‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद
कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता;
भाग–90
देश में अनाज की तंगी थी।
कृषि सुधार आंदोलन के आरंभिक
दिन थे। मुनाफ़ाख़ोरों ने हज़ारों टन अनाज गोदामों में दबा रखा था। उनपर छापे
पड़ने लगे तो नक़द दाम दे कर किसानों से उपज ख़रीद कर उन्हीं के खलिहानों में दबाए रखना
शुरू किया।
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुरशास्त्री ने अपील
की: “लोग सप्ताह में एक जून
भोजन न करें।” कई राज्यों में ‘शास्त्री व्रत’ के नाम पर लोग सोमवार की शाम उपवास करने लगे। कई
रेस्तरानों ने सोमवार की शाम को छुट्टी कर दी। पाकिस्तान से तनातनी लड़ाई में बदल
रही थी। शास्त्रीजी ने ‘जय जवान जय किसान’ नारा दिया। अब...
‘आइडियाज़ मैन’ मनोज कुमार ने ‘उपकार’ में नायक भारत को पहले ‘आदर्श किसान’ और बाद में ‘वीर जवान’ बनाकर दोनों को एक करने
के साथ साथ आदर्श ग्राम चिकित्सक डॉक्टर कविता की रचना कर के देश को संपूर्ण संदेश
दिया। यही समय की मांग थी और देश ने उनकी अपनी कंपनी की अपने निर्देशन में बनी ‘उपकार’ खुले दिल से खुले हाथों
स्वीकार किया।
यही नहीं ‘उपकार’ में मनोज कुमार का करामाती उपकार था ‘मलंग चाचा’ का आविष्कार। मलंग चाचा लंगड़ा है,
दो बैसाखियों के सहारे चलता है, गांव के हर आदमी और हर घटना पर उस की नज़र है,
सच्चे खरे कटाक्ष करना उसकी फ़ितरत है। तब तक कुटिल खलनायकी के लिए पहचाने जाने
वाले प्राण को मलंग बना कर मनोज ने चमत्कार कर दिया। बावन साल पहले के मुझ जैसे
दर्शक की कल्पना कीजिए, जिसे विश्वास ही नहीं होता था कि यह प्राण है!
सही और आकर्षक कास्टिंग किसी भी फ़िल्म की जान होती है
और उसकी पटकथा को अनोखे ढंग से पेश कर पाना उस में चार चांद लगा देता है। मनोज के निर्देशन
में कैमरा ऐंगल हर दृश्य का असर कई गुना बढ़ा देते थे। इसका एक कारण था निर्देशक
का दर्शकों को एक दृश्य से दूसरे तक बड़े सहज भाव से ले जाना।
- फ़िल्म शुरू होती है। हम
सुनते हैं प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री देश के लोगों का आवाहन कर रहे हैं, “मेरे बाद बोलें ‘जय जवान, जय किसान’...”
अब हम देखते हैं शास्त्री जी के प्रति फ़िल्म का समर्पण।
पृष्ठभूमि में सुन पड़ती
है फ़िल्म के मुख्य गीत ‘मेरे देश की धरती’ की धुन की पहली पंक्ति।
अब हम सुनते हैं कुछ ऐसा: “यह कहानी उस धरती की है
जहां सब से पहले संस्कृति ने जन्म लिया...यह कहानी भारत की है”
गांव में सुबह के
क्रियाकलाप के कुछ क्षणिक दृश्य।
-दसेक साल का लड़का भारत खंडहर की सीढ़ियां चढ़ रहा है,
पहली मंज़िल पर कमरे में जाता है, बाहर आता है, छत पर जाता है, आवाज़ लगाता है, “मलंग चाचा, मलंग चाचा!” छत की मुंडेर से मलंग
चाचा उसे दिखाता है –“वह देखो दूर छत पर चढ़ते सूरज को अर्घ्य देता धनीराम (कन्हैया लाल)”–यह है फ़िल्म का प्रधान
खलनायक। यह धनीराम ‘मदर इंडिया’ के सुक्खीलाला (कन्हैया लाल) जैसा ही है – यह समझने में दर्शक को देर नहीं
लगती।
मलंग का पात्र परिभाषित करने के लिए एक छोटा सा दृश्य: कंजूस सुंदर (अभिनेता सुंदर)
हजामत करवा रहा है, नाई उस के दोनों बेटों (सोम और मंगल) के बाल
काटने के तीन आने मांग रहा। सुंदर के गाल पर हलका काट लग गया है। सुंदर कहता है, “इससे जो ख़ून बहा है, उस
का हर्ज़ाना कौन देगा?” मलंग आता है, लस्सी पीने के लिए पैसे मांगता है। सुंदर ने जो तीन आने दिए
वे नाई को दे कर मलंग चला जाता है, “लस्सी तो मैं किसी और से पी लूंगा!”
