फिल्म समीक्षा
केदारनाथ
निर्देशक - अभिषेक कपूर
कलाकार - सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान आदि।
*रवींद्र
त्रिपाठी
इस फिल्म को लेकर फिल्म प्रेमियों की दो प्रमुख
उत्सुकताएं रहीं। एक तो यह
कि सैफ अली खान और उनकी पूर्व पत्नी अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान कैसी लगती है
या कैसी अभिनेत्री हैं? इसके बारे में बता दिया जाए कि पहली फिल्म के
आधार पर कहा जा सकता है कि उनमें यानी सारा में एक उम्दा अभिनेत्री बनने की
संभावना है। इस फिल्म में वे उमंगों से भरी एक ऐसी युवती के रूप में सामने आती हैं
जिसमें जिंदगी को जीने की भरपूर चाहत है। उसमें शैतानियत भी
है और शरारत भी। वो आसमान पीना चाहती है। पीती भी है। बारिश की बूंदों के रूप में।
दूसरी उत्सुकता फिल्म से संबंधित उपजे विवाद को
लेकर है। पता नहीं ये कितना प्रायोजित था, पर प्रचारित हुआ कि
इसमें `लव जिहाद’
जैसा मामला है। इसके बारे में भी कह दिया
जाए कि ऐसा कुछ नहीं है। हां, एक हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के के बीच प्रेम की
कहानी इसमें जरूर है लेकिन आखिर में ये आत्म बलिदान की कहानी हो जाती है। प्रेम के
लिए नहीं बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए।
फिल्म की कहानी
अब इन दो बातों को छोड़ दें तो ये सवाल अहम हो जाता
है कि बतौर फिल्म ‘केदारनाथ’
कैसी है? कहना पड़ेगा कि ये मध्यांतर तक बेहद धीमी गति से
चलती है। निर्देशक ने हिंदुओं के पावन
तीर्थ
केदारनाथ के आसपास के जीवन को दिखाने पर अधिक ध्यान दे दिया है और मूल बात देर से
शुरू होती है। यानी भूमिका बड़ी हो गई है और कहानी छोटी। एक मुस्लिम लड़का है
मंसूर (सुशांत सिंह राजपूत)। वो पीठू का काम करता है। पीठू यानी वे लोग जो अपनी
पीठ पर लादकर बूढ़े या उम्रदराज यात्रियों को केदारनाथ के दर्शन कराने ले जाते हैं।
पीठू ज्यादातर मुस्लिम होते हैं। फिल्म में यह दिखाया गया है कि मुस्लिम होते हुए
भी मंसूर नाम का ये पीठू भोलनाथ के लिए परम श्रद्धा रखता है। एक दिन मंसूर की
मुलाकात होती है मुक्कु (सारा अली खान) से। मुक्कु क्रिकेट की शौकीन है और भारत को
हारता हुआ नहीं देख सकती। घर वाले मौका न दें तो बाजार में जाकर टीवी पर क्रिकेट
मैच देखती है। मंसूर भी क्रिकेट का दीवाना है। दोनों में प्रेम होता है। अब ये तो
समाज को स्वीकार होगा नहीं सो धार्मिक झगड़े की आशंका होती है। और तभी आती है
उत्तराखंड में बाढ़। 2013 वाली। लोग जल प्लावन में बह जाते हैं और मकान धराशायी हो
जाते है। ऐसे में क्या होगा मंसूर और मुक्कु का?
अभिनय और निर्देशन
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बेहद अच्छी है। हिमालय
की स्वच्छता और शुभ्रता का अहसास कराती है। एक गाना भी अच्छा है –`नमो
शंकरा’ बोल वाला । सुशांति सिंह
राजपूत ने ऐसे शख्स का किरदार निभाया है जो आम पहाड़ी की तरह सीधा सादा और
आस्थावान है। फिल्म में यह मुद्दा भी आता है कि हिमालय में बसे तीर्थों पर कितना
निर्माणकार्य हो,कितने होटल बने कि पर्यावरण का संतुलन न बिगड़े। पर ये मामला पूरी
तरह उभर पाता।
*लेखक जाने माने कला और
फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क -9873196343
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