जब ‘हंस’ में यह कहानी
छपी थी तब साहित्य में भी
कम हल्ला नहीं मचा था...
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सन्नी देओल परंपरावादी पंडा की भूमिका में |
फिल्म समीक्षा
मोहल्ला अस्सी
निर्देशक -
चंद्र प्रकाश द्विवेदी
सितारे - सनी
देओल, साक्षी तंवर, रवि किशन, सौरभ शुक्ला, अखिलेंद्र मिश्रा, राजेंद्र गुप्ता
*रवींद्र
त्रिपाठी
वैसे तो `मोहल्ला
अस्सी’ हिंदी के कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना `काशी
का अस्सी’ से प्रेरित है लेकिन उस पर आधारित नहीं है। मध्यांतर से पहले यह
फिल्म `काशी का अस्सी’ की भाषा, लहजा
और उसके कुछ चरित्रों के करीब है लेकिन मध्यांतर के बाद अलग और स्वायत्त हो जाती
है। चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने इस फिल्म मे परंपरा और आधुनिकता की उस टकराहट को
दिखाया है जो हमें राजनीति में भी दिखता है और बाजार केंद्रित अर्थव्यवस्था भी। ये
दोनों टकराहट बनारस को किस तरह बदल रहे हैं उसे ये बयान करती है।
फिल्म की कहानी
और पृष्ठभूमि
राजनीति में जिस
तरह धर्म निरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच टकराहट 1987-88 से ही शुरू हो गई थी,
यह वो दौर था जब राम जन्मभूमि आंदोलन उग्र रूप से चल रहा था। इस पहलू को इस फिल्म
में विस्तार से दिखाया गया है। यहां ऐसे भी लोग थे जो इसमें शरीक थे और ऐसे भी थे
जो इसका विरोध कर रहे थे। लेकिन वे एक ही चाय की दुकान में बैठ के गपियाते हैं। एक
और चीज इस नगरी को संकट में डाल रही है। वह है बाजार। बनारस को पंडों का शहर कहा
जाता है। लेकिन बाजार किस तरह पंडों की माली हालत और सामाजिक हैसियत को धक्का दे
रहा है वो भी इस फिल्म में है। और विदेशी, खासकर पश्चिमी औरतें यहां आकर कैसे
पंडों और सामान्य लोगों के आचार विचार पर असर डाल रही थी ये सब भी यहां है।
सनी देओल मे
इसमें धर्मनाथ पांडे नाम के एक पंडित की भूमिका निभाई है जो संस्कृत का अध्यापक भी
है और घाट पर पंडागिरी भी करता है। साक्षी तंवर उनकी पत्नी बनी हैं। धर्मनाथ पांडे
तो एक शुद्ध कर्ममांडी ब्राह्मण है। परम वैष्णव। मांस-मच्छी से दूर। वो विदेशियों
को संस्कृत सिखाने का भी विरोधी है क्योंकि उसके लिए संस्कृत भारतीय संस्कृति की
भाषा है। लेकिन पांडे के घर गरीबी है। बच्चे पड़ोंसी के यहां जाकर टीवी देखते हैं।
हालात यह हो जाती है कि वो घर में बिराजे महादेव को छत पर ले जाने को सोचता है
ताकि जहां महादेव का मंदिर है वहां एक कमरा बनाकर एक फ्रांसीसी औरत को बजाए
किराएदर ऱख सके और कुछ पैसे कमा सके। क्या वो ऐसा कर पाएगा?
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सन्नी के साथ साक्षी तंवर |
निर्देशन, अभिनय
और भाषा
`मोहल्ला
अस्सी’ में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जिसे कुछ लोग गाली कहेंगे लेकिन
आम बनारसी शब्दावली में उनको सहज माना जाएगा। फिल्म में रवि किशन ने एक दलाल नुमा
शख्स की शानदार भूमिका निभाई है। सौरभ शुक्ला भी काम वजनदार है। फिल्म में मुकेश
तिवारी, विजय कुमार, संजीव मेहता जैसे रंगकर्मी भी हैं जो नाटकों के साथ-साथ
फिल्मों में सक्रिय रहे। फिल्म संस्कृत भाषा के सामने आए संकट को भी सामने लाती
है।
*लेखक जाने माने कला और फिल्म समीक्षक हैं। दिल्ली में निवास।
संपर्क-9873196343
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