-किशना (मनमोहन कृष्ण) और रामू खेत जोत रहे हैं। राधा
(कामिनी कौशल) दोपहर का खाना लाई है। वह रामू की दूसरी पत्नी है और पहली के बेटे
भारत को अपने बेटे पूरण जितने ही प्यार से पालती है। इसी दृश्य में साहूकार धनीराम
का कहना है कि किशना और रामू जैसे किसान अनाज पैदा करेंगे तो एक पाई मुझे भी मिल
जाएगी। (एक पुराना सिक्का - एक पैसे में तीन पाई होती थीं।) मलंग सब देख सुन रहा
है, “चारपाई तो तुझे मैं दे
दूंगा!”
-क्लोज़-अप में एक चेहरा। यह है चरणदास (मदन पुरी) जो फ़िल्म
का ख़तरनाक़ सहखलनायक है। उसने खादी के कुर्ते पाजामे पर जवाहर जैकेट के साथ सिर
पर गांधी टोपी लगा रखी है। (मेरा अनुमान है यह वेशभूषा जानबूझ कर दिखाई गई है। सच
तो यह है कि पूरी फ़िल्म की हर चीज़ सुविचारित है। इस दृश्य के बाद चरणदास के सिर
पर गांधी टोपी कभी नहीं दिखती, लेकिन ऐसा कुर्ता पाजामा जवाहर कट तब तब दिखते हैं जब
जब वह देश से ग़द्दारी कर रहा होता है)। कैमरा पीछे हटता है। हम देखते हैं चरख़े
पर सूत कात रही राधा आशंकित है। चरणदास भगवान की सौगंध खा रहा है,“बहन, अब मैं सुधर गया हूं!” राधा मानने को तैयार
नहीं है। चरणदास राखी की बात करता है तो राधा का दिल पसीज जाता है। कहती है, “ठहर, मैं तेरे लिए छाछ लाती
हूँ।” राधा गई तो उचक्के भाई ने
फुर्ती से उचक करकोठरी में रखे संदूक़ से ज़ेवर निकाल लिए। बच्चे भारत ने देखा,
राधा को ले आया, राधा के पीछे छोटा भाई पूरण भी आ गया। झेंपते चरणदास ने ज़ेवर
राधा की हथेली पर रख दिए।
बाहर- चरणदास बच्चे भारत को पीट रहा है: ‘क्यों उस ने चोरी का भेद
खोला!’ पिटते पिटते भारत ने
बापू को आवाज़ दी। रामू भागा भागा आया। मारपीट, हाथापाई, खीँचातानी। पूरण देख रहा
है। पीछे हटते चरणदास को मिल गया जुताई का हल। जुताई वाला हल चरणदास के पास है। वह
हल के डंडे से रामू को धकेल रहा है। रामू डंडे से चरणदास को पीछे धकेल रहा है।
चरणदास ज़ोर लगाता है, रामू पीछे हट रहा है। धीरे धीरे चरणदास बढ़ा आ रहा है। और -
हल की नोंकीली फाल रामू के पेट में घुस
गई। हम देखते हैं ऊपर उठे दो हाथ।
दूर रेल जा रही है। चरणदास भाग रहा है। गांव वाले इधर ही
आ रहे हैं। चरणदास पकड़ा गया।
चिता की लपट। कैमरा मुड़ता है - किशना है। राधा है, भारत
और पूरण हैं। मलंग है।
–किशना रामू का खेत जोत रहा है। राधा से कह रहा है, “तुम्हारे खेत में हल मैं
चला दूँगा,” मलंग कह रहा है,“मैं हल तो नहीं चला सकता, लेकिन खानाला दूँगा, हर काम
में तेरी मदद कर दूंगा!”
यह थी‘उपकार’ की पूर्वकथा।
ï
-फ़िल्म की नामावली शुरू होती है। गांव के दृश्य। बच्चे
स्कूल में पढ़ खेल रहे हैं। भारत और पूरण एक दूसरे की मदद कर रहे हैं।
नामावली समाप्त होते होते बारह साल बीत चुके हैं। नाम
उभरता है:-
बारहवीं पास भारत (मनोज कुमार) हल चला रहा है। सोम मंगल
भागते चिल्लाते आ रहे हैं, “भारत भैया, भारत भैया! चिट्ठी आई है!” भारत पढ़ता है। पूरण पास हो गया है। तभी मेजर साहब
(डैविड) अपने साथियों के साथ आते दिखाई देते हैं। दूसरी तरफ़ से ‘खाना तैयार है’ की आवाज़ आ रही है।
मेजर साहब और साथियों को भी खाने का न्योता है। वे लोग हल के पास बंदूकें रख आए
हैं। मेजर साहब को उस में किसान और जवान की एकता का प्रतीक नज़र आता है। रहँट चल
रहा है। कमली (अरुणा ईरानी) पानी भर रही है। सब खाने की तरफ़ बढ़ रहे हैं। भारत
कहता है,“आप चलें मैं डाकख़ाने से
दो सौ रुपए ले आता हूं और शहर में पूरण को दे देना।” मेजर साहब ने रोक दिया।
“रुपए मैं दे दूंगा, अगली
बार इधर आऊं तो वापस कर देना।”
-शहर. कॉलिज की इमारत से बाहर आता स्टूडैंट आवाज़ लगाता
है, “पूरण कैसे हो!” घास पर बैठा पूरण बड़े
भाई भारत का गुणगान करता है,“भैया देर होने ही नहीं देते। अभी दो सौ रुपए मिले हैं।” दोस्त कहता है, “वंडरफ़ुल! चल चलते हैं मौज मस्ती
करने, रेस्तरां में, क्लब में!” पूरण पढ़ाई की बात करता है। दोस्त का कहना है, “तू जो मोटर कार और बंगले
के ख़्वाब देखता है वे पढ़ाई से नहीं मिलेंगे, दुनिया के साथ चलने से मिलेंगे! और यह जो तेरा दक़ियानूसी
देहाती नाम है कोरा ‘पूरण’ - यह बदल, अब पूरा‘ पूरण कुमार’ बन जा।”
क्लब: टेबल पर कविता (आशा पारेख) अकेली बैठी भाई और भाभी का
इंतज़ार कर रही है। दोस्त पूरण को मिलाता है, “डाक्टरी पास कर के यह
गांवों सेवा करेगी। ”सुंदर कविता पूरण के मन में समा गई है। वह हैरान है, “सरकार में टॉप जांच अफ़सर
की डॉक्टर बहन गांव क्यों जाएगी? कहां शहर के ऐशो आराम, कारें – कहां गांव का सादा,
नीरस, कठिन रहन सहन!”
-जेल से छूट कर चरणदास गांव
लौट आया है। उसका एकमात्र उद्देश्य है भारत से बदला लेना। अब वह पतलून पर दो जेबों
वाली शर्ट पहनता है।
-रात हो आई है, मलंग गा
रहा है “कोई किसी का नहीं बना,
बातें हैं बातों का क्या!” भारत सुनता है, भीतर जाता है, कहता है,“यह क्या, चाचा, दिन में
कहते हो सब बराबर हैं और रात में उस का उलटा-कोई किसी का नहीं बना!” मलंग: “दिन में मैं कहता हूं जो
लोग सुनना चाहते हैं और रात को कहता हूं जो सच है। भारत, अपने बारे में सोच!” भारत आश्वस्त है अपने
बारे में।
-गांव वाले गा रहे हैं, ‘मेरे देश की धरती सोना
उगले उगले हीरे मोती, यहां अपना पराया कोई नहीं...’ परदे पर उस का मोहक चित्रण चल रहा है।
-भाड़ पर बैठी है बूढ़ी
भड़भूजन शम्मी। सामने दुकान पर बैठा सुंदर उसे छेड़ रहा है। भारत और मलंग भी दुकान
पर रुक जाते हैं, हंसी ठट्ठे का मज़ा ले रहे हैं। सामने से आ रही शहरी महिला को
देख कर सुंदर ने सामान पर कपड़ा ढंक दिया। यह डॉक्टर कविता है। सुंदर उसे आगाह
करता है, “इनसे मिलिए - ये हैं भारत और मलंग, गांव के चौधरी। इनकी मदद के बग़ैर आप का
काम नहीं बढ़ेगा!” बातचीत बढ़ी तो भारत बोला,“आप जिस तरह औरतों को समझाती हैं वह मैंने सुना, बहुत
अच्छा है,” और अपनी इंग्लिश से शरहाती डॉक्टरनी को प्रभावित करने लिए अदा से बोला, “थैंक यू!” जाते जाते कविता ने कहा
“मैनशन नॉट!” कविता को भारत की अदा भा
गई। उस की मुस्कराहट यही कह रही है।
-शहर से आए पूरण का सामान लादे भारत आ रहा है। अचानक
कविता इधर ही आ रही थी। पूरण को देख कर चौंकी। ऐसे ही कविता को देख कर चौंका पूरण।
