फिल्म समीक्षा
गली बॉय
निर्देशक - जोया अख्तर
कलाकार - रनबीर सिंह, आलिया भट्ट, कल्कि कोचलिन, विजय राज, सिद्धांत
चतुर्वेदी
*रवींद्र त्रिपाठी
एक नौजवान लड़का है-मुराद (रनबीर सिंह)। मुंबई के धारावी झोपड़पट्टी
में रहता है। कॉलेज में पढ़ता है। पिता ड्राइवर है और एक छोटे से घर में रहते हुए
भी दूसरी शादी कर लेता है। मुराद कभी कभी नज्म या गीत जैसा कुछ लिख लेता है और कभी
कभार अपने गली के दोस्तों के साथ मिलकर गाड़ियां भी चोरी कर लेता है। उसकी एक प्रेमिका
भी है जिसका नाम है सफीना, (आलिया भट्ट)) जो मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही है। पिता के
बीमार पड़ने पर मुराद अपने बॉस की गाड़ी भी चलाता है। लेकिन मन के भीतर हसरते हैं
जो कुलाचें मारती रहती है। फिर वो रैप म्जूजिक वालों से जुड़ता है तो हसरतें उछलने
लगती हैं। एक रैपर (सिद्धांत चतुर्वेदी) उसकी मदद करना चाहता है। लेकिन पिता कहता
है- बेटा ज्यादा मत उछल, अपनी हैसियत भी देख ले, ये रैप-फैप का चोंचला मत पाल।
उसके कहने का लब्बोलुबाब एक संवाद में सुनाई पड़ता है- `नौकर का बेटा नौकर
बनेगा।‘ लेकिन लड़का निकल पड़ता
है अपनी राह पर।
`गली बॉय’ झुग्गी झोपडियों में रहनेवाले लोगों की साधारण जिंदगी के बारे में है।
और वहां पनपनेवालों ख्वाबों के बारे में। पर ज्यादातर के ख्वाब पनपते भर हैं और
फिर दैनिक जीवन की हकीकतों के आगे दम थोड़ देते हैं। लेकिन कुछ अपवाद भी होते हैं।
वो जिनके भीतर पैशन होता है। नायजी उर्फ नावेद शेख और डिवाइन उर्फ विवियन
फर्नांडीस ऐसे ही दो रैपर थे जिनकी जिंदगी से प्रेरित `गली बॉय’ बनी है। गली बॉय
मुराद का रैपर वाला नाम है क्योंकि इस दुनिया में वास्तविक नाम नहीं चलता।
एक जगह कल्कि कोचलिन रनबीर सिह के पूछती है- हिंदी में `पैशन’ को क्या कहते हैं।
रनबीर का जवाब है- `जूनून’। तो मुराद वो जूनूनी लड़का गली बॉय बन जाता है और अपने जूनून को पूरा करने
के लिए अपने एक दोस्त के साथ फिर से एक गाड़ी की चोरी करता है। क्योंकि पैसा कहां
से आए। पर ये सिर्फ फिल्म का एक वाकया या भर नहीं है। ये एक जमीनी सचाई भी है कि
झुग्गी झोपडियों में रहनेवाले के लिए छोटे मोटे अपराध भी व्यवसाय की तरह हैं।
उन्हीं छोटे मोटे अपराधों और छोटे मोटे कामों के बल पर वे अपने मन के भीतर एक गीत
गुनाते हैं – `अपना टाइम आएगा’। कुछ का टाइम आ भी जाता है। वैसे इसी मुखड़े वाला ये गीत पिछले कुछ
दिनों में म्य़ूजिक वीडियों से लेकर सोशल साइट्म पर लोकप्रिय हो चुका है। वैसे गली
बॉय में और भी गीत है जो युवा लोगों के लबों पर चढ़ गए हैं। जैसे आजादी वाला।
`गली बॉय’ फिल्म का पूरा ताना
बाना एक युवा केंद्रित फिल्म का है। पर ये युवा मध्य वर्ग का नहीं बल्कि उनका है जो समाज में
हाशिए पर हैं। फिल्म में एक दृश्य है जिसमे मुराद के घर पश्चिमी पर्यटकों का एक
समूह आता है और उसके टॉयलेट का फोटो लेना चाहता है। मुराद की दादी कहती है- `इसके पांच सौ लगेंगे’। ये है गरीबी का
पर्यटन। ऐसे गरीबों और साधनहीनों के मकानों और टॉयलेटों के फोटो लेकर पश्चिमी समाज का समृद्ध वर्ग
इंस्टाग्राम पर लगाता है और दुनिया को बताता है- ये है भारत और उसकी गरीबी। पर ऐसे
इलाकों में रहनेवाले भी फिर भी मन में
सपने पाले रहते हैं। फिल्म इसी को दिखाती
है।
कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी बैंजों जिसमें रितेश देशमुख और नर्गिस
फाकरी थीं। वो भी मुब्ई के झोपड़पट्टियों की जिंदगी और ख्वाब पर आधारित है। `गली बॉय’ भी उसी से मिलती जुलती है। फर्क एक ही है रनबीर सिंह रितेश की तुलना
में एक बड़े स्टार हो गए हैं। एक साल के भीतर उन्होंने तीन बड़ी फिल्म दे डाली है।
`पदमावत’, `सिंबा’ और `गली बॉय’। पर ‘गली बाय’ में उनका बिल्कुल झोपड़पट्टी का चेहरा दिखा है। और आलिया भट्ट तो इस
फिल्म में एक तीखी मिर्ची की तरह लगीं है। एक सीन में सफीना अमरेकी लड़की की
भूमिका कर रही कल्कि कोचलिन के सिर पर कोल्ड ड्रिंक की बोतल दे मारती है- इसलिए कि
उसे शक है उसके बॉयफ्रेंड और अमेरिका से आई इस लड़की (जो भूमिका कल्कि ने इस फिल्म
में निभाई है) के बीच कुछ लफड़ा चल रहा है।
*लेखक जाने
माने कला और फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क – 9873196343
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