फिल्म समीक्षा
टाइटल - ठग्स ऑफ हिंदुस्तान
निर्देशक - विजय कृष्ण आचार्य
सितारे - अमिताभ बच्चन, आमिर खान, कैटरीना कैफ, फातिमा सना शेख, लॉय़ड
ओवेन आदि।
*रवींद्र त्रिपाठी
बेशक ये एक आलीशान फिल्म हैं। इसके सेट भव्य हैं। वेशभूषा यानी
कॉस्ट्यूम भी शानदार हैं। तीरंदाजी के लाजबाब दृश्य हैं। कैटरीना कैफ का नृत्य भी
दमदार है। खासकर पहला वाला। लेकिन क्या ये फिल्म दिल को छूती है? इसका जवाब है- नहीं।
भव्यता के बावजूद इसमें विश्वसनीयता की कमी है।
और हां, यहां ये कहना भी जरूरी है कि ये फिल्म भारत में एक ज़माने में
प्रचलित ठगी प्रथा पर भी आधारित नहीं है जिसे अंग्रेजों ने खत्म किया। हां, इसमें
एक ठग जरूर है जिसका नाम है फिरंगी मल्लाह (आमिर खान)। फिरंगी ठगी में माहिर है। वो ठगी में इतना
माहिर है कि वो ठगों को भी ठगता है और अंग्रेजों को भी। और एक दिन उसका सामना होता
है खुदाबख्श जहाजी उर्फ आजाद (अमिताभ बच्चन) से। आजाद कंपनी राज के खिलाफ बगावत का
झंडा बुलंद किए हुए है।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी अठारहवीं सदी के उस दौर की याद दिलाती है जब अंग्रेजी ईस्ट
इंडिया कंपनी भारतीय रियासतों को फरेबी ढंग से हड़प रही थी। ऐसे ही दौर में जॉन
क्लाइव (ये राबर्ट क्लाइव नहीं है) नाम का अंग्रेज कंपनी अफसर रौनकपुर रियासत को
अपने कब्जे में कर लेता है और वहां के नवाब सिकंदर मिर्जा (रोनित रॉय) और उसके
बेटे और बीवी की हत्या कर देता है। परिवार में सिर्फ एक बेटी जफीरा (फातिमा सना
शेख)) बच जाती है क्योंकि उसी वक्त वहां आजाद आ जाता है)। आजाद जफीरा को पालता है
और उसे बड़ा तीरंदाज बनाता है। आजाद के अपने गुप्त ठिकाने हैं और विश्वस्त साथी जो
उस पर जान देने को तैयार रहते हैं। कंपनी (यानी ईस्ट इंडिया कंपनी) आजाद और उसके
साथियों को पकड़ने के लिए फिरंगी का इस्तेमाल करना चाहती है। क्या फिरंगी आजाद को
पकड़वाएगा या उसके भीतर भी आजादी का जज्बा पैदा होगा?
इतिहास और संभ्रम
फिल्म इतिहास पर आधारित होने का भ्रम पैदा करती है लेकिन काल्पनिक है।
खुद आंमिर खान का बयान आ गया है कि इसमें
इतिहास नहीं है और ये किसी किताब पर आधारित नहीं है। फिर फेक पब्लिसिटी
क्यों कराई भाई? लेकिन ज़माना ही ऐसा है कि पहले गलत-सलत प्रचार कराओ और फिर कहो कि
हकीकत कुछ और है। दर्शक झांस में आ जाएगा। ठगी सिर्फ अठारहवीं सदी के हिंदुस्तान
में थोड़े थी। आज भी है। कम से कम बॉलीवुड में तो है।
खैर, इतना सब होने के बावजूद फिल्म के कुछ रोचक पहलू हैं। एक तो ये
फिल्म आजादी के विचार के आगे बढ़ाती है। इसमें एक दृश्य है जिसमें आजाद एक उसर
जमीन पर बीच बोने के बाद एक बड़े लठ को रस्सी के सहारे घसीटते हुए हेंगा ( खेती की जमीन को समतल बनाने का एक उपकरण) दे
रहा है। वो ऐसा क्यों कर रहा है ये पूछे वो जो जवाब देता है उसका मतलब ये है कि
असल चीज तो बीज बोना है, शायद वहां फल उग आए। बाद में फिरंगी ये देखता भी है वहां
कुछ समय बाद फल उग आए हैं। ये एक तरह से फिल्म का सकारात्मक संदेश है। फिल्म में
एक बाज भी है जो है जो अक्सर आजाद के ऊपर उड़ता है। ये दिखाने के लिए कि वो बाज
सच्चाई और आजादी के साथ है।
अभिनय और निर्देशन
आमिर खान ठग के रूप में मजेदार लगे हैं। अवधी-भोजपुरी शैली में हिंदी
बोलते हुए भी वे एक अलग तरह का पर देसी हास्य भी पैदा करते हैं। जो लोग दो बड़े
सितारों - अमिताभ बच्चन और आमिर खान के प्रशंसक हैं उनके लिए भी ये फिल्म एक अवसर
है इन दोनों को एक साथ देखें। हालांकि ये अमिताभ की यादगार फिल्म नहीं कही जाएगी।
कैटरीना कैफ ने सुरैया नाम की जिस नर्तकी की भूमिका निभाई है वो दिलकश तो है लेकिन
फिल्म की कहानी में बड़ी भूमिका अदा नहीं करती। `ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ के रिलीज होने के बाद
इसके निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य को इतना तो महसूस होना चाहिए कि बड़े सितारों का
जमघट सफलता की गारंटी नहीं है। ढंग की कहानी भी होनी चाहिए।
*लेखक जाने माने कला
व फिल्म समीक्षक हैं। दिल्ली में निवास।
संपर्क - 9873196343
दो दिग्गज मिलकर ऐसी उलजुलूल बकवास फ़िल्म बनाकर दर्शकों को पब्लिसिटी के दम पर कैसे ठग सकते हैं, यह देखना हो तो इससे बढ़िया कोई फ़िल्म हो ही नहीं सकती ।
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