कविता ने कहा, “हलो, ‘कुमार’, तुम यहां!” पूरण बोला, “कविता, तुम यहां?” भारत विस्मित था। पूरण
ने मिलवाया, “यह मेरे बड़े भाई हैं भारत।” “कुमार, मैं मिल चुकी हूं इन से।” भारत चकित था -पूरण का
नाम ‘कुमार’! पूरण ने कविता को समझाया,“शहर में मैं ‘कुमार’ हूं गांव में ‘पूरण’।” आधुनिकता की तलाश में
नाम बदलना भारत को पसंद नहीं है। छोटी मोटी बहस चल पड़ी। कविता और भारत एक दूसरे
के साथ हैं। दोनों में नज़दीक़ी और बढ़ जाती है। कविता ने भारत को “थैंक यू” कहा तो भारत ने कहा, “मैनशन नॉट!” मुग्ध कविता मुसकराए
बग़ैर नहीं रह सकी।
-कविता घर में नहीं है। उसका इंतज़ार करता पूरण कविता का
फ़ोटो निहारे जा रहा है। कविता आती है तो फ़ोटो में उसकी सुंदरता की तारीफ़ करता
है, साथ ही कहता है,“तुम तो उस से भी कई गुना सुंदर हो!” दोनों हंसी ठट्ठा कर
रहे हैं। पूरण को लगता है कविता उसे पसंद करती है। कविता बताती है,“कल भैया भाभी गांव आ रहे
हैँ।” पूरण खिल उठता है। फिर
आने की बात कर के चला जाता है।
-भैया भाभी क्या आए गांव के ही नहीं भारत के भी दीवाने
हो गए। पूरे गांव में सब से अलग, हंसमुख और विचारशील है भारत। बसंत के नाच का आनंद
पूरा गांव तो ले ही रहा था, कविता का परिवार भी पीछे नहीँ था। नाच के अंतिम क्षणों
में कविता और भारत एक दूसरे पर मुग्ध हैं। कई क्लोज़पों में उनकी आंखें एक दूसरे
को देखे जा रही हैँ। भाभी ताड़ती लेती है कविता और भारत की परस्पर चाहत।
-एक रात के अंधेरे में चरणदास ने भारत की बांह पर छुरे
से हमला कर दिया। वह कविता की डिस्पैंसरी गया। कविता से मरहम पट्टी कराई। दोनों एक
दूसरे को देखते रहे। भाभी यह देख रही है। भारत चला गया है। भाभी बोली,“तुम दोनों शर्मीले हो।
ऐसे बात नहीं बनेगी!” वह यह दूरी दूर करने की योजना बनाती है। दोनों को रोमांटिक जगह में
मिलवाने में सफल होती है। अब कविता और भारत एक दूसरे को स्वीकार कर लेते हैं।
-दूर से पूरण देख रहा है: “यह क्या!” जिस कविता के सपने वह
शहर से देखता आया है वह भारत की हो चुकी है! ईर्ष्या से तन बदन जल
रहा है।
-सहेली की शादी में कविता दिल्ली जा रही है, एक सप्ताह
तो लग ही जाएगा।
इस बीच भारत के जीवन में सबकुछ उलट पलट हो गया।
-धनीराम परेशान है। भारत को रास्ते से हटाना होगा। उस के
आवाहन पर किसान पैदावार उसे नहीं बेच रहे।
चरणदास जानता है पूरण की कमज़ोरी - ‘शहर में मौजमस्ती, कार
और बंगला!’ पूरण को धनीराम के पास
ले आता है चरणदास। मुनीम लखपति आसन पर बहीखाता खोले बैठा है। बात चरणदास शुरू करता
है, “तुम चाहते हो शहर में
नौकरी, मोटरकार और बंगला। ये सब तुम्हें मिल सकते हैं। तुम धर्मदास के गोदामों के
मैनेजर बन जाओ, डेढ़ दो हज़ार महीना तो मिल ही जाएंगे!” पूरण उतावला हो उठता है
नौकरी के लिए। धनीराम पख लगाता है, “इस के लिए ज़मानत के तौर पर बीस हज़ार मेरे पास जमा करने
होंगे।”
“यह मैं कहाँ से लाऊंगा?”
“भारत से!”
“भारत कहां से देगा? उसके पास तो कुछ है ही
नहीं!”
अब धनीराम की बारी है,“बेटा तुम नहीं जानते,
भारत बड़ा पैसे वाला है! बरसों से खेती कर के बचत करता रहा है। पैसा सूद पर
लगाता है, बीस हज़ार तो उस के लिए
कुछ भी नहीं! अभी पिछले दिन वह तेईस हज़ार ले गया है, बीस मूलधन के और तीन सूद के! उस से ले लो!”
-राधा चक्की चला रही है,
मुट्ठी से गेहूं डाल रहा है भारत। मां बताती है, “कमली (अरुणा ईरानी) की
मां आई थी - पूरण से रिश्ते की बात करने।” भारत कहता है, “हां कर दो!”मां:“पहले तो रिश्ता बड़े का
करना होगा। कोई है तुझे पसंद?” भारत चुप। मां पूछती है,“कविता कैसी रहेगी?”
