़ी के लिए मशहूर है। इस फिल्म की कहानी
भी चंदेरी शहर की है। हालांकि वहां की साड़ियों का जिक्र इसमें नहीं के बराबर है।
शायद निर्देशक भूतनी देखने के चक्कर में साड़ियां नहीं देख पाया। पूरी फिल्म एक
भूतनी को लेकर है जो आम लोगों की जुबान में,`स्त्री’ कही जाती है। `स्त्री’ नाम की इस भूतनी के
बारे में चंदेरी शहर में किंवदंती ये है कि वह साल में चार दिनों के लिए वहां आती
है और रात में किसी पुरुष को उठाकर ले जाती है। सिर्फ उनके कपड़े छोड़ देती है।
उसके डर से गांव के लोग अपने घरों के आगे लिखवा देते हैं-`स्त्री तुम कल आना’। मानों ये पढ़कर वो
नहीं आएगी। बहरहाल, किस्सा है तो है।
इसी चंदेरी शहर में विकी (राज कुमार राव) नाम का एक नौजवान दर्जी है
जो इतना फटाफट घाघरा चोली सिलता है कि मत पूछिए। इसीलिए विकी के यहां कपड़े सिलाने
के लिए लाइन लगी रहती है। विकी के पास एक दिन एक खूबसूरत लड़की (श्रद्धा कपूर) आती है। विकी उसका नाम भी पूछ नहीं पाता। आखिर तक। ये खूबसूरत लड़की
उसे तीन दिनों में घाघरा सिलने को कहती है। लेकिन बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं
रहती है। सिलसिला आगे बढ़ता है और वह लड़की विकी के लिए रहस्यमयी हो जाती है। विकी
के दोस्तों- जना (अभिषेक बनर्जी) और बिट्टू (अपारशक्ति खुराना)- के लिए भी। उधर
चंदेरी शहर `स्त्री’ के प्रकोपों से ग्रस्त है। शहर के एक बूढ़े पंडित (विजय राज) से विकी
और उसके दोस्तों का साथ दे रही उस रहस्यमयी लड़की को `स्त्री’ को खत्म
करने का नुस्खा मिलता है। बड़ा अजीब नुस्खा है। क्या ये नुस्खा काम आएगा? और इस `स्त्री’ का इतिहास क्या रहा है और क्यों वो ऐसी बनी? ये अंत में उजागर
होता है।
अभिनय और निर्देशन
राज कुमार राव के लिए ये चुनौतीपूर्ण भूमिका थी कि कैसे एक भीतर से
डरा हुआ आदमी साहसी होने का भी किरदार निभाए और प्रेम दीवाने का भी। इन तीनों
पहलुओं को राज कुमार ने बखूबी निभाया है और एक लड़ी में पिरो दिया है। श्रद्धा
कपूर शुरू से आखिर से रहस्य की तरह रही। पंकज त्रिपाठी ने पिछली कुछ पिल्मों से
ऐसी हास्य भूमिकाएं निभाई हैं जिसमें किरदार बाहर से गंभीर बना रहता है और कॉमिक
टाइंमिंग के सहारे लोगों को हंसा देता है। इस फिल्म में भी ऐसा होता है। फिल्म का
हास्य सामान्य जनजीवन से उठाया गया है जैसे एक दृश्य में बिट्टू पेट्रोल पंप से
अपनी मोटर साईकिल के लिए सिर्फ पचास रूपए का पेट्रोल भराता है और जब आगे चल कर गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो जाता है। ऐसे दृश्य और भी हैं।
*लेखक वरिष्ठ कला और फिल्म समीक्षक हैं। दिल्ली में निवास।
संपर्क – 9873196343
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें