बेमिसाल
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"एक चांद है, एक सूरज है, एक लता मंगेशकर हैं" |
दुनिया लता मंगेशकर को सुरों की देवी कहती है। भारतीय
वांग्मय में सुरों की देवी साक्षात सरस्वती के लिए कहा गया है। इस दृष्टिकोण से
लता मंगेशकर सुर साम्राज्ञी कही जाती हैं। तकरीबन 7 दशक से लता के सुर फिजां में
गुंजायमान हैं। उस आवाज़ को कभी किसी ने चुनौती नहीं दी। यदा कदा कोई हमआवाज बनकर
उभरी भी तो लता का विकल्प बन पाना आसान नहीं हुआ। क्योंकि लता एक अटूट साधना का ही
दूसरा नाम है। और इस सुरसिद्धी के लिए जिस बलिदान और त्याग की दरकार होती है, उस
भूमिका को भी लता मंगेशकर ने बखूबी निभाया है, और गीत संगीत की दुनिया में अपना सा
ऐसा एक शिखर बना लिया जो आज बेमिसाल है। उस शिखर की अब कल्पना की जा सकती है।
सदियों तक यह शिखर संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा की सबसे ऊंची मीनार कहलायेगा।
लता की इसी प्रभावोत्पादकता को देखते हुए संवाद
लेखक और गीतकार जावेद अख्तर ने एक बार कहा था – “हमारे पास एक चांद
है, एक सूरज है और एक ही लता मंगेशकर है।“ लता मंगेशकर के लिए इससे बढ़कर और क्या उपमान हो
सकता है। इसीलिए तो वह बेमिसाल हैं।
जैसा कि अक्सर इतिहास बनाने वाली प्रतिभा को
प्रारंभ में जीवन परीक्षा देनी पड़ती है, उसी तरह लता को भी शुरुआती जीवन में कम
इम्तहान नहीं देना पड़ा। क्योंकि लता ने जिस वक्त सिने गीत संगीत की दुनिया में कदम
रखा उस वक्त मार्केट में अलग किस्म की आवाज़ ट्रेंड कर रही थी। सुरैया, नूरजहां,
शमशाद बेगम आदि की आवाज़ में सानुनासिकता की ध्वनि ट्रेंडिंग थी ऐसे में लता
मंगेशकर का पतला सुर किसी को रास नहीं आ रहा था। इस लिहाज से लता प्रारंभ में
रिजेक्ट भी हुईंं। वैसे ही जैसे कि बाद के दौर में अमिताभ बच्चन की आवाज ऑल इंडिया
रेडियो से खारिज कर दी गई और उनकी लंबाई उनके कैरियर में बाधा बनी। लेकिन शायद
भविष्य को कुछ और ही मंजूर था। जो उस वक्त अवगुण माना गया वही बाद में यूएसपी बन
गया। सच, ये बाजार का अपना मिजाज है। जब जो बिकता है, वही सर्वगुण संपन्न कहलाता
है। और इसी चलन की वजह से कई बार मौलिकता हाशिये पर रह जाती है। मौलिकता को मुकाम
हासिल करने में लंबा वक्त लगता है। वक्त के हिसाब से लता मंगेशकर की आवाज एकदम
मौलिक थी, लिहाजा अलोकप्रिय होने के कारण तब संगीत प्रेमियों को लता की आवाज को
सहजता से सहन कर पाना बहुत आसान नहीं था। लेकिन कोई कोई जौहरी भी बड़े जिद्दी होते
हैं। परख जब कर लिया तो हीरे को तराश कर ही मानते हैं।
ऐसे ही जौहरियों में थे उस्ताद अमानत अली जोकि
बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये। इसके बाद लता ने बड़े गुलाम अली खान, पंडित
तुलसीदास शर्मा और अमानत खान देवसल्ले से संगीत की बारीकियां सीखीं। बचपन में
पिता के देहांत के बाद लता मंगेशकर के परिवार को मास्टर विनायक की मदद की छांव
मिली लेकिन 1948 में विनायक के निधन के बाद लता मंगेशकर के सबसे बड़े मेंटॉर बने
गुलाम हैदर। जिन्होंने लता को उनकी मंजिल का रास्ता दिखाने की जिद ठान ली। गुलाम
हैदर ने लता को 'मजबूर' (1948) फिल्म में पहला मौका दिया।
आज लता मंगेशकर की आवाज की दुनिया दीवानी है।
उनकी आवाज को सुनकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी दावा कर दिया कि भविष्य में शायद ही
इतनी सुरीली आवाज हो। लंदन की लेबोरेट्री में भी उनकी आवाज़ का ग्राफ निकाला जा चुका
है और उसे भी बेमिसाल माना गया है। लता इसीलिए अनमोल है।
और यही वजह है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान को इस बात
का बड़ा फख्र है कि उसके पास वो सबकुछ है जो हिन्दुस्तान में है लेकिन नहीं है तो
बस ताजमहल और लता मंगेशकर। सच, लता मंगेशकर एक चांद, एक सूरज और एक ताजमहल की तरह
है, जिसका दुनिया में कोई और जोड़ा नहीं।
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युवावस्था की तस्वीर |
लता मंगेशकर का जन्म 28
सितंबर 1929 को इंदौर के मराठी परिवार में पंडित दीनदयाल
मंगेशकर के घर हुआ। इनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक भी थे इसलिए संगीत इन्हें
विरासत में मिला। लता मंगेशकर का पहला नाम 'हेमा' था, मगर जन्म के 5 साल बाद माता-पिता
ने इनका नाम 'लता' रख दिया था। हेम का मतलब पतला होता है। और लता को उलट दें तो ताल बन जाता है। यह संयोग था। वह पतले मधुर ताल की स्वामिनी कहलाईं। लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी
हैं। मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ उनसे छोटे हैं।
लता ने 5 साल की उम्र से अपने पिता के मराठी
नाटकों और संगीत प्रस्तुतियों में साथ देना शुरू कर दिया था। महज 13 साल की थीं
तभी सन् 1942 में इनके पिता का देहांत हो गया।
1949 में आई फिल्म 'महल' में
मधुबाला के लिए गाया हुआ एक गाना अत्यंत लोकप्रिय हुआ। वह गाना था- 'आएगा
आने वाला...'। जिसके बाद उनके पास गानों का तांता लग गया। अनिल
बिश्वास, शंकर-जयकिशन,
नौशाद अली, एसडी बर्मन, मदन-मोहन
सहित कई नामी संगीतकार आगे आये।
लता मंगेशकर को पहली बार 1958
की फिल्म 'मधुमती' के लिए सलिल चौधरी द्वारा लिखे गए गीत 'आजा
रे परदेशी' के लिए 'फिल्म फेयर अवार्ड फॉर बेस्ट फिमेल सिंगर' का
अवॉर्ड मिला।
1961 में लता ने लोकप्रिय भजन 'अल्लाह तेरो नाम' और 'प्रभु तेरो नाम' जैसे भजन गाए वहीं 1963 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में देशभक्ति का सबसे लोकप्रिय गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों...' गाया था। इस गाने को सुनकर नेहरूजी की आंखों से आंसू आ गये थे। यह किस्सा आज भी लता जी सुनाते हुए भावुक हो जाती हैं।
लता मंगेशकर को भारतीय संगीत में बेमिसाल योगदान
देने के लिए 1969 में पद्मभूषण, 1999 में पद्मविभूषण, 1989
में दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड, 1999 में महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड, 2001
में भारत रत्न, 3 राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड, 12
बंगाल फिल्म पत्रकार संगठन अवॉर्ड, 1993 में फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
सहित कई अवॉर्ड मिल चुके हैं।
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अमिताभ बच्चन के साथ लता मंगेशकर |
कहा जाता है लता ने 1948
से 1989 तक करीब 30 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं, जो
अपने आप में एक रिकॉर्ड हैं।
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