तभी आ पहुंचा पूरण। दरवाज़े पर खड़ा है।
भारत कहता है, “आ, पूरण, अभी हम तेरे रिश्ते की
बात कर रहे थे।”
दरवाज़े पर खड़ा खड़ा पूरण मांग करता है, “मुझे पचीस हज़ार चाहिएं।
अभी!”
राधा और भारत हैरान हैं। भारत पूछता है, “पैसे हैं कहां?”
“पैसे हैं तुम्हारे पास! धनीराम ने सब बता दिया
है मुझे। पैसे दो या बंटवारा कर दो!”
राधा, भारत और पूरण पहुंचे धनीराम के पास। बात बढ़ी तो
धनीराम ने लखपति से कहा, “मुनीम जी, बही देख कर बताओ भारत का हिसाब!” वह बोला, “अभी कल मूलधन के बीस के साथ
सूद के तीन हज़ार ले गया था भारत।“
धनीराम बोला,“बेटा, तुम तो पढ़े लिखे हो, लो, देख लो बही!”
मुनीम लखपति ने बही दिखा दी।
‘मदर इंडिया’ का बिरजू तो अनपढ़ था,
लेकिन ‘उपकार’ पढ़ा लिखा भारत भी
मुनीमी बहीखाते का प्रपंच नहीँ समझ पाया। बस, यही कहता रहा, “बही खाता ग़लत है!”
-अगला दिन, सुबह। मेंड़ पर ज़रीब की ज़ंजीर
फैला दी गई। भारत कहता रह गया,“मैं भारत
हूं। हमेशा ही बंटवारे के ख़िलाफ़ रहा हूं। मैं बंटवारा होने नहीं दूंगा।” (यह संवाद एक तरह से भारत के बंटवारे के विरोध की आवाज़
की प्रतिध्वनि प्रतीत होता है। शायद मनोज ने यह लिखा भी इसी उद्देश्य से था।) तमाम
विरोध के बावजूद बंटवारा हो कर रहा।
भारत ने अपने हिस्से का खेत
भी पूरण के बच्चों के नाम कर दिया। गांव छोड़ शहर चला गया। बस, एक विनती कर गया –“पूरण खेतों का ध्यान रखियो!”
-मलंग चाचा अब तक अपने गीत एक
दो पद गाया करता था, आज पूरा गा रहा है।
“क़समें
वादे प्यार वफ़ा सब -/बातें हैं बातों का क्या/ कोई किसी
का नहीं ये झूठे -/नाते हैं नातों का क्या//होगा मसीहा.../होगा
मसीहा सामने तेरे- फिर भी न तू बच पायेगा? तेरा
अपना.../तेरा अपना ख़ून ही आख़िर -/तुझको आग
लगाएगा// आसमान में.../आसमान में
उड़ने वाले- /मिट्टी
में मिल लगाएगा//सुख में तेरे.../ सुख में
तेरे साथ चलेंगे -/दुख में सब मुख मोड़ेंगे/दुनिया
वाले.../दुनिया
वाले तेरे बनकर -/तेरा ही दिल तोड़ेंगे/देते हैं... /देते हैं
भगवान को धोखा -/इन्सां को क्या छोड़ेंगे//क़समे
वादे प्यार वफ़ा सब -/बातें हैं
बातों का क्या//”
ï
-शहर. मेजर साहब के सामने
भारत। “सरदार जी ने मुझे भटकते
देखा, वही ले आए मुझे!”
“क्या करोगे?”
“जो मिलेगा वह काम करूंगा!”
मेजर साहब,“मैं सोच रहा हूं किसान
जवान क्यों नहीं बन सकता!” भारत तैयार है। मेजर साहब उसे डेढ़ सौ मील दूर दिल्ली
ले आए – सेना के भरती कैंप में। भारत को दाखिल कर लिया जाता है। कठोर ट्रेनिंग के
दृश्य...
-दिल्ली में ही भारत कविता से मिलता है। “मैं मां से मिले बिना
चला आया था। तुम गांव जाओ तो उन का ध्यान रखना।”
कविता कहती है,“अब मेरी ज़िम्मेदारी हैं वे!”
“अगली छुट्टी मिलेगी तब
मिलने आऊंगा।”
-शहर. धनीराम पूरण को गोदाम दिखा रहा है। “ऐसे ऐसे दस गोदाम हैं –
बंबई में, दिल्ली में, कलकत्ते में... अब तुम जानो तुम्हारा काम जाने...” शाम को मैं तुम्हें
अपने पार्टनरों से भी मिलवा दूंगा...
अब पूरण की ज़िंदगी है मौज मस्ती, नाचरंग, काकटेल
पार्टियां...उघड़ी बांहों वाली मेहमान पी रही है, खा नहीं रही। पूरण ने कारण पूछा
तो बोली,“मैं डायटिंग कर रही हूं!”
