‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद
कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता;
भाग–73
हम लोग ‘गाइड’ देखकर बंबई के सिनेमा घर
‘मराठा मंदिर’ से निकले तो लगा बाहर बारिश
होगी और हम छतरी नहीं लाए! यह था प्रभाव ‘गाइड’ के अंतिम सीन का।
रोज़ी (वहीदा रहमान) के
दस्तावेज़ पर जाली दस्तख़त करने के ज़ुर्म में दो साल की जेल काट कर गाइड राजू
(देव आनंद) जेल से छूटा है। बाहर निकला तो दुनिया में उसके लिए अब कुछ नहीँ है।
कहां जाए कुछ नहीं जानता। तिराहे पर एक सड़क घर की ओर जाती है। उसे याद आती है मां
(लीला चिटणीस), मां के हाथों की रोटियां, हर सुबह एक रोटी खाता और एक टैक्सी वाले
गफ़ूर (रहमान) के लिए लेकर निकल पड़ता! उसकी यादों में ही हम देखते हैं उसकी फर्राटेदार बोली और
लच्छेदार ब्योरे से देसी परदेसी मुसाफ़िरों का मुग्ध हो जाना। पर वह घर की राह
जाता नहीं।
अपने से और दुनिया से
भागता राजू अनजान डगर पर निकल पड़ता है... कभी रेल से, कभी बस से, कभी पैदल...
जूते घिसते गए, फटते गए, पीछे छोड़ दिए गए, कांटों से छलनी नंगे पैर, इधर उधर
भटकता, थका हारा। पार्श्व में एस.डी. बर्मन की आवाज़ में गीत गूंज रहा है ‘वहां कौन है तेरा
मुसाफ़िर जाएगा कहां।’ यहां उसका कोई नहीँ है तो वहां भी कोई नहीँ है। बस, दिशाहीन चला जा रहा
है।
बेदम अचेत राजू किसी
अनजान गांव के पास मंदिर के थड़े पर पड़ा है। गुज़रते साधुओं में से किसी ने अचेत
सोते राजू को जोगिया चादर उढ़ा दी थी। पास ही कुछ सिक्के और फल पड़े हैं। गांव
वाले उसे पहुंचा संत समझ बैठते हैं। बेसहारा राजू वहीँ ठहर जाता है। लोग जो कुछ दे
जाते हैं, वही उसके जीवन का आसरा है।
गांव के चौधरी भोला
(गजानन जागीरदार) की निगाह में वह पहुंचा हुआ संत है। उसकी बेटी शादी के नाम से
चिढ़ती थी, राजू के समझाने पर मान जाती है। अब तो उसकी धाक जम गई! लोग आशीर्वाद मांगते
हैँ। कुछ की मन्नतें पूरी भी हो जाती हैं। दूर दूर से लोग आते हैं उसके दर्शन
करने।
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"उठ अपनी चाहत पूरी कर" |
कई साल से सूखा पड़ा है।
बारिश बरसे तो गांव सरसे। भक्तों को विश्वास है, भरोसा है, स्वामी जी बारह दिन का अनशन
करें तो इंद्र देवता प्रसन्न होंगे। दिन रात राजू के चारों तरफ़ भजन कीर्तन हो रहे
हैं। बच निकलने की कोशिश करता है, पर गांव वालों का भरोसा तोड़ नहीं पाता। भूख अब
तपस्या बन गई है। आत्मयंत्रणा के एक पल में उसे मानों ज्ञान मिलता
है –“ना सुख है, ना दुख है, ना
दीन है, ना दुनिया, ना इनसान, ना भगवान... सिर्फ़ मैं हूं, मैं हूं, मैं हूं...
मैं... सिर्फ़ मैं!”
डिलूज़न कहो
या मायादर्शन, उसकी मनोकल्पना हो या गांववालों का ठोस यथार्थ, बारिश हो रही है।
हुए जा रही है। वह मर रहा है। गांव वाले उसके तपोबल का उत्सव मना रहे हैं। बारिश
हो रही है। हुए जा रही है। बारिश दर्शकों को भी सराबोर कर रही है। वह मर रहा है। यही
था ‘गाइड’ का अंत। दर्शकों के साथ
हम भी बाहर निकल रहे थे। लगा कि बाहर बारिश हो रही होगी।
राजू को सज़ा दिलाने से
पछताती रोज़ी (वहीदा रहमान) मां (लीला चिटणीस) को सुना रही है अपनी राम कहानी। नृत्यांगना
रोज़ी को धंधे से निकालने के लिए मां नर्तकी वेश्या ने शादी का विज्ञापन दिया। रोज़ी
मार्को (किशोर साहू) को पसंद आ गई। बता रही है कैसे वह पति मार्को के साथ रेलगाड़ी
से उतरी, गाइड राजू से मुलाक़ात हुई। पुरातत्ववेत्ता मार्को को एक ही धुन है –
प्राचीन गुफाओं की खोज, उनकी व्याख्या और किताबें, पुरानी किताबें। पत्नी उसके लिए
बस एक उपांग है घर की देखभाल का। गफ़ूर की टैक्सी में सवार मार्को दूर पहाड़ियों
में भटकने चला जाता है। राजू को आदेश है शहर घुमाने का।
राजू को पता चलता है कि
मार्को की वज़ह से रोज़ी
को नाच गान का शौक़ त्यागना पड़ा था। हताशा के एक क्षण में रोज़ी ने ज़हर की
गोलियां खा लीं। गुफाओं से दौड़ा दौड़ा मार्को आया। रोज़ी को ज़िंदा देख कर उसका
पारा चढ़ गया। बोला, “ज़हर तो बस नाटक था,
सच होता तो इतनी गोलियां खातीं कि बच ही न पाती!” मार्को एक बार फिर
अपनी गुफाओं में चला गया। रोज़ी ने देखा वहां वह एक देहाती जनजातीय लड़की के साथ मौज मना रहा
है। ज़बर्दस्त कहासुनी हुई। पैर पटकती रोज़ी होटल लौट आई। वह जीना नहीं चाहती।
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वहीदा रहमान-आज फिर जीने की तमन्ना है... |
राजू ने उसे समझाया बुझाया। रोज़ी ने
मार्को से संबंध तोड़ दिया। राजू ने उसे आसरा दिया तो नई समस्याएं उठ खड़ी हुईं।
राजू की मां और रोज़ी का भाई दोनों उनके अनाम रिश्ते के ख़िलाफ़ हैं। राजू नहीं माना
तो मां चली गई, दोस्त टैक्सीवाला गफ़ूर भी उसे छोड़ गया। रोज़गार तो गया ही, पूरा
शहर राजू के ख़िलाफ़ एकजुट हो गया। राजू ने एक बार फिर रोज़ी को नृत्य का
प्रोत्साहन दिया। रोज़ी बड़ी स्टार बन गई। राजू अकेला पड़ने लगा, जूआ खेलने लगा,
पियक्कड़ बन गया। रोज़ी की सफलता सुन कर मार्को लौट आया। राजू को यह पसंद नहीँ है।
मार्को चाहता है रोज़ी सेफ़ डिपॉजिट से कुछ ज़ेवर निकलवा ले। मार्को से चिढ़ा राजू
ज़ेवर निकलवाने वाले दस्तावेज़ पर जाली दस्तख़त कर देता है। रोज़ी और राजू एक दूसरे
से दूर होते जा रहे हैँ। आगे का पूरा घटनाचक्र बयान करना मेरा उद्देश्य नहीँ है।
फ़िल्म जैसा कि मैंने शुरू में लिखा
शुरू होती राजू के जेल से रिहा होने पर।
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'माधुरी' में छपी 'गाइड' की समीक्षा |
‘गाइड’ हिंदी फ़िल्म इतिहास
में ‘मुग़ले आज़म’, ‘प्यासा’ और ‘संगम’ जैसी सदाबहार मानी जाती
है। यह देव आनंद का वैसा ही सपना थी, जैसा राज कपूर का सपना थी ‘मेरा नाम जोकर’। इसके इंग्लिश संस्करण
के साथ हिंदी संस्करण भी न बनाया गया होता तो देव का भी वही हाल होता जो राज कपूर
का हुआ था–‘बॉबी’ के आने तक।
‘गाइड’ पर फ़िल्म बनाने की
परिकल्पना उपजी थी धरती के उस ओर हॉलीवुड में। आर. के. नारायण का उपन्यास
ग्राहम ग्रीन और जॉन अपडाइक की किताबों जितना ही बेस्टसेलर था। वहीं यह देव का
सपना बनी थी। कई फ़ोन कॉलों के बाद कहीँ जाकर आर.के. नारायण राज़ी हुए। देव
के लिए यह विश्व सिनेमा में प्रवेश का माध्यम बन सकती थी। वह कोई क़सर नहीं छोड़ना
चाहता था। विश्वप्रसिद्ध उपन्यास ‘गुड अर्थ’ की लेखिका पर्ल ऐस. बक (Pearl S.
Buck) पर पटकथा लिखने का भार डाला गया। पर्ल ने ही वहीदा
रहमान को इंग्लिश लहज़े की ट्रेनिंग दी। ज्यां पाल सार्त्र के प्रयोगवादी नाटक ‘नो ऐग्ज़िट’ पर फ़िल्म बनाने से बहुचर्चित
निर्देशक टैड डैनियलेव्स्की (Ted Daniele ski) को निर्देशन
संभाला गया। इंग्लिश फ़िल्म पूरी तो बनी पर संतोषप्रद नहीं बन सकी। रिलीज़ भी नहीं
हो पाई। उस पर लगा सारा पैसा डूब गया।
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पचास साठ साल
पहले का ज़माना ‘गाइड’ का दीवाना था। आज की पीढ़ी उसे कैसे देखती है - यह दर्शाने
के लिए मैं ‘द क्विंट’ (The Quint) में 11 नवंबर 2017 को प्रकाशित
23 वर्षीय सुहासिनी की अनुपम समीक्षा से कुछ उद्धरण दे रहा हूं। उनकी की जीवंत
भाषा का हर अंश अनूदित नहीं किया जा सकता। जैसे:
“First off, let me
get this out of the way – Dev Anand is drop dead gorgeous!’
अब पढ़िए उस समीक्षा से कुछ उद्धरण हिंदी
में।
“ऐसा
नहीँ है कि यह मैंने पहली बार सुना हो। तमाम आंटियां कहती हैं, ‘आजकल
के लड़कों में वो बात कहां जो देव आनंद में थी!’... उनकी बातों पर मैंने
कभी ध्यान ही नहीँ दिया था।
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सबकी इच्छा पूरी करने वाले की तड़प ...! |
“हां, अब ‘गाइड’ देख कर समझ में आया देव आनंद का जादू। मैं मान गई आंटियां सही कहती थीं! राजू गाइड की भूमिका में देव ने जो कर दिखाया, उसके राई रत्ती बराबर नहीँ
उतरता हमारे ज़माने का कोई हीरो– हां, आज से बीसेक साल पहले उससे कुछ कुछ नज़दीक़
हो सकता था शाहरुख़।
“मेरे मन में जो defining factor है वह है तमाम ‘heroic’
presence में
नायिका को खिलने का मौक़ा (female
lead to blossom)।
“मार्को! क्या है – बेहद घटिया नीच (lousy) पति, ऊपर से misogynist (नारी द्वेषी)। मकड़जाल मे फंसी रोज़ी को राहत मिलती है राजू से। मार्को को
ऐय्याशी में लीन देख कर रोज़ी रोती है तो राजू उबल पड़ता है: “अगर मर्द सुख ना दे,
तो क्या औरत सुख नहीं पा सकती? मार्को तुम्हारे साथ ख़ुश नहीँ है मगर इस तरह दीवारों से सिर नहीँ पीट रहा! क्योंकि वो मर्द है!”
“वहीदा रहमान – बस absolute dream है! हिरनी सी आंखों वाली सुंदरी वहीदा जादू ही है। उससे आंख हटाने का मन ही
नहीँ करता। हर सीक्वैंस में, हर डायलॉग में गहराई, सच्ची संवेदना। हर नाच में सहज
प्रवाह।
I was floored!
“रोज़ी की उड़ान के पीछे है दबा इरादा। वह
मात्र वो नहीं है जिसे इंग्लिश में कहते हैं ‘डैमसल इन डिस्ट्रैस’। झुलसी, डरी सहमी रोज़ी
जुझारू भी है। राजू ने उसे दिखाया, वह क्या कर सकती है, क्या बन सकती है। ‘अगर ख़ुशी मिले तो इन
छोटे फूलों में मिल सकती है, और अगर ना मिले तो सारे जहां में ना मिले...’
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अरविंद कुमार |
“एस.डी. बर्मन के संगीत के
बारे में कुछ भी कहना पूरा न्याय नहीं कर पाएगा। साउंडट्रैक ने मुझे भावातिरेक से
भर दिया। ‘पिया तोसे नैना लागे रे’ ने मुझे झकझोर डाला। सुंदर गीत, और ऊपर से संगीत! ‘गाइड’ के अधिकांश गीत मैं सुनती आई थी। संपूर्ण
फ़िल्म के संदर्भ में उन्हें देखना–अनोखा अतियथार्थ (surreal) अनुभव था। ‘दिन ढल जाए पर रात न
जाए’ में नशे में
धुत् राजू रोज़ी से बढ़ती दूरी का राग अलाप रहा था तो मोहम्मद रफ़ी के दर्दीले
सुरों को मेरे दिल के दर्द ने और गहरा दिया। पूरे सीक्वैंस में एक शॉट–मदहोश
राजू के क्लोज़प से कैमरा मुड़ता है पास ही बैठी दुखियारी रोज़ी की तरफ़–राजू को
भान ही नहीं है रोज़ी की मौजूदगी का–उनके अकेलेपन की तस्वीर इस से बढ़ कर क्या
हो सकती थी? साथ साथ हैं फिर भी अकेले हैं! दृश्य के अंत में आते हैं ये बोल–‘चाहा क्या, क्या मिला बेवफ़ा तेरे प्यार
में’।
“ऐसा संगीत फिर
लौटना ही चाहिए!”
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके
किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा।
संपादक - पिक्चर प्लस)
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