फिल्म समीक्षा
पलटन
निर्देशक - जेपी दत्ता
कलाकार - अर्जुन रामपाल, जैकी श्रॉफ, सोनू सूद, लव सिन्हा, हर्ष वर्धन राणे,
गुरमीत सिंह
*रवींद्र त्रिपाठी
जेपी दत्ता अभी भी अपनी `बॉर्डर’ (1997) फिल्म की मानसिकता से अभी बाहर नहीं
निकले हैं। बेशक वह एक बेहतरीन फिल्म थी। लेकिन उसके बाद भारतीय सेना और युद्ध पर आई
उनकी फिल्म `एलओसी:कारगिल’ कमजोर थी। और अब आई है `पलटन’। बॉक्स ऑफिस के युद्ध
में ये शायद ही अपने झंडे गाड़ पाए।
`पलटन’ 1967 में भारत और
चीन के बीच हुई उस सैन्य टकराहट पर आधारित है जो सिक्किम के पास नाथू लॉ दर्रे पर
हुआ था। इस टकराहट में भारतीय सेना जीती थी। हालांकि इसे युद्ध कहना कठिन है लेकिन
जेपी दत्ता ने इस वाकये को बड़ा बनाकर पेश किया है। फिल्म जिस ढंग से इस सैन्य
टकराहट को दिखाती है उससे लगता है कि नाथू दर्रे पर भारत ने चीन से हार का बदला ले
लिया था। यहां तक तो आपत्तिजनक नहीं था क्योंकि छोटी सी जीत भी मनोबल को बढ़ाने
वाली होती है। हर देशभक्त को भारतीय सेना के इस पराक्रम और शौर्य की प्रशंसा करनी
ही चाहिए। लेकिन जेपी दत्ता ने इसमे ये भी दिखा दिया है कि उस समय भारत-चीन सीमा
पर तैनात भारतीय सैनिक भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना संजोए भी चीनी सेना से
टकरा रहे थे। जेपी दत्ता जी, सब काम सैनिक ही करेंगे तो भारत के वैज्ञानिक,
अध्यापक और इंजीनियर क्या करेंगे?
उनकी भी राष्ट्र
निर्माण में भूमिका होगी या नहीं?
फिल्म की कहानी
`पलटन’ में केद्रीय भूमिका
कर्नल राय (अर्जुन रामपाल) और मेजर बिशन सिंह (सोनू सूद) की है। वरिष्ठ सैन्य अधिकारी (जैकी श्रॉफ) की तरफ से राय को नाथू लॉ का कमांडिंग अफसर बना कर भेजा जाता है।
कर्नल राय इंग्लैंड के ताजा प्रशिक्षण लेकर लौटा है और मशहूर ब्रितानी सैन्य
अधिकारी जनरल माउंटगुमरी से मिलकर भी आया है। वो बात बात पर माउंगुमरी के किस्से
भी सुनाने लगता है। बहरहाल, वह नाथू लॉ दर्रे पर बाड़ लगाने का काम शुरू कराता है
जिसका चीनी सेना विरोध करती है। दोनों तऱफ से गोलाबारी शुरू होती है और इसमें
आखिरकार भारत को सफलता मिलती है लेकिन कई जांबाज़ सैनिकों को खोने के बाद। फिल्म
इन सैनिकों की बहादुरी को दिखाती है और उनके परिवार वालों की भावनाओं को भी।
निर्देशन व अभिनय
फिल्म कम पैसे में बनी है। एक तो इसमें कोई बड़ा स्टार नहीं है और
सिर्फ दो जगहों की लोकेशन सूटिंग है। एक पंजाब की और दूसरे भारत-चीन सीमा के करीब
की। जेपी दत्ता शायद पहले निर्देशक होंगे जिन्होंने ये दिखाया होगा कि सीमा पर
सैनिक एक दूसरे के खिलाफ पत्थरबाजी भी करते हैं। एक तरह से आदिम शैली का युद्ध भी
दिखा दिया है उन्होंने।
*लेखक वरिष्ठ कला और फिल्म समीक्षक हैं। दिल्ली में
निवास।
संपर्क – 9873196343
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