फिल्म समीक्षा
लुका छुपी (रेटिंग- 3*)
निर्देशक - लक्ष्मण उतेकर
कलाकार- कार्तिक आर्यन, कीर्ति सैनन, अपारशक्ति खुराना, विनय पाठक,
पंकज त्रिपाठी
*रवींद्र त्रिपाठी
यह एक जबर्दस्त कॉमेडी है। हंसते हंसते कई जगहों पर पेट फूल सकता है।
लेकिन इसमें एक सामाजिक संदेश भी मौजूद है। वो संदेश है लिव-इन रिलेशनशिप को जायज
ठहराने का। लिव –इन रिलेशनशप यानी सहजीवन। दूसरे शब्दों में कहें तो बिना शादी के युवा
पुरुष और स्त्री के साथ रहने का। हालांकि आखिर में यह फिल्म लड़का और लड़की को शादी
के बंधन में बांध देती है लेकिन यह वकालत करने के बाद कि लिव-इन रिलेशनशिप कोई ऐसी
बुरी चीज नहीं है कि समाज का सांस्कृतिक ताना बाना छिन्न भिन्न कर दे।
यह फिल्म उत्तर प्रदेश में कुछ समय पहले चले एंटी-रोमियो अभियान की कोख से निकली है। उस समय उन नौजवान लड़कों-लड़कियों की शामत आ जाती थी जो किसी पार्क
या सुनसान जगह पर प्रेमालाप करते पाए जाते थे। यह उत्तर प्रदेश पुलिस का अभियान था
जिसे राजनैतिक संरक्षण भी मिला हुआ था। हालांकि. यह अभियान अब फिस्स हो गया है
लेकिन फिल्म बनाने का मसाला तो इसमें था।
फिल्म में मथुरा में रहनेवाला और एक छोटे से न्यूज पोर्टल में काम
करनेवाला गुड्डु शुक्ला (कार्तिक आर्यन) अपने शहर की लड़की रश्मि (कीर्ति सैनन) से
शादी करना चाहता है। लेकिन रश्मि कहती है शादी के पहले एक दूसरे को जान-समझ लेना
चाहिए और इसलिए कुछ दिनों के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहा जाए। लेकिन रश्मि का पिता
विष्णु त्रिवेदी (विनय पाठक) बड़ा घनघोर संस्कृति रंक्षक है और ऐसे लोगों के हाथ
पैर तुड़वा देता है जो लिव इन रिलेशनशिप की बात करते हैं। वो नेता भी है और चुनाव
लड़ना चाहता है। सो गुड्डु और रश्मि सोच विचार के इसका तोड़ निकालते हैं और वो कुछ
दिनों के लिए मथुरा छोड़कर ग्वालियर चले जाते हैं और वहां अपने दोस्त अब्बास
(अपारशक्ति खुराना) की मदद से एक किराए का फ्लैट लेकर लिव-इन रिलेशनशप में रहने
लगते हैं। पर उनकी मौजमस्ती ज्यादा दिन नहीं टिकती और एक रिश्तेदार बाबूलाल (पंकज
त्रिपाठी) के माध्यम से घरवालों तक उनकी यह जानकारी पहुंच जाती है। मगर दोनों के
घरवाले यह समझते हैं कि दोनों लिव-इन में नही रह रहे हैं बल्कि उनको बिना बताए
शादी कर चुके हैं। इसलिए ज्यादा हंगामा नहीं होता और उनकी शादी का रिसेप्शन हो
जाता है। इसके बाद तो और भी रायता फैलता है क्योंकि गुड्डु और रश्मि इस लिव-इन-रिलेशनिप को शादी में बदलना चाहते हैं। पर परिवार और समाज की निगाह में तो उनकी शादी हो चुकी है।
फिर क्या हो?
फिल्म में हास्य के दृश्य जमनेवाले हैं और हंसी के छोटे छोटे टुकड़े
इसमें इस तरह भरे गए हैं कि कोई लम्हा ऐसा नहीं है जो ढीला पड़ा हो। हंसी के कुछ
दृश्य तो बहुत ही मजेदार हैं। जैसे रिसेप्शन के बाद शादी के लिए रश्मि और गुड्डु
जो कई कोशिशें करते हैं उसमें एक में यह है कि अब्बास मोबाइल पर शादी के मंत्र
चलाता है ताकि रश्मि और गुड्डु फेरे लें और धर्मसम्मत पति-पत्नी हो जाएं। पर मंत्र
पूरा होने के पहले ही मोबाइल डिस्चार्ज हो जाता है। या फिर वो दृश्य जिसमें
सामूहिक शादी के मंडप में जब रश्मि घूंघट ओढ़ के बैठी है तो त्रिवेदी अपने साथी के
साथ पहुंचता है। साथी अब्बास से पूछता है कि दुल्हन कौन हैं तो अब्बास कहता है कि
वो गूंगी है और मेरी मुंहबोली बहन है। त्रिवेदी का साथी पूछता है- जब गूंगी है तो
मुंहबोली बहन कैसे हुईँ?
कीर्ति और कार्तिन अपनी भूमिकाओं में बेहद लुभावने लगे हैं। उनके
संवाद भी बेहद मजाकिया हैं। पर हास्य भूमिका में पंकज त्रिपाठी तो कई जगहों पर छा
गए है। फिल्म के दो गाने `कोका कोला’ और `पोस्टर लगवा दो’ काफी लोकप्रिय चुके हैं।
*लेखक जाने माने कला और फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क – 9873196343
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