अधनंगी डांसर को संभालता पूरण घर ले आता है...घर का नाम
है ‘सेवासदन’।
-कविता का घर। राधा अब
यहां है। रिश्ते की बात चल रही है। भाई कविता को भारत और उसके बीच भारी अंतर का
ध्यान दिलाता है। कविता अडिग है अपने फ़ैसले पर। अब राधा से बात करता है–“क्या वह अपने बेटे से
कविता का विवाह करना चाहेंगी?” रिश्ता तय हो जाता है। सगाई की तैयारियां होने लगती
हैं।
-पूरण गांव जाता है। नई
कार है। कमली से पूछ रहा है, “मां कहां गई?”
“कविता ले गई।”
अब कमली को पूरण पसंद नहीं है। वह कमली पर कार का रौब
चलाता है। किशना कहता है,“कार अच्छी है, पर अपने खेत देख – कैसे वीरान और अनजुते पड़े
हैं!”
-छावनी में आवाहन का बिगुल बज रहा है। सैनिक पंक्तिबद्ध
हो रहे हैं। मेजर
साहब संबोधित करते हैं:“आप के लिए हुक्म लाया हूं। दुश्मन ने जंग छेड़ दी है। आप
की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं। अगले आठ घंटे में मोर्चे पर जाना होगा। इस बीच आप
चार घंटे की छुट्टी जा सकते हैं!”
भारत कविता के घर फ़ोन करता है। भाई ने उठाया, भाभी,
राधा, कविता उत्सुकता से सुन रहे हैं। भारत कह रहा है –“मेरी लीव कैंसल हो गई है।
कुल चार घंटे मिले हैं आप के पास जा कर लौट आने के लिए।”
सब सन्न हैं। चार घंटों में सगाई कर के वापस पहुंचना है
भारत को। राधा कविता से कहती है, हमें भारत के सामने प्रसन्न दिखना होगा। कविता
सीढ़ियों के मोड़ पर छोटे से तख़्ते पर हल चलाते किसान के खिलौने के सामने रुकती
है। सगाई के लिए सब तैयार हो रहे हैं। मुख्य द्वार पर मुस्कराती कविता भारत का
स्वागत करती है। भारत कहता है,“तुमने प्यार किया किसान से, शादी करोगी जवान से!”
ग़मज़दा राधा ऊपर से ख़ुश नज़र आती है। आंसू रोके सब हंस
बोल रहे हैं। बड़ा सा ड्राइंग रूम मेहमानों की चहलपहल से उमग रहा है। सगाई की रस्म
पूरे राज कपूराना अंदाज़ में ग्रैंड स्केल पर मनाई जा रही है। बैंड मास्टर के हाथ
में है राज कपूर का पसंददीदा बाजा ‘ऐकार्डियन’।
महफ़िल गरम है। बैंड मास्टर घोषणा करता है,“अब भारत गीत गाएंगे,” भारत से कहता है, “शरमाओ मत, मेरी सगाई पर
मैं ने गाया था। अब तुम्हारी बारी है!” वह गाता है ‘दीवानों से यह मत पूछो दीवानों पर क्या गुज़री है – हां, उनके दिलों से यह
पूछो अरमानों पर क्या गुज़री है।’
विदा लेते लेते भारत मां राधा से कहता है, “मैं पूरण से नहीं मिल
पाया, तुम मिलो तो कह देना मैंने उसे माफ़ कर दिया।”
-रेडियो पर धनीराम सहित तमाम मुनाफ़ाख़ोर शास्त्री जी का
जंग का ऐलान सुन रहे हैं। सब खुश हैं। कमान पूरण के हाथ में है। वह शान से कह रहा
है,“अब एक के चार नहीं, सोलह
नहीं, सौ बनेंगे!”
-गांव में हाईलाइट थे दो गीत:‘मेरे देश की धरती सोना
उगले’ और ‘क़स्में वादे प्यार वफ़ा’, तो शहर में हाईलाइट
हैं एक के बाद एक इंदीवर के दो गीत:‘गुलाबी – गुलाबी रात…’ और ‘काली – काली रात…’। समकालीन वस्तुस्थिति
का विरोधाभास दर्शाता लंबा, दर्शकों को झकझोरता, ‘जिस देश का बचपन भूखा उसकी
जवानी क्या होगी’ जैसी चुनौतियां देता अविस्मरणीय कोलाज। इनका वर्णन मेरे बस का नहीं है।
मेरा सुझाव है यू-ट्यूब पर आप ये दोनों अवश्य देखें।
-धनीराम के साथ मुनीम लखपती भी आया है। समय निकाल कर वह राधा,
कविता और उस के भाई भाभी से मिलने चला आया है। बड़ी बड़ी डींगें मार रहा है, “भारत भी अगर पूरण के साथ
मिल जाता तो वारे न्यारे हो जाते। धनीराम का एक गोदाम यहां है, एक वहां है। ढेरों गोदाम
हैं, सब लदालदलदे हैं। यही तो कमाई का समय है! लड़ाई हो रही है, महृंगे
भाव माल बिकेगा, वारे न्यारे हो जाएंगे!”
