फिल्म
समीक्षा
फ्रॉड
सैयां
निर्देशक
- सौरभ श्रीवास्तव
कलाकार
– अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला, सारा लॉरेन, एली एवराम
रवींद्र
त्रिपाठी*
`फ्रॉड
सैयां’ एक फूहड़ कॉमेडी है। औरतों
का मजाक उड़ानेवाली। ऐसे वक्त में जब फिल्मी दुनिया में `मीटू
अभियान’ जोरों पर है इस तरह
की फिल्म का आना सारे अभियान की हवा निकालने वाला है। अरशद वारसी ने इसमें भोला त्रिपाठी
नाम के एक ऐसे शख्स का किरदार निभाया है जो लगातार एक के बाद एक कई शादियां करता
जाता है और हर शादी के बाद पत्नी के पैसे और गहने लेकर चंपत हो जाता है। वो एक
बेदर्द पति है। शादी के बाद शहर बदलता है और साथ ही बीवियां भी। इसमें कई दृश्य
ऐसे हैं जिसमें द्विअर्थी संवाद हैं। इंटीमेट सीन भी है लेकिन भद्दे। फिल्म इस धारणा
पर बनी है औरत को क्या चाहिए?
सिर्फ सिंदूर। यानी एक अदद पति। और इसके लिए वो आगापीछा नहीं सोचती। बस पटानेवाला
होना चाहिए। हालांकि ये भी दिखाया गया है कि एक दिन एक दबंग औऱत (सारा लॉरेन) भोला
पर भारी पड़ती है पर कुल मिलाकर ये फिल्म उस वक्त के सांचे में ढली है जब औरतों को
लेकर भद्दे मजाकों पर सवालिया निशान नहीं लगते थे।
अरशद
वारसी की भूमिका के बारे में क्या कहा जाए? इस बार वे उस तरह की कोई छाप
नहीं छोड़ पाए हैं जो उन्होने `जॉनी
एलएलबी’ और `इश्किया’
में छोड़ी थी। सौरभ शुक्ला इसमें पुराने जमाने के जमाने के जासूस बने हैं। हालांकि
वे जासूसी कम करते हैं और हवा से संबंधित काम अधिक। फिल्म की अभिनेत्रियां सिर्फ
मेकअप की महिलाएं लगती हैं।
इस
फिल्म के निर्माता प्रकाश झा और उनकी बेटी दिशा झा हैं। इसलिए भी आश्चर्य होता है।
एक अखबार में इस फिल्म के निर्देशक का बयान आया है कि उनका नाम इस फिल्म से जोड़ा
न जाए। शायद उनको शर्मिंदगी है कि इस तरह की फिल्म उन्होंने निर्देशित की है। उनका
ये कहना भी है कि इसके निर्माण के दौरान प्रकाश झा का पूरा नियंत्रण था और जिस तरह
वे यानी सौरभ श्रीवास्तव इसे जैसा बनाना चाहते थे उस तरह की फिल्म ये नहीं है।
बाकी का फैसला दर्शक को करना है।
*लेखक जाने
माने कला और फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क – 9873196343
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