‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद
कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता;
भाग–78
पिछली क़िस्त में मैंने पहले आपातकाल में ‘टैलेंट कॉन्टेस्ट’ चुने जाने पर भी चयन की घोषणा न होने की पृष्ठभूमि के बारे में लिखा, ब्लॉकबस्टर
फ़िल्म ‘शोले’ में से 69 हिंसक दृश्य काटने के आदेश के बावजूद उसके पास हो जाने की बात
की, अधरात मुझे मिली ‘मिडनाइट फ़ोन काल’ की बात की, बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म में राज की संक्षेप में बात की, बताया
कि 1983 की लेख टंडन की अत्यंत लोकप्रिय फ़िल्म ‘अगर तुम न
होते’ तक उसकी 34 फ़िल्म आ चुकी थीं, फिर उस फ़िल्म का
संक्षिप्त ब्योरा देने के बाद, लेकिन उससे पहले एपिक स्केल पर शशि कपूर द्वारा
निर्मित व श्याम बेनेगल निर्देशित 1981 की ‘कलयुग’ का कुछ विस्तृत ब्योरा दिया था।
वादे के मुताबिक़ पहले ‘इंसाफ़ का तराज़ू’ पर लिखने
के लिए मैंने याददाश्त पर भरोसा करने के बजाए मैंने फ़िल्म एक बार फिर देखी:
सबसे पहले पिछले दिनों आई ‘पिंक’ पर लिखते हुए
दीपा गहलौत ने ‘इंसाफ़ का तराज़ू’ के बारे में
लिखा:
[This week’s release Pink, directed by Aniruddha Roy
Chowdhury, seeks to examine the patriarchal attitudes of society towards women
who have suffered sexual violence.
The 1980 film Insaf Ka Tarazu, directed by BR Chopra, made exactly
the same argument; the storyline was different, but there were a few points of
convergence.
[It’s strange to see that in the
interim 36 years, despite the progress women have made in so many ways, the
archaic ideas of how "good" women should behave still remain.
Bharti (Zeenat Aman), the
protagonist of Insaf
Ka Tarazu, is a model and not coy around men.
She has a boyfriend, Ashok (Deepak Parashar), so although she is friendly towards
rich brat Ramesh (Raj Babbar), she does not encourage his romantic overtures.
[One day, when he is visiting her on
the pretext of showing her pictures of a party he threw for her, she ignores
him to take a call from Ashok. Stung, he rapes her brutally.
Instead of staying silent, Bharti
decides to take Ramesh to court, in spite of being warned by her lawyer (Simi
Garewal) that the process would be tough and humiliating.
[Like in Pink, where the character of the young woman
who fended off molestation is questioned, in the older film too, Ramesh’s
lawyer (Shreeram Lagoo) proves that a woman who models in skimpy clothing must
be a slut, and that the act between the two was consensual.Bharti’s terrified
younger sister Neeta (Padmini Kolhapure), who briefly witnessed the rape, is
manipulated into testifying against her.]
यह सही है कि नीता पर बलात्कार वाली घटना manipulated है, पर वह इसलिए ज़रूरी थी कि भारती बलात्कारी रमेश गुप्ता को गोली से
मार सके और मुक़दमे में हमारी न्यायप्रणाली को ही कठघरे में खड़ा कर सके।
फ़िल्म शुरू होने से पहले छाया चित्रों (शैडो
प्ले) में हम देखते हैं चार्ली चैपलिन की ‘मौंश्यू वेर्दौ (Monsieur Verdoux)’ और मृणाल सेन की ‘मृगया’ के
नायक की तर्ज़ पर सैनिक अधिकारी धर्मेंद्र कहता है, “मैंने
हत्या की है लेकिन ज़ुर्म नहीं किया है!”
