सायरा बानो विशेष (एक)
‘माधुरी’ के संस्थापक-संपादक अरविंद
कुमार से
जीवनीपरक सिनेवार्ता; भाग–112
सन् 1960, दिल्ली, हमने देखी ‘जंगली’। उसमें वह जो मासूम सी लड़की थी, पिंडली पर हलकी सी चोट, चोट नहीं लंबोतरी सी खरोंच, आ गई है, वह उस पर
टिंचर या ऐसा ही कुछ लगाने से हिचक रही है, फिर हिम्मत करके लगा ही लेती है! उस कुल सोलह साल की
भोले भरोसेमंद से चेहरे वाली अभिनेत्री का अपना नाम था सायरा बानो, फ़िल्म में उसका
नाम था राजकुमारी। सुबोध मुखर्जी द्वारा निर्मित-निर्देशित ‘जंगली’ उसकी पहली पहली
फ़िल्म थी।
सायरा का जन्म मसूरी में हुआ था 23 अगस्त 1944 में। पिता थे निर्माता
मियां अहसान उल्हक़, मां थी अभिनेत्री नसीम बानो, नानी थीं मशहूर तवायफ़ छमिया बाई
जो अपने नूर और गले के लिए दिल्ली की शमशाद बेगम कहलाती थीं। बंबई के फ़िल्म वाले
भी नानी के मुरीद थे। सायरा के दादा थे मुहम्मद सुलेमान, नई दिल्ली के मशहूर
इंजीनियर, जिन्होंने बाद में करांची में जिन्ना का मज़ार बनाया। नामी गिरामी रईस
ख़ान बहादुर मौलवी अब्दुल अहद आनरेरी मैजिस्ट्रेट की बेटी दादी ख़ातून बेगम का
जन्म दिल्ली के चूड़ीवालान महल्ले में हुआ था। पड़दादी ख़दीजा बेगम की शादी दिल्ली
की जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुख़ारी से हुई थी।
सायरा की रफ़्तार गुफ़्तार, चालढाल और रंगढंग में ऐरिस्टोक्रेसी की छाप
थी, इसमें इज़ाफ़ा करती थी लंदन और स्विट्ज़रलैंड के प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई
लिखाई। अपने बारे में बातें करते ‘स्टारडस्ट’ की रिपोर्टर सुमिता चक्रवर्ती से जो कहा उसके कुछ अंश:
बेंगलूरु के अशोका होटल के प्रेसिडेंसियल सुईट में वह बेगमों जैसी फब
रही थी। बिना ढेरों मेकअप उसकी ख़ूबसूरती और ज़्यादा दमक रही थी। उसके चेहरे से
नज़र हटती ही नहीं थी। मैंने कहा,“लोग कहते हैं कि तुम्हारी लोकप्रियता की वज़ह है तुम्हारी वेशभूषा में
गले के गहरे काट और उघड़ी उघड़ी कमर।“ वह तमक कर बोली, “तो फिर ‘जंगली’, ‘शागिर्द’ और ‘गोपी’ कैसे हिट हुईं। मानती हूं मेरी कमर अच्छी है, लेकिन उसकी नुमाइश से
क्या फ़र्क़ पड़ता है!”
माधुरी का पन्ना |
मैं उसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हासिल करके गई थी। मुझे पता था
कि उस रूप सुंदरी के गिर्द मंडराने वाले मर्द कम नहीँ थे। मैंने पूछा, “तुम उनसे निपटती कैसे
थीं?”
तो हमें उसके बिल्कुल शुरूआती दिनों तक जाना पड़ा।
वह पंद्रह साल की थी। ख़ानदानी ऐरिस्टोक्रैट थी। स्विट्ज़रलैंड के
उच्चतम फ़िनिशिंग स्कूल से आई थी। उसके पहले हीरो का उस पर गहरा असर पड़ा। (इसके
पीछे पाठक को दूसरा मतलब न निकालें!) वह था अपने को बड़ा समझने वाला शम्मी कपूर। ‘जंगली’ में वह बड़े बेमन
से आया था। यहां तक बोला, “हीरोइन के रूप में कौन सा ‘फ़्रीज़र’ मेरे सामने रख दिया है!” फ़िल्म हिट हुई तो उसका सुर बदला।
शम्मी की ही बदौलत सायरा के जीवन में आया पहला मर्द संजीव कुमार। हुआ
यह कि फ़िल्म की ट्रेनिंग में सायरा की मदद करने का वक़्त बिज़ी शम्मी के पास था नहीं
और उन दिनों हरिभाई (भविष्य का संजीव कुमार) फ़िल्मिस्तान में स्टंट प्लेअर था।
रिहर्सलों में शम्मी की जगह वह आता था। दिलफेंक हरिभाई का दिल न मचले – यह मुमिकन
ही नहीं था। वह मचला तो दिल दिमाग़ सब कुछ दे बैठा। सायरा क़सम से कहती है, “मुझे इस का इल्म ही
नहीं था। हां, वह मेरे भाई का दोस्त था। मुझसे बातें किया करता था ‘किसी रईस, सुंदर और
इकलौती बेटी एक्ट्रैस की जिससे शादी की पेशकश करने से डरता हूं मैं। मैं ठहरा
बेचारा स्ट्रगलिंग ऐक्टर!’ सच, मैं सच कहती हूं मैं समझती थी कि वह आशा पारेख की बात कर रहा है।
तब वे दोनों ‘शिकार’ में काम कर रहे थे। मैंने उससे कहा,‘कोशिश तो कर!’ कुछ वक़्त बाद मुझे मिला उसका मेरे तईं अपने मन की बात खोलने वाला
लंबा चिट्ठा। मुझे ऐसी उम्मीद क़तई नहीं थी।”
चलिए राजेंद्र कुमार की बात करते हैँ। सायरा का कहना है, “राजेंद्र कुमार होता
तो बात कुछ और होती। पर हमारी बात आगे नहीं बढ़ी। जो हो हम दोनों एक दूसरे को पसंद
करते थे।” अब सायरा की मां नसीम बानो बीच में बोल उठीं, “ ‘हम दोनों एक दूसरे
को पसंद करते थे’ का ग़लत मतलब न लगाया जाए। बस, दोनों बातें करते तो करते रहते। हम सब
मौजूद होते थे। इससे ज़्यादा कुछ हो ही नहीं सकता था। हर स्टेज पर मैं उस के साथ
होती ही थी!’ सायरा ने बात आगे बढ़ाई, “वह बड़े अच्छे इनसान हैं। समझदार और होशियार। कई बार मुझे उनमें दिलीप
साहब की छवि नज़र आती थी। उन दिनों दिलीप मुझे नज़रअंदाज़ करते तो मुझे नर्वस
ब्रेक डाउन हो जाता था!”
इस बीच सायरा की ज़िंदगी में आया तीसरा हीरो – राजेंद्र कुमार और
दिलीप कुमार के बीच। धर्मेंद्र। (मैं अरविंद कुमार गवाह हूं उन दिनों धर्मेंद्र और
सायरा को लेकर बॉलीवुड में तरह तरह की बातें सुनने में आ रही थीं।) लेकिन सायरा का
कहना है, “मेरी पसंद के हिसाब से वह दिलीप साहब के मुक़ाबले वह दूसरे नंबर पर
था। उस की शख़्सियत आला, हंसमुख। उसमें गरमाहट थी। वह हमारे घर का मेंबर जैसा बन
गया था। एक देव आनंद ऐसा था जिसके साथ न कोई ग़लतफ़हमी पैदा हुई न कोई लफड़ा हुआ।”
सायरा का कहना है: “अल्लाह जो भी दिन मुझे सा’ब के साथ अता करता है वह मेरे लिए जश्न है, एक दिन जो ख़ुशी ख़ुशी
गुज़र गया!”
सायरा का कहना है, “वोह मेरी दुनिया हैं, मोहब्बत हैं, रूह हैं, मेरे कोहीनूर हैं, इलाही
का दिया बेशक़ीमती तोहफ़ा हैं। सारा ज़हान जानता है जब बारह साल की मैं लंदन में
पढ़ रही थी तभी से मेरी तमन्ना थी उनकी बीवी बनना। दिन रात मैं यह ख़्वाब जीती रही।
दुआएं मांगती रही। मम्मी, भाई जान - सभी समझते सोचते ‘यह बचकानी चाहत है, ‘काफ़ लव’ (calf love) वक़्त के साथ बिसर
जाएगा। पढ़ाई पूरी हुई। मैं इंडिया आ गई। ‘जंगली’ की कामयाबी से मेरी तमन्ना और मजबूत हो गई। तब जाकर घरवालों को साब
के लिए मेरी लगन आख़िर समझ में आई!”
[ दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी वाला हमारा कवर पेज। इसकी एक कहानी
है। जिस शाम शादी थी उस की अगली सुबह ‘माधुरी’ का नया अंक आने वाला था। सब कुछ तैयार था-कवर पेज भी। लेकिन मैं
चाहता था शादी वाला फ़ोटो। ‘टाइम्स’ के चार फ़ोटोग्राफ़रों में सूर्यकांत कुलकर्णी सब से जूनियर माने
जाते थे, पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। उस रात मैंने उनकी ड्यूटी लगाई। कहा,“जैसे ही जोड़े के
फ़ोटो का मौक़ा मिले दो चार क्लिक करके सीधे फोटोग्रेव्योर विभाग में जाना।” वहां के इनचार्ज
डैंगो से बात कर ली थी। “छपाई मशीन चालू होने के समय से पहले फ़ोटो मिल जाए तो कवर पेज बदल कर
शादी वाला फ़ोटो लगवा देना।” मेरे लिए डैंगो कुछ भी रिस्क लेने को तैयार रहते थे। बोले, “अच्छा, बॉस!” अगली सुबह बाज़ार
में इस कवर पेज वाली ‘माधुरी’ की धूम थी। भीतर शादी के बारे में एक भी शब्द नहीं था। कवर पेज अपने
आप में पूरी कहानी था। -अरविंद कुमार, 3 अक्तूबर 2019 ]
“तक़दीर से दिलीप साब का दिल मेरे साथ था। जिन लोगों ने दिलीप साब की
आपबीती पढ़ी है उन्होंने बयान किया है किस संजीदगी से वह मुझ से कोर्टशिप करते
रहे, मुझसे शादी की बात की, और पूरे एक पखवाड़े मम्मी से मेरी बात बढ़ाते रहे। मां
ने ‘हां’ कर दी तो झटपट सनसनीख़ेज़ निकाह की ख़बर शाया कर दी गई।
“मेरा संजोया सपना 11
अक्तूबर 1966 को पूरा हुआ। एक ऐसे शख़्स के साथ ज़िंदगी की नई शुरूआत हुई जो लंबे
चौड़े पठान ख़ानदान में जन्मा था। जिसकी परवरिश मां बाप ने बड़े प्यार से की थी,
जो करोड़ों का चहेता था। फ़िल्मों की दुनिया जिसे इज़्ज़त बख्शती थी, जिसकी मेहनत,
लगन, अच्छाई, संजीदगी और जिसका फ़न सराहा जाता था। मैं पच्छिमी दुनिया में पली
बढ़ी थी। मेरे लिए मिसेज दिलीप कुमार बनना आसान नहीँ था। कोई मुझसे पूछे तो मेरी
छोटी सी फ़ैमिली थी, मां अपने आप में स्टार थी, नानी मशहूर सिंगर थी, भाई पच्छिमी
तौर तरीक़ों में बढ़ा था। मेरे लिए इतने बड़े ख़ानदान में खपना पूरा इम्तहान था।
वो तो यूसुफ़ साहब थे। उन्होंने बड़े ख़ुलूस से, मेरी ज़रूरियात समझ कर अपने बहन भाइयों
के बीच खपने में मेरी मदद की। उन से मुझे वही तवज्जोह दिलवाई जो उनकी भाभी को
मिलनी चाहिए थी।
"मैं हर कोशिश करती कि उनके पैमाने पर सही उतर सकूं। एक बार साब ने कह
ही दिया कि मुझसे शादी के मामले में उनके सामने सब से बड़ी हिचक थी पच्छिमी माहौल
में मेरी परवरिश। पर वह देख चुके थे कि कैसे मैं अपनी मुल्क की तहज़ीब और सैकुलर
ख़यालात में खप सकती हूं। कोई शादी ऐसी नहीं है जिस में ख़लल न पड़ते हो। पर ख़ुशी
इस बात की है कि इंशा अल्लाह हम सब दिक्कतों का सामना करने में कामयाब रहे।
"शादी के शुरूआती दिनों मैं बीमार पड़ी। यहां तक कि इलाज के लिए लंदन
जाना पड़ा। मेरी जान मेरे साथ रहे। सब कुछ छोड़ कर दिन रात मेरा ख़याल रखते। मैं
ऐसी तमाम बातें बताते बताते देर तक बात करती रह सकती हूं। ज़िंदगी हमें एक दूसरे
के क़रीब लाती रही।"
"बहुत कुछ बदल गया है। जो नहीं बदला वह है हम दोनों का सुकून। साथ होने भर से ज़िंदगी के मायने, सब अपनों के, अपने दोस्तों के साथ होने का सुकून। एक दूसरे की मौजूदगी की अहमियत।
"दोबारा जनम मिले तो अल्लाह से दुआ है कि एक बार फिर एक दूजे का साथ
मिले।
"सन् 1960 की बात है। बंबई के मराठा मंदिर में मुग़ले आज़म का प्रीमियर
था। सोलह साल की सायरा दिल थामे गई थी दिलीप कुमार की झलक पाने। पर वह आ नहीं पाए
थे। सायरा का दिल बैठ गया। और जब साब से पहली रूबरू मुलाक़ात हुई, वह पल याद है
सायरा को। "वोह मुसकराए, बोले, ‘बला की ख़ूबसूरत हो।’ मैं फूली नहीं समा रही थी। पंख होते तो ख़ुशी के मारे उड़ने लगती।
भीतर ही भीतर मुझे पता था एक दिन इन की शरीके हयात बनूंगी।"
-
अगले भाग में आप जानेंगे सायरा की कुछ ख़ास फ़िल्मों के बारे, उनमें
भी उसकी मस्त ‘जंगली’, ‘पड़ोसन’ और ‘विक्टोरया नंबर 203’ के बारे में...।
सिनेवार्ता जारी है...
अगली कड़ी, अगले रविवार
(नोट : श्री अरविंद
कुमार जी की ये शृंखलाबद्ध सिनेवार्ता विशेष तौर पर 'पिक्चर प्लस' के लिए तैयार की गई
है। इसके किसी भी भाग को अन्यत्र प्रकाशित करना कॉपीराइट का उल्लंघन माना जायेगा।
संपादक - पिक्चर प्लस)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें