फिल्म समीक्षा
हेलीकॉप्टर इला
निर्देशक - प्रदीप सरकार
*रवींद्र त्रिपाठी
अगर कॉलेज में पढ़नेवाले किसी लड़के की मां उसी के कॉलेज और कक्षा में
दाखिला ले ले तो क्या हालात होंगे? जाहिर है लड़के को
शर्मिंदगी होगी। लेकिन वो क्या कर सकता है? आखिर मां तो मां है।
वो भी बॉलीवुड की जहां मां का ओहदा काफी बड़ा है। अब दर्शक को यही देखना है कि मां
और बेटे एक-दूसरे के साथ कैसे निभाएंगे? कॉलेज में भी और घर में भी। जहां तक सिनेमा हॉल
का मामला है शायद ही मां बेटे की ये जोड़ी पसंद आए।
फिल्म की कहानी
`हेलीकॉप्टर इला’ में काजोल मां बनी है। सिंगल मदर। काजोल का फिल्म में नाम है इला
रायतुरकर। इला अपने बूते अपने बेटे को पालती है। अब पूछेंगे कि इला का पति कहां है? इसका जवाब कठिन है। क्योंकि इला का पति अरुण (तोता रॉय चौधरी) अचानक ही
घर छोड़कर चला जाता है। क्यों? कोई वाजिब वजह नहीं है। कमजोर सी वजह ये है कि उसके परिवार में कोई
पुरुष सैंतीस-चालीस साल की उम्र से ज्यादा जीता नहीं है। इसलिए वो मरने की आशंका
से घर छोड़कर चल देता है। खैर, इला किसी तरह अपने बेटे विवान (ऋद्धि सेन) को
पालपोस कर बड़ा करती है। लेकिन वो अपने बेटे को लेकर इतनी ज्यादा पोसेसिव रहती है
कि बेटे को घर में एक मिनट का चैन नहीं मिलता।
इला आरंभिक दिनों में बहुत अच्छा गाती थी। लेकिन पारिवारिक झमेले की
वजह उसका ये शौक बीच में खत्म हो गया। बेटा मां से कहता है- अपने लिए कुछ करो और
मेरी जिंदगी मे इतनी दखल मत दो। लेकिन मां तो मां है, वो बेटे के कॉलेज और क्लास
में एडमिशन ले लेती है। इसके बाद कॉलेज से लेकर घर में टंटे शुरू हो जाते हैं। ये
टंटे खत्म होंगे? और होंगे तो किस तरह?
फिल्म आखिर में थोड़ी संभल जाती है लेकिन शुरुआती हिस्से में काफी बोर
भी करती है। इस हिस्से को इतनी जल्दबाजी में दिखाया गया है कि दर्शक के मन में
ठहरता नही हैं। मध्यांतर के बाद फिल्म थोड़ी सी लाइन पर आती है। आखिर हिस्सा जज्बाती
हो गया है पर उसके पहले तो लगता है कि मां तो झक्की है और अपने झक्कीपने की वजह से
अपने बेटे की जिंदगी को घोरमट्ठा कर रही है।
निर्देशन और अभिनय
निर्देशन और अभिनय
काजोल उस उम्र में पहुंच गई हैं जहां हीरोइनों का फिल्मी कैरियर नई
दिशा में मुड़ जाता है। पर काजोल अभी जिद पर अड़ी हैं नहीं, फिल्म मे वो लीड रोल
में ही होंगीं। और इस बात में शक नहीं है कि वे इस कदर फिट हैं कि कॉलेज में दूसरे
लड़के-लड़कियों की अम्मा नहीं लगती है। जैसे आमिर खान ने `ड्री इडियट्स’ उम्र के साथ जुड़ी
छवि को तोड़ दिया था और वे फिल्म में स्टूटेंड ही लगे थे। वैसे ही काजोल भी छात्रा
ही लगी है। निर्देशक ने गलती ये है कि शुरुआती हिस्से को ठीक से संवारा नहीं है।
इसलिए बड़ी देर तक दर्शक को लगता है कि पकाऊ फिल्म देख रहे हैं। ये शुरू से एक
अच्छी म्यूजिकल बन सकती थी। नहीं बनीं।
आनंद गांधी के गुजराती नाटक ‘बेटा कागदू’ पर आधारित यह फिल्म
थोड़ी और तैयारी के साथ बनाई जाती तो बेहतर होती।
दिल्ली में निवास। संपर्क- 9873196343
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