फिल्म समीक्षा
एंड काउंटर
निर्देशक - आलोक श्रीवास्तव
कलाकार - प्रशांत नारायण, अभिमन्यु सिंह, मृणम्यी कोलवालकर, अनुपम
श्याम, व्रजेश हिरजी आदि।
*रवींद्र त्रिपाठी
नासिक की एक सच्ची घटना पर आधारित बताई जा
रही यह फिल्म शुरू में कुछ रोचक लगती है पर धीऱे धीरे आखिर की तरफ बढ़ते हुए
बिखरने लगती है। इसका विषय है इनकाउंटर। कुछ मर्तबा पुलिस ऐसे लोगों की हत्या कर
देती है जो किसी विरोधी गुट के साथ झगड़े में फंसे होते हैं। एक तरह से ये पुलिस
वालों का धंधा बन जाता है। इनकाउंटर का धंधा। एंड काइंटर में भी प्रशांत नारायण ने
एक ऐसे पुलिस अफसर की भूमिका निभाई है जो एक प्लाट के लिए एक ऐसे बिजनेस मैन की
हत्या करता है जो जमीन और प्लाट का कारोबार करता है। इस हत्या के बाद गुत्थियां और
उलझती जाती हैं और उसमें एक बाबा (अनुपम श्याम) भी अपने गोरखधंधे के साथ आ धमकता
है और कई खूनी खेल शुरू हो जाते हैं। समीर की
पत्नी की एक अलग कहानी है जो साथ साथ चलती है। वो लेखिका है और पुराने
प्रेमी के साथ भी उसका रिश्ता है।
फिल्म अगर पूरी तरह एक अपराध कथा होती तो शायद ठीक ठाक सी हो जाती है।
लेकिन निर्देशक ने इसमें कॉमेडी का तड़का भी लगा दिय़ा है। व्रजेश हिरजी को जिस तरह
हत्या करते दिखाया गया वो एक कॉमेडी सीन की तरह है और फिल्म के थ्रिलर वाले पहलू
को कमजोर कर देता है। और कॉमेडी भी पूरी तरह नहीं हो पाती। वैसे हिरजी ने अपनी
कॉमेडी वाली भूमिका ठीक से निभाई है लेकिन वो फिल्म की पूरी कहानी के साथ फिट नहीं
होती है। दूसरे बाबा बने अनुपम श्याम के चरित्र में गहराई नहीं आ पाई है। और उनकी
चेलिन तो मजाकिया चरित्र बन के रह गई है। प्रशांत नारायण और मृण्मयी के बीच नाच और
गाने का दृश्य भी जमता नही है। `एंड काउंटर’ का खुद ही इनकाउंटर हो गया है।
*लेखक जाने माने कला और फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क – 9873196343
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