फ़िल्म का मुख्य भाग शुरू होता है ब्यूटी कॉन्टेस्ट
से। मॉडलिंग करने वाली आधुनिक लड़की भारती (ज़ीनत अमान) सर्वश्रेष्ठ चुनी जाती है।
आडिएंस में बैठे नैजवान उद्योगपति रमेश गुप्ता की कामुक नज़रें बार बार उस पर गड़
जाती हैँ। अब उसे बुलाया जाता है भारती को विजय मुकुट पहनाने के लिए। वह बड़ी बड़ी
मीठी बातें करता है। भारती की नज़र में वह बड़ा भलामानस बन जाता है।
अब हम देखते हैं रेस्तरां भारती को छोटी बहन
नीता (पद्मिनी कोल्हापुरे) और मंगेतर जैसा मित्र अशोक शर्मा (दीपक पाराशर) के साथ
विजय का जश्न मनाते हुए। उन्हें देखकर रमेश गुप्ता भी कुछ देर के लिए उनके पास आता
है और रेस्तरां वालों को आदेश देता है कि उन्हें उसका मेहमान माना जाए (यानी बिल
उसके खाते में जोड़ा जाए।)
अगले ही दिन रमेश खुली छत वाली शानदार गाड़ी में कहीं जा रहा है।
देखता है नीता बस की लाइन में खड़ी है। उसे लिफ़्ट देता है और भारती का जन्म दिन
पूछ लेता है। वह भारती से मिलता जुलता रहता है। अपनी मॉडलिंग की शूटिंग देखने के
लिए भारती ने रमेश को आमंत्रित किया। वहां भारती के अध उघड़ा बदन कई ऐंग्ला से
क्या देखा कि मन ही मन मनसूबे बना लिए। बार बार उससे मिलता रहता है। कभी फूल देता
है, और एक दिन बड़ा महंगा कंठहार हीन दे दिया। नानकुर करती भारती को जबरदस्ती उपहार
थमा ही दिया।
भारती का जन्म दिन। अशोक शर्मा अपने
माता-पिता से सगाई की बात करता है। वे ऐसी आधुनिक लड़की को बहू बनाना नहीं चाहते।
भारती का जन्मदिन-रमेश उसके घर आ धमकता है। तभी अशोक शर्मा का टेलिफ़ोन आता है। उससे
बात करती भारती अपने कमरे में जाती है तो रमेश वहां भी पहुंच जाता है। मौक़ा देख
कर वह बलात्कार पर आमादा हो जाता है। भारती गिर पड़ती है। निर्देशक बी.आर. चोपड़ा
हमें यह दृश्य हमारी भावनाओं को ठेस न पहुंचाने के लिए पलंग की आड़ में दिखाते
हैं-
इसके फ़िल्मांकन के बारे में कहा जाता है, राज बब्बर फिल्मों में आए ही थे। ज़ीनत अमान पर बलात्कार का दृश्य करते डर
भी रहे थे और हिचक भी रहे थे। ज़ीनत ने युक्ति निकाली। रेप सीन की कई बार रिहर्सल
की और उन्हें समझाया कि शूट के दौरान वो जितना क्रूर बन सकते हैं बनें और ऐसे शूट
करें कि रेप सीन असली लगे। सीन के मुताबिक़, राज ने ज़ीनत के साथ खूब हाथापाई, मारपीट की,
इधर-उधर फेंका, लेकिन ज़ीनत ने उफ्फ तक नहीं,
जबकि राज बब्बर का कलेजा मुंह को आ गया था। वैसे यह सीन यादगार माना
जाता है। इसी की बदौलत राज एकदम शीर्ष कलाकारों में गिना जाने लगा।
बलात्कार हो ही रहा था कि अचानक छोटी बहन नीता स्कूल
से आ गई। उसने इस का अंतिम अंश देखा।
भारती अशोक शर्मा से
टेलिफ़ोन पर बात कर रही थी। कुछ आवाज़ें अशोक ने सुनीं। उस के घर पहुंचने तक रमेश
जा चुका था।
आमतौर पर बलात्कृताएं बदनामी के डर से चुप्पी
साध लेती हैं। भारती चुप रहने वाली नहीँ थी। उसने ठान लिया जो भी हो, कोई कितना ही
टोके समझाए वह मामले को अंजाम तक ले जा कर रहेगी।
वकील सिमी (सिमी ग्रेवाल) ने साफ़ बात की। बताया कि भारती को समाज में तरह
तरह की बातें सुनने को मिलेंगी। भारती टस से मस नहीं हुई। अब वकील सिमी पूरी तरह
उस के साथ थी। उस ने कहा, “औरत को ना कहने का हक़ है!” यह वाक्य आज तक दोहराया जाता है
सोशल मीडिया पर। पर मानसिकता वही की वही है। पीड़ित महिलाएं अभी तक सम्मान की भागी
नहीं होतीं।
पीड़ित
भारती का अदालत तक जाने का साहस करना ‘इंसाफ़ का तराज़ू’ को हमारी
फ़िल्मों के इतिहास में एक साहसिक फ़िल्म थी और विषय के सशक्त फ़िल्मांकन के कारण
हमेशा प्रशंसित होती रहेगी।
कहा जाए तो यहां तक का घटना चक्र फ़िल्म का उपोद्घात या विषय प्रवेश था। मुख्य भाग है
मुक़दमा, जो सवाल को कई कोणों से दर्शक के सामने रखता है।
वकील मिस्टर चंद्रा (डॉक्टर श्रीराम लागू) बलात्कारी
रमेश गुप्ता का बचाव कर रहा है। रमेश हवालात में है। वकील चंद्रा वादा करता है वह
उसे बचा कर रहेगा। बहन नीता गवाह बनती है, लेकिन वकील चंद्रा के सामने ठहर नहीं
पाती। तमाम दलीलें तमाम गवाहियां साबित कर देती हैं कि भारती पर दुष्कर्म नहीँ
हुआ। हुआ तो वह उसमें सहभागी थी, अनिच्छुक नहीं थी। अदालत में सब दर्शक और सब वकील
और स्वयं जज (इफ़्तेख़ार) समझ गए हैं कि दुष्कर्म हुआ था। विधि संहिता का पालन
करने को विवश हैं। पापी रमेश बेदाग़ छूट जाता है। और कुछ हो भी नहीं सकता था।
भारती
समाज में रहने की कोशिश करती है, तंग आकर डूब मरना चाहती है। लेकिन रमेश उसे रोक लेता है। लेकिन उसके घर वाले भारती
को बहू बनाने को तैयार नहीं हैं। पिता अंतिम फ़ैसला सुनाते हैं, “इस
लड़की को भूल जाओ।”
स्कूल
में लड़कियाँ नीता को सताती हैं। भारती सांत्वना देती है। और तमाम तानो, कटाक्षों और पड़ोसिनों के आक्रामक तेवरों से
तंग आ कर शहर बदलना तय कर लेती है। पुणे जाने वाली ट्रेन में दोनों बहने बैठी हैँ।
उन्हें रोकने रमेश आता है। पर बेकार।
वह बहन नीता को लेकर पुणे में रहने लगती है। टाइपिंग सीखती है। बंदूक़ आदि
बेचने वाली दुकान में काम करने लगती है। नीता भी टाइपिंग सीख रही है। बहन का बोझ
कम करने के लिए वह नौकरी के विज्ञापन के जवाब में जहां पहुंचती है वह उद्योगपति
अशोक गुप्ता का दफ़्तर है। इंटरव्यू चल रहे हैं, समाप्त होते हैं। आरंभिक चयन में
जो उम्मीदवार हैं उनके फोटो लगे आवेदन पत्र ले कर मैनेजर बॉस के पास जाता है। अशोक
की नज़र नीता के फ़ोटो पर पड़ती है। उसे याद आती है उसके ख़िलाफ़ गवाही देती नीता।
वह कहता इस लड़की को भेज दो। नीता आ गई है। अशोक बाहर जाने का दरवाज़ा बंद कर देता
है। नीता को तंग करता एक एक कर के उस के कपड़े उतरवाता है। बलात्कार करता है। उधर
भारती चिंतित है। एक पिस्तौल ले कर निकलती है।
अशोक कमरे से निकल चुका है। नीचे जाने वाली सीढ़ियों पर वह उसे मार देती
है।
दो साल बाद एक बार फिर वह उसी अदालत में है। उस पर हत्या का आरोप है। राज
बब्बर का वही वकील चंद्रा भारती को हत्यारा साबित करना चाहता है। पर भारती स्वयं
कह रही है, हाँ मैं ने उसे मारा है। लेकिन मैंने उसे सज़ा दी है।
इस बार भारती रुकने वाली नहीं है। अपने तर्कों से वह क़ानून को अपराधी बना
देती है। विधि संहिता के अनुसार कारण कोई भी हो हत्या ते हत्या ही है। जज साहब को
तो उसे सज़ा देनी ही होगी। शर्मिंदा जज साहब उसे अदालत से उठने तक का दंड दे कर
अपना त्यागपत्र दे देते हैं।
अंत को सुखांत बनाने के लिए रमेश का परिवार भारती को बहू स्वीकार कर लेता
है।
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राज बब्बर ने दो शादियां की – पहली नाट्य कर्मी नादिरा ज़हीर, दूसरी
अभिनेत्री स्मिता पाटिल से
अगली क़िस्त होगी ‘नादिरा ज़हीर - 21 अप्रैल’
और उस के बाद वाली होगी ‘स्मिता पाटिल - 28 अप्रैल
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके
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संपादक - पिक्चर प्लस)
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