फिल्म समीक्षा
मॉर्टल इंजिन्स (हिंदी में)
निर्देशक - क्रिश्चियन रिवर्स
कलाकार - रॉबर्ट शीहान, हेरा हिमलर, ह्यूगो
विविंग आदि।
*रवींद्र त्रिपाठी
हॉलीवुड की यह फिल्म हिंदी में भी डब होकर रिलीज
हुई है। यह एक भविष्योन्मुखी दुस्वप्न गाथा है। इस दुस्वप्न में शहर बड़े इंजनों
में तब्दील हो जाते हैं। लंदन शहर भी एक ऐसे बड़े इंजन में बदल गया है जो अधुनातन
सैन्य संसाधनों से सजा है और दूसरे किसी बड़े शहर, यानी इंजनवाले शहर को ध्वस्त कर
सकता है या निगल सकता है। वैलेंटाइन (ह्यूगो विविंग) नाम का एक दुष्ट वैज्ञानिक
पूरी दुनिया पर कब्जा करना चाहता है पर एस्टर शॉ नाम की एक महिला व उसके इस मंसूबे
को कामयाब नहीं होने देना चाहती। वेंलेंटाइन ने उसकी पुरातत्ववेत्ता मां को मारा
था। बदला लेने के मकसद से एस्टर भी वेंलेंटाइन को मारना चाहती है। धीरे धीरे उसके
साथ और भी लोग जुड़ते जाते हैं। क्या वो ऐसा करने में सफल हो सकेगी?
`मॉर्टल
इंजिन्स’ इसी
नाम की एक किताब पर आधारित है। इस फिल्म में एक चकाचौंध तो है। खासकर मशीनों से
भरा चकाचौंध। लेकिन इसकी एक कमजोरी यह है कि इसमें चरित्र इतने ज्यादा हैं
कि दर्शक का उन चरित्रों से जुड़ाव
नहीं हो
पाता। हालांकि फिल्म भविष्योन्मुखी है
लेकिन इसमें समकालीन समय के प्रश्न हैं- यानी अपने लाभ के लिए वैज्ञानिक शोध,
वामपंथ- बनाम दक्षिणपंथ की लड़ाई। इसमें एक मशीनी मानवाकृति या रोबोट भी है जो खुद
प्रतिशोध की भावना से भरा है। लेकिन अगर उसमें भावना है तो क्या उसमें प्यार या
स्नेह भी पैदा होगा? फिल्म
में हंसी मजाक के कुछ दृश्य भी हैं। जैसे जगह एस्टर शॉ और उसके मित्र को काई से
बनी चाय पिलाई जाती है। सोच के ही हंसी आती है न- कि काई से बनी चाय हो ससकती। पर
ऐसे दृश्य कम हैं। फिल्म की गति बहुत तेज है। हवाई युद्ध के दृश्य रोमांचक कम और
चमत्कारिक अधिक है। वेलेंटाइन के रूप में ह्यूगो विविंग खलनायक कम और बूढ़ा खूसट
बाप अधिक लगे हैं।
*लेखक जाने माने कला और
फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क -9873196343
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