“मेरे पास न कोई फ़िल्म थी, न पैसा था, न कंपनी थी, मेरे ख़िलाफ़ अनगिनत
मुक़दमे दर्ज़ थे, इनकम टैक्स वालों ने मेरे घर पर वसूली का नोटिस चस्पां कर दिया
था”
‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता, भाग 52
सन् 1993 से 1996 तक मैं (अरविंद कुमार) बेंगलुरू में था समांतर कोश को
अंतिम रूप देने के लिए। उन्हीं दिनों अमिताभ का व्यापारी रूप सामने आया। पहले एक
नई तरह का उत्पाद बनाना और बेचना शुरू किया था। कोई पैकेजिंग मैटिरियल। पर वह चल
नहीं पाया। दोष मैनेजरों को दिया गया। कहते हैं तब अमिताभ की हालत ख़स्ता थी। इसके
बाद एक अनोखी स्कीम सामने आई – टेलेंट कंटेस्ट। अख़बारों में बड़े विज्ञापनों में
अमिताभ की फ़ोटो के साथ आमंत्रण फ़िल्म में काम करने के उत्सुकों को आवेदन देने
का। अनोखापन यह था कि प्रति आवेदन पत्र किसी भी डाकख़ाने में सौ रुपए दे कर
ख़रीदें और अपने फोटो संलग्न करके अमिताभ के पास भेजें। डाकख़ानों में भीड़ लग
जाती।
सन् 1995 में अमिताभ ने एक कंपनी बनाई–‘एबीसीएल’ (अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड)। फ़िल्म निर्माण के लिए हॉलीवुड जैसी
कंपनी। इसके दो प्रमुख काम होंगे –1. फ़िल्म निर्माण से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक
सभी गतिविधि। 2. ईवेंट मैनेजमैंट। 150 का स्टाफ़ भर्ती कर ली गई। तीन से आठ करोड़
लागत की दो फ़िल्मों (‘बांबे’ और ‘बैंडित क्वीन’) के डिस्ट्रीब्यूशन अधिकार लिये। दोनों सफल रहीं। साथ ही ‘एबी बेबी’, ‘दिलजले’, ‘रक्षक’, ‘तेरे मेरे सपने’ जैसी फ़िल्मों का संगीत भी ख़रीदा। वह भी
मुनाफ़े का धंधा साबित हुआ। लेकिन कहावत है जिसका काम उसी को साजे। 1996 में कंपनी
ने ‘मिस वर्ल्ड पैजेंट’ और ‘बीपीएल डांडिया’ का ईवेंट मैनेजमैंट का जिम्मा ले लिया। 1996 का ‘मिस वर्ल्ड पैजेंट’ बंगलौर में था। 88 प्रत्याशियों में से ग्रीस की ईरेने स्क्लिवा को
ख़िताब मिला।
लेकिन एबीसीएल को मुनाफ़ा तो हुआ ही नहीं, चार करोड़ से भी ज़्यादा का
घाटा हुआ और बदनामी अलग से। जिस स्पैस्टिक्स सोसाइटी की चैरिटी के नाम पर शो किया
गया था, उसने शोर मचाया कि उसे एक पैसा भी नहीं मिला।
सन् 1999 लाया एबीसीऐल भारी संकट काल। फ़िल्म निर्माण और डिस्ट्रीब्यूशन
में काफ़ी पैसा फंसा था। स्टाफ़ को तनख़्वाह नहीं मिल रही थी। कंपनी की साख रसातल
जा पहुंची थी। दूरदर्शन और कैनरा बैंक ने दावे ठोंक दिए। बच्चन बंबई का बंगला ‘प्रतीक्षा’ बेचना चाहता था, बांबे हाई कोर्ट ने रोक
लगा दी। कंपनी रोगी घोषित कर दी गई।
उस हालत का वर्णन अमिताभ के शब्दों में: “सन 2000 को सारी दुनिया नई सदी का जश्न मना
रही थी, मैं अपने भयावह दुर्भाग्य का जश्न मना रहा था। मेरे पास न कोई फ़िल्म थी,
न पैसा था, न कंपनी थी, मेरे ख़िलाफ़ अनगिनत मुक़दमे दर्ज़ थे, इनकम टैक्स वालों
ने मेरे घर पर वसूली का नोटिस चस्पां कर दिया था।”
अमिताभ का कहना है ,“दोस्तों ने सलाह दी कि घाटे की कंपनी बंद
करो, कुछ नया करो। पर हमने तय किया कि एक एक पैसे की भरपाई करने फ़िल्म निर्माण
में आगे बढ़ेंगे।”
“मेरे सिर पर तलवार लटक रही थी। रात भर नींद नहीं आती थी। एक दिन मैं यश
चोपड़ा जी के पास गया, अपनी हालत बताई। वह शांत भाव से सुनते रहे और आगामी फ़िल्म ‘मोहब्बतें’ में रोल दे दिया। साथ ही मैं टीवी और
फ़िल्मों विज्ञापन करने लगा। अब तक मैं ने नब्बे करोड़ का सारा कर्ज़ चुका दिया
है।”
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'मोहब्बतें' में अमिताभ और शाहरुख खान |
2001 में एक नए नाम से कंपनी ‘ए.बी. कार्प’ शुरू की गई थी। 2009 में उसकी सफल फ़िल्म ‘पा’ बनी। निर्देशक थे आर. बालकृष्ण (संक्षिप्त
नाम बाल्की)। नायक रोगी अमिताभ के साथ अभिषेक बच्चन और विद्या बालन। एक और
उल्लेखनीय फ़िल्म है ‘विरुद्ध’, निर्देशक महेश मांजरेकर।
‘मोहब्बतें’ के साथ ही एक बिल्कुल अनपेक्षित नई शुरूआत
