फिल्म समीक्षा
मंटो
निर्देशक - नंदिता दास
कलाकार - नवाजुद्दीन सिद्दिकी, रसिका दुग्गल,
ताहिर राज भसीन आदि
*रवींद्र त्रिपाठी
उर्दू के लेखक सआदत हसन ‘मंटो’ दुनिया के बड़े कहानीकारों में गिने जाते हैं।`टोबा टेक सिंह’, `काली सलवार’, `खोल दो’, `ठंडा गोश्त’ जैसी अमर कहानियां
उन्होंने लिखी हैं। भारत विभाजन से उपजी त्रासदी पर लिखी गई उनकी ये और ऐसी अन्य
कहानियां हमेशा याद की जाएंगी। मंटो का जीवन भी कम नाटकीय नहीं रहा। वे अविभाजित
भारत में पैदा हुए और विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए। पर वहां भी सकून की जिंदगी नही जी सके। विभाजन
के पहले वे हिंदी सिनेमा के नामी लेखकों में थे। पाकिस्तान जाने पर ये सब छूट गया।
उन पर अश्लीलता के आरोप भी लगे। इसी आरोप की वजह से पाकिस्तान में उन पर मुकदमे भी
चले जिसने उनको मानसिक रूप से परेशान किया। 42 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
फिल्म की कहानी
नंदिता दास की फिल्म `मंटो’ की जिंदगी पर आधारित है और उनकी कुछ कहानियों के भीतर निहित ट्रेजडी को भी
सामने लाती है। ये एक बॉयोपिक है। इस कहानीकार की जीवन यात्रा को दिखाने के साथ
साथ नंदिता उस मनोवृत्ति को भी सामने लाती हैं जिसके कारण विभाजन हुआ। फिल्म मुंबई
(तब के बंबई) के उस माहौल से शुरू होती है जिसमें हिंदी फिल्में में अशोक कुमार और
श्याम आरोड़ा जैसे फिल्मी सितारों का उदय हो रहा था। बंबई में उस वक्त उर्दू अदब
की दुनिया में मंटो के अलावा इस्मत चुगताई और कृशन चंदर भी सक्रिय थे। फिर किन
वजहों से मंटो को पाकिस्तान जाना पड़ा और वहां उनकी जिंदगी में कैसी कैसी गर्दिशें
आई वो सब इस फिल्म में उभरते हैं।
निर्देशन और अभिनय
नंदिता दास की ये फिल्म भारतीय उप महाद्वीप के
एक लेखक के द्वंद्व और उस समय के सामाजिक तनाव को तो सामने लाती है। लेकिन अच्छी
शुरुआत के बाद आगे बढ़ते हुए ढीली और सुस्त होती जाती है। और अंत तो बिल्कुल कमजोर है। `टोबा टेक सिंह’ कहानी से जुड़ा क्लाइमेक्स तो उन दर्शक को
बिल्कुल समझ में नहीं आएगा जिन्होंने मंटो की कहानी को नहीं पढ़ी है। बॉयोपिक
फिल्में उनके लिए भी बनती है जो उस शख्स की वास्तविक कहानी को नहीं जानते हैं जिस
पर फिल्म आधारित है। मगर जो मंटो के बारे में नहीं जानते या जिन्होंने उनकी
कहानियां नहीं पढ़ी हैं उनको ये फिल्म कुछ मामलों में बिल्कुल समझ मे नहीं आएगी। नवाजुद्दीन
सिद्दिकी का अभिनय भी कमजोर है। ऐसा बहुत दिनों के बाद हुआ है। वे मंटो की
वाकपटुता को सामने लाते हैं लेकिन उनके शराबीपन को नहीं। फिल्म में एक एक दृश्य
में क्रमश: ऋषि
कपूर और जावेद अख्तर भी दिखे हैं।
लेखक चर्चित कला विशेषज्ञ व फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क - 9873196343
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