मानों यूं ही, भाई ने पूछा, “पूरण रहता कहां है?”
मानों यूं ही, भाई ने पूछा, “पूरण रहता कहां है?”
“नेहरू रोड पर सेवा सदन
में।”
“क्या बढ़िया जगह है समाज
की सेवा के लिए!” उठने का उपक्रम करता भाई रहा है, और क्षमा मांगता लखपति से कहता है, “आप बातें करते रहिए,
मुझे ज़रूरी काम से जाना है।”
लखपति कुछ आशंकित तो हुआ पर कविता, भाभी और राधा बातें
करती रहीं।
-लड़ाई बढ़ने की ख़बर आ रही है। गोदाम में पूरण हुक्म दे
रहा है, “कंकड़ पत्थर भर कर माल
चौगुना कर दो!” कुछ हलचल सी नज़र आती। कोई कहता है,“पुलिस! पुलिस! गोदाम पर छापा पड़ गया
है!”
सिपाही पर सिपाही आ रहे हैं। पूरण भागता है। कार दौड़ा
रहा है। अच्छी ख़ासी चेज़ होती है। कार नीचे खड्ड में फेंक पेड़ की जड़ से चिपका
बच गया है।
-धनीराम, चरणदास और
लखपति। धनीराम लखपति को डांट फटकार रहा है,“आप वहां गए ही क्यों?”लखपति सफ़ाई दे रहा है, “मुझे क्या पता था कि डॉक्टरनी
का भाई पुलिस में है। मुझे तो यह भी पता नहीँ था कि हमारा धंधा ग़लत है1” इस बीच पुलिस से बच कर
पूरण भी वहां आ गया है। पीछे से सब सुन रहा है - धनीराम लखपति पर सारे भेद खोलने
का आरोप लगा रहा है। लखपति कह रहा है,“मुझे भेद खोलने होते तो पूरण को न बता देता कैसे आप ने
और चरणदास ने झूठ बोल कर उसे भाई भारत के ख़िलाफ़ भड़काया था!” यह सुन कर पूरण की आंखें
खुल गईं। वह सामने आता है। धनीराम और चरणदास मना रहे हैं, हमने तो यह सब तेरे भले
के लिए किया था...
-पूरण जाता है सीधे
कविता के भाई के पास... वह मुख़बिर बन गया है। सब पकड़े जाते हैं, पूरण को माफ़ी
मिल जाती है।
-घनघोर युद्ध के दृश्य।
सैनिक मर रहे हैं। लाशें बिछी हैं। सड़ रही हैं। कभी हिंदुस्तानी सेना आगे बढ़ती
है कभी पाकिस्तानी। उन का ब्योरा न दे कर मैं बस एक घटना की बात करता हूं। गोपनीय नक़्शे
और दस्तावेज के साथ मेजर साहब पाकिस्तानी सेना की गिरफ़्त में हैँ। भारत की टुकड़ी
को आदेश है कि उन्हें बचा कर लाए। पाकिस्तानी अफ़सर नक़्शे का मतलब नहीं समझ पा
रहे। दस्तावेज़ कूटलिपि में हैं और उनकी समझ से परे हैं। मेजर साहब को सताया जा
रहा है। धमकियां दी जा रही हैँ। बम फट रहे हैं। अंधेरा है। भारत की कूटनीति से
नक़्शा जला दिया गया है। रात है। भारत को गोली लगी है, वह प्यासा है...
-गांव। मंदिर। पूजा। निकट
ही ‘भारत सेवा संघ’ द्वारा स्थापित जंग में
हताहतों के इलाज के लिए कैंप अस्पताल। संचालक है डॉक्टर कविता।
-एर और गांव: दूर, कहीं टूटा मंदिर
देख कर मलंग गा रहा है, “काम अगर ये हिंदू का है मंदिर किस ने तोड़ा है काम अगर
ये मुस्लिम का है ख़ुदा का धर क्यों टूटा है? जिस मज़हब में जायज़ है
ये वो मज़हब तो झूठा है!”
-युद्ध क्षेत्र। हवाई
हमला। पाकिस्तानी कैंप के बाहर भारत दिखाई देता है। वह बच कर भाग रहा है।
-आधा अंधकार आधा उजाना। अजीब सी जगह है। ऊपर से किसी
सड़क के जाने से नीचे जो सुरंग सी बन जाती है कुछ वैसा ही है। अंधेरे और उजाले से
बना सैट लोमहर्षक घटनाओं को उभारने के लिए बनाया गया है। सुरंग के दूर वाले छोर पर
आधा उजाला है। भयानक मारक हाथापाई व गोलीबारी वाला यह दृश्य फ़िल्म का क्लाईमैक्स
है। इसका फ़िल्मांकन अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इस महत्वपूर्ण दृश्य का हूबहू
ब्योरा न देकर याददाश्त के सहारे कुछ घटनाएं ही बता पा रहा हूं...। चलते फिरते
गायकों के साथ मलंग और कुछ साथी यहां आ पहुंचे थे। गांव का रास्ता जानने के लिए
सोम और मगंल गए हैं। मलंग बुरी हालत में है। सुरंग के पार घायल भारत दिखता है।
मलंग उसे इस पार ले आता है। भारत प्यासा है। पानी मांगता है। पास के कुएं से मलंग
बाल्टी भर पानी लाता है। पानी उंडेला तो ख़ून से लाल है। पता नहीं कितने लोग इस
में कटे होंगे। पानी फेंक देता है। बेहोश सा भारत प्यासा है। एक और कूएं से मलंग
ला कर पानी पिलाता है। एक जगह चरणदास लाशों से ज़ेवर निकाल रहा है। एक मंगलसूत्र
हाथ आता है। मलंग उसे बुरा भला कहता है। चरणदास कहता है,“यही तो मौक़ा है कुछ कमाने
का!” मलंग से मदद मांगता है,
“चलो, भारत को गांव ले
चलो।”चरणदास को तो बिन मांगा
मौक़ा मिल गया भारत से बदला लेने का। चरणदास से भारत को बचाने की कोशिश में मलंग
मारा जाता है। भारत अब तक काफ़ी होश में आ गया है। वह और चरणदास लड़ रहे हैं।
चरणदास की गोली भारत की बांह में लग जाती है। फिर भी वह लड़ता रहता है। अंततः घायल
चरणदास कुएं में गिर कर मर जाता है...
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-क्लाईमैक्स के बाद फ़िल्म का उपसंहार, फलागम।
-कैंप अस्पताल में बेहोश भारत। डॉक्टर कविता। मां राधा।
कविता की पहली परीक्षा। वह सर्जन नहीं है फिर भी भारत की बांह से गोली निकालनी है।
मन कड़ा करके वह जुट जाती है। गोली निकल जाती है। पूरे गांव के चिंतित लोग तंबू के
बाहर खड़े हैं। भारत की हालत बिगड़ रही है। गैंग्रीन (अंग विगलन, सड़न)
से दोनों बांहों से आगे के हाथ काटने होंगे। भारत यह नहीं चाहता। कविता बार बार
दिलासा देती और विवशता समझाती है। इन दृश्यों को अतिभावुक बनाने की नाटकीय लेकिन
सफल कोशिश की गई है। भारत को भारी विषाद है कि उसके हाथ अब देश की मिट्टी नहीं छू
सकेंगे, मां राधा खेत से माटी ले आती है। ऑपरेशन सफल होने की घोषणा की जाती है। सब
से घर जाने की अपील की जाती है। किशना सहित सब वापस जा रहे हैं।
-अगली सुबह। भारत कटी बांहें
देख रहा है। कविता और राधा उसके पास हैं। भारत पूछता है, “पूरण
कहां है?”
-कविता कैंप का परदा हटाती
है। उगता सूरज। क्षितिज गुलाबी हो रहा है। दूर खेत मॆं पूरण और कमली हल चला रहे
हैं। “मुझे अपने दोनों हाथ मिल गए!” भारत ख़ुश है....
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अरविंद कुमार |
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अंत में:
‘शोले’ हो, ‘हम आप के हैं कौन’ हो, ‘महल’ हो, ‘मधुमति’ हो, ‘उपकार’ हो - ऐसी फ़िल्में बन जाती
हैं। उनके रचइता तमाम कोशिशों के बावजूद वैसी कोई और रचना फिर नहीं बना पाते। ‘उपकार’ से ही जन्म हुआ था मनोज
कुमार के ट्रेडमार्क पात्र ‘भारत’ का, और शुरू हुआ उसकी ‘देशभक्ति ब्रांड' फ़िल्मों का सिलसिला।
इन सबमें वह लोकप्रिय गीतों, ग्लैमर की चाशनी और गरमागरम लच्छेदार
संवाद परोसने के बावजूद गहरा कथ्य और मार्मिक भाव पिरो पाया था। पर ‘उपकार’ तक उसकी ऐसी कोई और फ़िल्म
नहीं पहुंच सकी।
सिनेवार्ता जारी
है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
(नोट : श्री अरविंद कुमार जी की
ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई है। इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना
कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा।
संपादक - पिक्चर प्लस)
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