फिल्म समीक्षा
साल्ट ब्रिज
निर्देशक - अभिजित देवनाथ
*रवींद्र त्रिपाठी
यह एक गैरबॉलीवुडीय फिल्म है। यानी इसमें न बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों
जैसी मसालाबाजी हैं औऱ उनके जैसी ड्रामेबाजी। लेकिन ड्रामा है अलग तरह की। जो दूसरी
खासियत इस फिल्म की है वो यह कि इसमें एक अंतरसांस्कृतिकता है। दो संस्कृतियों का
संवाद। दूसरे शब्दों में कहें तो इसमें भारतीय तत्व भी हैं और ऑस्ट्रेलियाई भी। इस
फिल्म का नाम भी ऑस्ट्रेलिया के एक कस्बे के ऊपर आधारित है। साल्ट ब्रिज एक
ऑस्ट्रेलियाई कस्बा है। फिल्म की एक प्रमुख चरित्र भी एक गोरी औरत है।
फिल्म की कहानी
राजीव खंडेलवाल ने इसमें बसंत नाम के एक ऐसे नौजवान की भूमिका निभाई
है जो रोजगार की तलाश में अपनी पत्नी लिपि (उषा जाधव) के साथ ऑस्ट्रेलिया जाता है
और वहां साल्टब्रिज कस्बे में रहता है। वहीं एक दिन उसकी मुलाकात मधुरिमा (चेल्सी
प्रेस्टन क्रेफॉर्ड) से होती है। मधुरिमा ऑस्ट्रेलियाई पर उसकी शादी एक भारतीय से
हुई है। मधुरिमा में चुलबुलापन है और बसंत और उसके बीच एक अनाम रिश्ता पनपने लगता है। मिलना जुलना
बढ़ता है। लेकिन यह बात न तो आसपास के लोगों को पसंद है और न मधुरिमा के
रिश्तेदारों को। इसी कारण एक दिन मधुरिमा का एक रिश्तेदार बसंत की पिटाई भी कर
देता है। हालात ऐसे बनते हैं कि मधुरिमा भी उससे नाता तोड़ लेती है और बोलना बंद
कर देती है। इस सबसे आहत बसंत साल्ट ब्रिज छोड़कर ऑस्ट्रेलिया के दूसरे शहर सिडनी
चला जाता है और अपने परिवार के साथ जिंदगी बसर करने लगता है। बरसों बाद जब मधुरिमा
बसंत का ब्लॉग पढ़ती है तो उसे मालूम होता है कि वो उसे क्यों इतना चाहता था?
आखिर क्या था बसंत और मधुरिमा के रिश्ते में जो पड़ोसियों और मधुरिमा
के रिश्तेदारों को खटकता रहा? क्यों उन दोनों के रिश्तों को
गलत समझा गया? क्या पुरुष और स्त्री के बीच रिश्ते इश्किया ही होते हैं और उनके बीच
और भी कुछ हो सकता है? आखिर समाज पुरुष और स्त्री के बीच संबंधों को एक ही ढांचे में समझने
की हड़बड़ी क्यों करता है?`साल्ट ब्रिज’ इन्ही सवालों के इर्द गिर्द घूमती है और रिश्तों
के विभिन्न पहलुओं को समझाती है। क्या बसंत और मधुरिमा फिर मिलेंगे और बसंत क्या
साल्ट ब्रिज कस्बे में फिर लौटेगा?
अभिनय और संवाद
फिल्म में भरपूर हास्य है। हिंदी के अलावा अंग्रेजी और बांग्ला भाषा
का भी इसमें इस्तेमाल हुआ है। इस कारण भी हास्य की मात्रा बढ़ गई है। फिल्म में
राजीव खंडेलवाल और चेल्सी प्रेस्टन के बीच होनेवाली बातचीत भी हंसी से भरपूर है।
उषा जाधव की भूमिका कठिन थी। एक ऐसी औऱत की जिसके पति के आचरण पर सवाल उठ रहे हैं
फिर भी वो शांत बनी रहती है। फिल्म का संगीत बहुत अच्छा है और बंगाली प्रभाव लिए
हुए है।`कांपने लगे तुम’ और `ले जाए दूर तुझसे’ जैसे गाने भी ठीक ठाक है।
हालांकि हिट नहीं होंगे। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी बेहतरीन है।
निर्देशक अभिजित देवनाथ ने एक संवेदनशील फिल्म बनाई है। हालांकि बॉलीवुडीय मसाले
का प्रेमी हिंदी दर्शक इसे कितना पसंद करेगा ये कहना कठिन है। फिर भी निर्दशक ने
एक चुनौती तो स्वीकारी है और अपना निजी फिल्मी मुहावरा गढ़ने की कोशिश की है।
*लेखक जाने
माने कला और फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क – 9873196343
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