‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद
कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता;
भाग–83
![]() |
रीना राय की हाल की तस्वीर। (फोटो सौ. नेट) |
रीना राय उन लोगों में से हैं जो जीते जी दंत-कथाओं के पात्र बन जाते हैं। कभी बॉलीवुड की सबसे महंगी
कलाकार थी, मस्त थी, दिल दिया तो दिया, छोड़ा तो छोड़ दिया, कभी अफ़सोस नहीं किया।
1998 में उसे शर्मिला टैगोर के साथ फ़िल्मफ़ेअर का आजीवन उपलब्धियों – फ़िल्मफ़ेअर
लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड – मिला। 1977 में ‘अपनापन’ में फ़िल्मफ़ेअर का श्रेष्ठ
सह-कलाकार अवॉर्ड मिला तो 1976 की ‘नागिन’ और 1980 की ‘आशा’ के लिए फ़िल्मफ़ेअर के श्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए नामांकित किया गया।
नायिकाओं के तथाकथित अनुचित अंग-प्रदर्शन पर फ़िल्मों को वयस्क (Adult) प्रमाणपत्र दिए जाने के विरोध में रेहाना
सुल्तान को लेकर बोल्ड फिल्म ‘चेतना’ बनाने वाले बी.आर. इशारा ने क्लबों में डांस करने वाली रीना की पहली फ़िल्म
शुरू की। नए अभिनेता डैनी डैनज़ोग्पा के साथ ‘नई दुनिया नए लोग’ जो पूरी न बन सकी। इशारा घबराया नहीं। एक और नए कलाकार विजय अरोड़ा के साथ
उन दोनों को लेकर बना डाली कई कलाकारों के साथ कई सेमी न्यूड इंटीमेट
सीनवाली ‘ज़रूरत’ (1972)। अब वह ‘ज़रूरत गर्ल’ कहलाई जाने लगी। इस
पर मुहर लग गई अगले साल (1973) की जितेंद्र वाली ‘जैसे को तैसा’ ने और ‘अब के सावन में जी
डरे’ गीत में बरसात में
भीगते नाच में।
इशारा ने ही बनाई
दोनों - रीना के डबल रोल और शत्रुघ्न सिन्हा – ट्रिपल रोल वाली जन्म-जन्मांतर की
रहस्यपूर्ण ‘मिलाप’ (1972)।
लोकप्रिय
अभिनेत्रियों में उसकी गिनती हुई 1976 में ही सुभाष घई निर्देशित ‘कालीचरण’ से। और यहीं से शुरू
हुआ रीना और शत्रुघ्न सिन्हा का बहुचर्चित रोमांस।
‘नागिन’ रीना
![]() |
'नागिन' में रीना राय |
-सन् 1976 की ‘नागिन’ से रीना तो चमकी ही,सन् 1971 की ‘रेशमा और शेरा’ की असफलता से सुनील
दत्त का ग्रहणग्रस्त कैरियर भी राहुग्रास से मुक्त हुआ। नाग और नागिन की रोमांचक
प्रेम और बदला लेने की कहानियां हमारी सांस्कृतिक परंपरा में उत्सुकता का विषय रही
हैं। कहानी लिखी थी राजेंद्र सिंह आतिश ने, निर्माण और निर्देशन किया था राजकुमार
कोहली ने। घने जंगल में नाग
नागिन (जितेंद्र और रीना राय) मानव रूप में नाच रहे हैं। नाच समाप्त होते होते वे
नाग और नागिन बन जाते हैं। प्रोफ़ेसर विजय (सुनील दत्त), राज (फ़ीरोज़ ख़ान), सूरज
(संजय ख़ान), राजेश (विनोद मेहरा) आदि वनविहार को निकले हैं। उनकी टोली में से
किसी ने नाग को बंदूक़ की गोली से मार दिया। अब उसकी नागिन (रीना) एक-एक करके सबसे
बदला ले रही है। हर घटना के बाद टोली के सभी सदस्य आतंकित हो जाते हैं। कब किस की
