फिल्म समीक्षा
मनमर्जियां
निर्देशक
- अनुराग कश्यप
कलाकार
- अभिषेक बच्चन, तापसी पन्नू, विकी कौशल
*रवींद्र
त्रिपाठी
प्रेमिका
कहती है – ‘चल भाग
चलें’। प्रेमी ‘हां’ कहता है। वह भागने के लिए जीप लेकर आ भी जाता है। दोनों घर छोड़कर
निकल भी जाते हैं। लेकिन रास्ते में जब एक ढाबे पर खाना खाने जाते हैं तो प्रेमी
के पास पैसे नहीं है। प्रेमिका उस समय पैसे तो दे देती है लेकिन बाद में पूछती है
कि घर से कुछ मालमत्ता लेकर नहीं निकला है क्या?
प्रेमी कहता है नहीं, जेब खाली है। प्रेमिका (और दर्शक भी) समझ जाती
है कि प्रेमी कुछ जिम्मेदार किस्म का बंदा नहीं है। फुकरा जैसा है। अब प्रेमिका
कहती है कि जा पहले जिम्मदार बन, फिर देखते हैं कि क्या होता है।
प्रेमिका
का नाम है रूनी (तापसी पन्नू) और प्रेमी का नाम विकी (विकी कौशल)। रूनी बिंदास है।
दोनों अमृतसर में रहते हैं। रूनी हॉकी की खिलाड़ी रही है (हालांकि उसे ये खेल
खेलते हुए नहीं दिखाया गया है) और घर वालों से कभी नजरें बचाकर और कभी उनके सामने
भी अपने प्रेमी से मिल लेती है। विकी एक डीजे ग्रुप में गायक है और बाल भी ऐसे कटा
रखे हैं जैसे फुकरा हों। इन दोनों के बीच तीसरा शख्स भी आ जाता- रॉबी (अभिषेक बच्चन) जो जैसे तैसे रूनी का पति बन जाता है।
लेकिन प्रेमिका को अपना पुराना प्रेमी नही भूलता। वो उसस मिलती रहती है। आखिर में
वो किसकी होगी?
`मनमर्जियां’ हास्य
और मजे की फिल्म है।
क्या
अनुराग कश्यप बदल रहे हैं और बॉलीवुड की मसाला फिल्मों का व्याकरण उनको भी पसंद आ
गया है।`मनमर्जियां’ देख
के तो यही लगता है। अब तक कश्यप प्रयोगशील, विद्रूपता
भरी, हिंसक और सेक्स से भरपूर फिल्में बनाने वाले निर्देशक माने जाते रहे हैं। पर
इस बार वे मीठे - मीठे अहसासों की तरफ
मुड़ गए हैं और पूरी पिल्म के रूप में परिवार के लिए एक निमंत्रण-पत्र तैयार डाला
है। इसमें हिंसा तो नहीं के बराबर है। हां, सेक्स के एक दो सीन हैं, पर दबे दबे
से। जहां तक इसके प्लॉट की बात है ये संजय लीला भंसाली की फिल्म `हम दिल दे चुके सनम’ से एक
स्तर पर प्रेरित है। वहां भी हीरोइन अपने पहले प्यार को भूल नहीं पाती तो पति उसे
पूर्व प्रेमी के पास ले जाता है। फर्क यहीं है कि उसमें ऐश्वर्या रॉय काफी वक्त तक
पर्दे पर `मैं
नीर भरी दुख की बदली’ बनी रहती है। लेकिन यहां तापसी
पन्नू शादी के बाद अपने पति (अभिषेक बच्चन) के साथ
बैठकर ह्विस्की के दो पैग पीती है और उसके बाद पूरे मुहल्ले को सुनाकर कुछ डॉयलाग
भी मारती है और अगले दिन अपने पुराने यार से मिलने भी चली जाती है। वैसे ये फिल्म
तापसी पन्नू की है लेकिन अभिषेक बच्चन भी अच्छे लगे हैं। विकी कौशल शुरू में तो
दमदार दिखते हैं पर कश्यप ने अंत में उन्हें उस नीचुड़े हुए नींबू की तरह बना दिया
है जिसका सारा रस निकल गया है।
(*लेखक चर्चित कला एवं फिल्म समीक्षक हैं। दिल्ली में निवास।
संपर्क
- 9873196343)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें