सिनेमा के भीतर एक और सिनेमा बनाने की कला तो
बस ऋषिकेश मुखर्जी ही जानते थे
फिल्म समीक्षा
मिलन टॉकीज
(रेटिंग- 2 ½*)
निर्देशक-तिग्मांशु धूलिया
कलाकार-अली फैजल, श्रद्धा श्रीनाथ, आशुतोष राणा, संजय मिश्रा,
तिग्मांशु धूलिया आदि।
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लव स्टोरी में फिल्मी तड़का |
*रवींद्र त्रिपाठी
यह एक प्रेम कहानी है पर अलग तरह की। कह सकते हैं कि जब उत्तर प्रदेश
में रोमियो स्कॉड का डंका बज रहा था उस समय भी कई लोगों के मन में प्रेम की
हिलोरें उठ रही थीं। खासकर इलाहाबाद शहर
में जिसका नाम अब प्रयागराज हो गया है। जब शासन की निगाह और प्रेम की धारणा के
दुश्मन लाठियां लिए शहरों, पार्कों और गलियों में घूम रहे हों तब भी लड़के - लड़की
`हम बने तुम बने एक दूजे के लिए’ गाना गाने के लिए
बेकरार होते हैं- यही इस फिल्म का मूल संदेश है।
लेकिन इसमें एक और तरह का प्रेम है। यह कि छोटे शहरों में हिंदी फिल्मों से कितना लगाव है। लड़के हीरो या निर्देशक बनना चाहते हैं और लड़कियां हीरोइनें। यहां तक खलनायक बनने के लिए लोग गुंडे भी खतरों से खेलने को तैयार हो जाते हैं। और किस तरह छोटे शहरों में वहां सिंगल स्क्रीन हॉलों में फिल्में चाव से देखी जाती हैं, यह भी यहां है। इसके निर्देशक तिग्मांशु धुलिया ने कमल पांडे के साथ मिलकर इसकी कहानी भी लिखी है इसमें अभिनय भी किया है। हीरो के पिता की भूमिका निभाई है उन्होंने। तीनों ही भूमिकाओं में उनका जलवा दिखता है।
लेकिन इसमें एक और तरह का प्रेम है। यह कि छोटे शहरों में हिंदी फिल्मों से कितना लगाव है। लड़के हीरो या निर्देशक बनना चाहते हैं और लड़कियां हीरोइनें। यहां तक खलनायक बनने के लिए लोग गुंडे भी खतरों से खेलने को तैयार हो जाते हैं। और किस तरह छोटे शहरों में वहां सिंगल स्क्रीन हॉलों में फिल्में चाव से देखी जाती हैं, यह भी यहां है। इसके निर्देशक तिग्मांशु धुलिया ने कमल पांडे के साथ मिलकर इसकी कहानी भी लिखी है इसमें अभिनय भी किया है। हीरो के पिता की भूमिका निभाई है उन्होंने। तीनों ही भूमिकाओं में उनका जलवा दिखता है।
फिल्म में अली फजल ने अनु नाम के युवा की भूमिका निभाई है। अनु उस तरह
का नौजवान है जिसे इन शहरों में चलता पुर्जा कहते हैं। वो अनैतिक नहीं है पर
चालाकियां भी करता रहता है। अपने लोगों को परीक्षा में पास कराने के लिए छोटी-मोटी
जालसाजी करने में भी उसे संकोच नहीं। वो भी फिल्म प्रेमी है। अमिताभ बच्चन का फैन है खासकर `दीवार’ फिल्म का। और उसकी प्रेमिका
मैथिली (श्रद्धा श्रीनाथ) भी फुल सिनेमची है। वो भी
हीरोइन बनना चाहती है। दोनों का रोंमांस एक ऐसे शहर में क्या रंग लाता है जहां
लड़के लड़कियों के मिलने पर कई तरह की सख्तियां लगी रहती है ये इस फिल्म में
दिखाया गया है। फिल्म पूरी तरह से हंसी मजाक से भरी है और संवाद भी बड़े चुटीले
हैं। फिल्म के गाने भी लबों पर चढ़नेवाले हैं। विशेषकर होली गीत- `माइंड न करियो होली
है’ के बोल वाला। इसे फिल्माया भी बहुत अच्छे तरीके से गया है।
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अरसे बाद होली गीत और दृश्य...माइंड न करियो होली है... |
तिग्मांशु धुलिया की हाल की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही हैं।
क्या इस फिल्म से उनको उम्मीद करनी चाहिए। जिस तरह से मसालेबाजी उन्होंने की है
उससे ये आशा की जाना चाहिए। अली फजल भी अच्छे लगे हैं। हीरोइन श्रद्धा श्रीनाथ की
यह पहली फिल्म है। इस लिहाज से उनमें संभावनाएं नजर आती हैं। फिल्म उत्तर भारत के
छोटे शहरों की मानसिकता और सामाजिक बनावट को भी सामने लाती है।
*लेखक जाने माने कला और फिल्म समीक्षक हैं।
दिल्ली में निवास। संपर्क – 9873196343
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