हुई सन् 2000 में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से। पूरे हिंदुस्तान में, गली गली में, नाई की दुकान पर, बिजली के बिलों
के भुगतान की लाइन में – हर जगह हर ज़बान पर – एक ही नाम था बच्चन। और उसके सवाल थे, ‘कंप्यूटर जी’ को लॉक करने पर मिले जवाब थे। कहा जाता है
करोड़पति के पिचासी एपिसोड में अमिताभ को पंदरह करोड़ मिले। इससे भी बड़ी बात यह
थी कि विश्व भर में करोड़पति सीरीज़ का वह श्रेष्ठ उद्घोषक माना गया। इस सबमें उसके
साथ थे दो जन – सहारा ग्रुप के सुब्रत राय और तब समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर
सिंह। अमर सिंह तो अमिताभ का छोटा भाई ही बन गया।
“मेरा सौभाग्य है कि मुझे अमर सिंह जैसा छोटा भाई मिला। मुसीबत में उसी ने
रास्ता दिखाया। उसी ने सुब्रत राय और अनिल अंबानी से मुलाक़ात कराई। इन सबने न
सिर्फ़ पैसा दिया, बल्कि मौरल सपोर्ट भी दी।
... पिछली ग़लतियों की बात करना बेमानी है। आगे से सावधानी बरतूंगा।”
जहां तक कंपनी का सवाल है, अमिताभ अपने को ही दोष देते हैं। “मैं बिजनेसमैन नहीं हूं। कभी था ही नहीं। मेरा सारा कामकाज या तो घरवाले
देखते हैं या मैनेजर।”
कहावत है ‘हिम्मते मर्दां मददे ख़ुदा’। आगे बढ़ने की हिम्मत का परिणाम यह हुआ कि पिछली सदी के सन् सत्तर वाले
दशक में जो लोकप्रिय ‘ऐंग्री यंग मैन’, अब वह महानायक है, ‘बिग बी’ है।
अब उसकी फ़िल्में वैसी नहीँ हैं जैसी ‘ऐंग्री यंग मैन’ की होती थीं या राजेश से प्रतियोगिता की
होती थीँ।
उसे नई पहचान ‘मोहब्बतें’ से मिली, फ़रहान अख़्तर की ‘लक्ष्य’ से, फिर संजय लीला भंसाली की ‘ब्लैक’ से मिली। मैं ‘ब्लैक’ देख कर निकला तो चकित था और एक बार फिर अमिताभ का सिक्का मुझ पर जम गया
था।
2005 की ‘बंटी और बबली’ बनारस के ठगों जैसी फ़िल्म थी। एकमात्र आकर्षण था ‘कारे कजरारे’ गीत।
‘पहेली’ कई कारणों से उल्लेखनीय है। राजस्थान के
लोककथाकार विजयदान देथा की कहानी पर मणि कौल की ‘दुविधा’ का रीमेक थी। लोककथा के बहाने नारी
स्वतंत्रता की पैरोकार पहेली समालोचकों और दर्शकों को समान रूप से प्रिय हुई थी।
इसके निर्माण के पीछे भी एक कहानी है। अमोल इसकी कहानी सुनाने शाहरुख़ के पास गए
थे। शाहरुख ने कहा, “अगर इस में मुझे रोल
दिया जा सकता हो तो आप निर्देशन भी करें।” राजस्थान का जितना अच्छा चित्रण ‘पहेली’ में है कोई और नहीं कर पाया। अमिताभ ने इस
मे गड़रिए की भूमिका की थी।
2005 की रामगोपाल वर्मा की ‘सरकार’ बाल ठाकरे जैसे किसी पात्र की कहानी थी। उसमें ‘सरकार’ का रोल अमिताभ न करते तो और कौन कर पाता का
जवाब है “कोई और नहीं”।
दो साल बाद की विधु विनोद चोपड़ा की ‘एकलव्य’ भटक गई थी, फिर भी यादगार प्रयोग तो थी।
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अरविंद कुमार |
2011 की ‘आरक्षण’ में एक उल्लेखनीय तत्व थी दीपिका पडुकोण। फ़िल्म पिछड़ी जातियों को
नौकरियों में आरक्षण का विरोध करती थी। निर्देशक का कहना था असली रास्ता अच्छी
शिक्षा है। पर ‘पिछडों को यह शिक्षा कैसे मिलेगी’ का निदान कहीं नहीँ था।
नए अमिताभ की ‘पीकू’, ‘पिंक’ और ‘102 नॉट आउट’ मुझे ख़ास तौर पर पसंद हैं। तीनों ही में
अमिताभ का महानायकत्व सिद्ध होता है। ‘102 नॉट आउट’ में तो दो पुराने खिलाड़ियों (अमिताभ और ऋषि कपूर) का खेल अविस्मरणीय है।
अब ‘कौन बनेगा करोड़पति’ का दसवां संस्करण चल रहा है।
अमिताभ बच्चन ने कहा है, “मुझे अच्छा लगता है जब कोई
कंटेस्टेंट अच्छा खेलता है। जब तक शरीर अलाऊ करेगा तब तक काम करता रहूंगा। केबीसी
में लोग मुझे फैमिली मेंबर की तरह देखते हैं पर मैं अपने मुहं मिया मिठ्ठू कैसे
बनूं।”
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना
कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा। संपादक - पिक्चर प्लस)
इसलिए वो Big B हैं....!! Salute him
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