मौत आ जाए! लक्ष्मीकांत
प्यारेलाल का संगीत वातावरण को और भी संगीन बना देता है। सब मर चुके हैं। बचा है
प्रोफ़ेसर विजय (सुनील दत्त)। फ़िल्म का आधार थी प्रसिद्ध फ़्रांसीसी निर्देशक
फ़्रांक्वा त्रूफ़ो की ‘द ब्राइड वोर ब्लैक’।
आदि से अंत तक सस्पेंस बना रहता है। फ़िल्म ट्रेढ की भाषा में ‘नागिन’ ब्लॉकबस्टर साबित
हुई। बाद में यह तेलुगु, तमिल और कन्नड़ में भी बनी।
इसके बाद सुनील दत्त के साथ ‘गंगा
और सूरज’, ‘मुकाबला’, ‘जख़्मी’ आदि कई फ़िल्म कीं। जितेंद्र के साथ 1978 की ‘बदलते
रिश्ते’ और 1982 की ‘प्यासा सावन’ के बाद उसकी उड़ान रॉकेट जैसी थी।
जे. ओम प्रकाश, प्रकाश मेहरा, राज खोसला जैसे नामचीन
निर्देशक प्यासे थे उसे लेकर फ़िल्म बनाने को। तब वह सबसे क़ीमती अभिनेत्री थी।
हर बड़ा अभिनेता उसके साथ काम करने को बेताब था। जितेंद्र के साथ 22, शत्रुघ्न के
साथ 16, राजेश खन्ना के साथ ‘धनवान’, ‘धर्मकांटा’, ‘आशा', 'ज्योति’ और ‘हम दोनों’ सुपरहिट रहीं। अमिताभ के साथ ‘सत
श्री अकाल’ (पंजाबी) और ‘विलायती बाबू’
में नायिका थी, तो मनमोहन देसाई की मल्टीस्टार फ़िल्म ‘नसीब’
में अभिताभ की बहन तो थी ही शत्रु की नायिका भी बनी। अकेले सन् 1982 में रीना की
तेरह फ़िल्में आईं। टॉप पोज़ीशन के लिए उसकी टक्कर थी हेमा मालिनी के साथ।
8 जुलाई 1980 को शत्रु और पूनम की शादी के बाद शत्रु वाला बुख़ार
कभी का उतर चुका था। रोने धोने और झीँकते रहने के बजाए अब वह थी और उसका काम था। उसकी
निगाह बस अपने कैरियर पर थी। तरह तरह के पात्र और एक से बढ़ कर एक नाच! 1982 की ‘हथकड़ी’ में ‘डिस्को स्टेशन’ गीत-नृत्य था तो ‘करिश्मा’ (1984) में शहर की सोफ़िस्टिकेटिड
लड़की थी और ‘धर्मकांटा’ में गांव की गोरी। संजीव कुमार के साथ मुस्लिम सोशल ‘लेडीज़ टेलर’ का चुनौती भरा डबल रोल
यादगार है। ‘सौ दिन सास के’ 1980 में ‘दुखियारी बहू’ तो 1982 की ‘बेज़ुबान’ की पत्नी का विगत
वर्तमान को संकट में डालता देता है। 1982 की ही ‘लक्ष्मी’ की तवायफ़ का हर नाच
उसे त्रासक अंत की ओर ले जाता है।
![]() |
'आशा' में रीना राय |
1982 में बहन बरखा राय
की ‘सनम तेरी क़सम’ में कमल हासन के साथ
काम किया। निर्देशक थे मेरे अच्छे मित्र राजिंदर सिंह बेदी के बेटे नरेंद्र बेदी।
संगीतकार आर. डी. बर्मन, जिन्हें इसके लिए श्रेष्ठ संगीतकार का अवॉर्ड मिला।
सुनील (कमल हासन) को तलाश है अपने पिता की जो उसके बचपन में ही कहीं चले गए थे।
तलाश के रास्ते में मिलती है निशा (रीना राय)। निशा उसके पिता रामलाल शर्मा (कादर
ख़ान) तक ले तो जाती है लेकिन किसी ने पहले से ही किसी और को सुनील बता कर स्थापित
कर दिया है। अंत में सब ठीक हो जाता है। पिता असली बेटे और उस की प्रेमिका को
स्वीकार कर लेता है।
रीना की अंतिम फ़िल्में
थीं शिबु मित्र निर्देशित राज बब्बर, ओम शिवपुरी, शक्ति कपूर के साथ 1984 की
इंतिहा, और 1985 की जे.पी. दत्ता निर्दशित मल्टीस्टारर ग़ुलामी जिसमें सह कलाकार
थे धर्मेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती, मज़हर ख़ान, रज़ा मुराद, स्मिता पाटिल, नसीरूद्दीन
और ओम शिवपुरी। गीत गुलज़ार के थे, संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। शूटिंग
राजस्थान के फ़तहपुर फ़िल्मांकित ग़ुलामी में कथावाचन किया था अमिताभ ने। विषय थी
राजस्थान की कठोर जाति प्रथा और रजवाड़ों के समाज पर आधिपत्य के विरोध में संघर्ष।
रीना फ़िल्म उद्योग में
चोटी पर थी। मोहसिन भी क्रिकेट क्षेत्र का बहुप्रशंसित नाम था। दोनों अपने कैरियर
के शिखर पर थे और अफ़वाहों का शिकार थे।
शत्रु से लव अफ़ेअर के
बाद से तरह तरह की बातें सुनते सुनते रीना उकता गई थी। तो एक दिन उसने पूरे बॉलीवुड
और गपोड़ अख़बारों को चौंका दिया। “मैं मोहसिन से शादी कर रही हूं।” और 1 अप्रैल 1983 को शादी
कर ली। दोनों का इरादा था कि पाकिस्तान के करांची में घर बसाएंगे। शुरूआती साल हंसते
खेलते ख़ुशी ख़ुशी में गुज़रे मानों जन्नत में हों। बेटी जन्नत के जन्म ने सचमुच
जन्नत में पहुंचा दिया। रीना के सहारे मोहसिन बंबई में अभिनेता बनने की फ़िराक़
में था। क्रिकेट से छुट्टी लेकर अभिनय सीखने लगा। दस बारह कांट्रेक्ट मिले भी।
रीना अपनी फ़िल्में पूरी कर रही थी। उसके भीतर की मां उसे घर पर रहने को कहती।
आख़िर अभिनय से विदा ले ही ली। कभी वे बंबई रहते कभी करांची और कभी मोहसिन के लंदन
वाले मैंशन में। इंग्लैंड की ठंडी ठार हवाएं रीना को काटती थीं। मोहसिन का शाही रहन
सहन, दोस्तों के साथ पार्टियां – रीना के अनुकूल नहीं था। शादी बोझ बनती जा रही
थी। मां से रोना रोया, “ऐसी शादी का क्या मतलब?” तो मां ने कहा, “निभा ले, बेटा। शादी का
मतलब ही है निभाव!”
प्रारंभिक रीना |
किसी ने रीना से पूछा, “फिर से शादी क्यों नहीं
की?” तो बोली, “शादी का मतलब है एक और
आदमी को पालना!”
बंबई लौटने पर 1993 में
वह जे. ओम प्रकाश निर्देशित ‘आदमी खिलौना है’ में जितेंद्र, गोविंदा
और मीनाक्षी शेषाद्रि के साथ दिखी। इसके सात साल बाद सन् 2000 में अभिषेक बच्चन और
करीना कपूर की पहली फ़िल्म में हिंदुस्तान पाकिस्तान की कच्छ वाली सीमा पर
फ़िल्मांकित ‘रिफ़्यूजी’ में वह आमिना मोहम्मद बनी थी।
![]() |
अरविंद कुमार |
इसके बाद उसकी जिंदगी
कुछ साल बहन बरखा राय के टीवी सीरियल तक सिमटी रही। अब दोनों बहनों ने ऐक्टिंग
स्कूल खोल रखा है।
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की
ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना
कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा।
संपादक - पिक्चर प्लस)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें